ऐसे लौटेगी फिर से कानपुर की शान, बस इन पर करना होगा काम
वाटर ट्रांसपोर्ट की अच्छी सुविधा होने की वजह से ही अंग्रेजों ने कानपुर को अपना केंद्र बनाया।
सरकार ने अब देश और प्रदेश में औद्योगिक विकास की जो कवायद शुरू की है, उस पर कानपुर का टकटकी लगाना लाजिमी है। दरअसल, यह शहर कोई नया ओहदा नहीं, बल्कि अपना पुराना गौरव पाने को बेताब है। ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के दशकों बाद तक उद्योग का सिरमौर रहा यह शहर दुर्भाग्यवश उल्टे पैर चला और पिछड़ता ही चला गया। 'माय सिटी माय प्राइड' अभियान के तहत इस मुद्दे पर विशेषज्ञों ने खूब दिमाग मथा। निचोड़ कुछ यही माना जा सकता है कि यह शहर ढेर अब भी नहीं हुआ है। सरकार इच्छाशक्ति की ऊर्जा दिखाए तो कानपुर की 'औद्योगिक थकान' जरूर दूर हो सकती है।
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वाटर ट्रांसपोर्ट की अच्छी सुविधा होने की वजह से ही अंग्रेजों ने कानपुर को अपना केंद्र बनाया। अपनी जरूरत के लिए ही उन्होंने यहां घोड़े की काठी बनाने की फैक्ट्री शुरू की, जो वर्तमान में ऑर्डिनेंस इक्विपमेंट फैक्ट्री बन चुकी है। 1850 के दशक में यहां एल्गिन मिल तो उसके बाद बीआइसी की मिलें, अथर्टन मिल, स्वदेशी कॉटन मिल, लाल इमली आदि स्थापित होती चली गईं।
एचएएल के अतिरिक्त यहां पांच आयुध निर्माण कंपनियां हो गईं, जो सेना के लिए हथियार और अन्य सामग्री बनाने लगीं। मिलों ने शहर को 'टेक्सटाइल सिटी' के रूप में स्थापित किया। फिर खाद्य मसाला, पान मसाला की इकाइयां लगीं तो यहां के ब्रांड विश्व प्रसिद्ध हो गए। दुनिया को ब्रश निर्यात करने वाला भी यह बड़ा केंद्र था।
बताया जाता है कि पूर्वोत्तर के लोग उस दौर में खरीददारी के लिए कानपुर ही आया करते थे। इसी वजह से कानपुर को पूरब का मैनचेस्टर कहा जाता था। ऐसा नहीं कि अब इस शहर का औद्योगिक महत्व कतई नहीं है। हां, कई मिल-कारखाने बंद होने से पहले जैसी स्थिति नहीं रही।
हालांकि अब भी कई बड़े ब्रांड कानपुर को औद्योगिक मानचित्र पर बनाए हुए हैं। अब सरकार इस दिशा में काम कर रही है। कुछ संगठनों द्वारा सरकार तक यह बात पहुंचाई भी जा रही है कि जिन बंद मिलों को दोबारा शुरू किया जा सकता है, उन्हें चालू कर दिया जाए। इससे काफी लोगों को रोजगार मिल सकता है।
अगर ये मिलें चालू नहीं हो सकती हैं, तो उन्हें सिलाई-होजरी क्लस्टर के रूप में विकसित कर दिया जाए। इससे औद्योगिक गौरव का वह खुशनुमा अहसास फिर लौटने की संभावना बढ़ जाएगी, जिसके लिए कानपुर जाना जाता था।
डिफेंस कॉरीडोर देगा शहर को दम
सरकार ने झांसी, आगरा, अलीगढ़, चित्रकूट, कानपुर होते हुए लखनऊ तक डिफेंस कॉरीडोर का खाका खींचा है। इसका भी सबसे अहम और बड़ा केंद्र कानपुर ही माना जा रहा है। इसकी वजह है यहां पहले से स्थापित विश्वस्तरीय मानक के उत्पाद बनाने वाले रक्षा प्रतिष्ठान। यदि निजी कंपनियां उनकी सहयोगी इकाइयों के रूप में यहां स्थापित होंगी तो निश्चित तौर पर आयुध निर्माणियों की क्षमता बढ़ेगी और इन कंपनियों के जरिये हजारों युवाओं के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे।
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