Move to Jagran APP

तीन तलाक बिल की कवायद के बाद घटे महिला हिंसा के मामले

तीन तलाक जैसे अहम मुद्दे पर बिल लाने की केंद्र सरकार की कवायद के बाद शरई अदालत के आंकड़ों में मुस्लिम महिलाओं के हालात में सुधार दिखने लगा है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 30 Jun 2018 07:44 PM (IST)Updated: Wed, 04 Jul 2018 08:23 AM (IST)
तीन तलाक बिल की कवायद के बाद घटे महिला हिंसा के मामले

कानपुर ( जमीर सिद्दीकी)। तीन तलाक जैसे अहम मुद्दे पर बिल लाने की केंद्र सरकार की कवायद भले ही राजनीतिक चश्मे से देखी जाए शरई अदालत के आंकड़ों की इबारत मुस्लिम महिलाओं की सुधरी दशा की कहानी लिख रही है। तीन तलाक जैसा अहम मुद्दा सुर्खियों में आने के बाद जहां तलाक के मामले घटे हैं, वहीं घरेलू हिंसा के मामले भी कम हुए हैं। विरासत में लड़कियों को हिस्सा देने के मामले में मन का भेद भी दूर हुआ है। यह आंकड़े सरकार के नहीं बल्कि शरई अदालत के हैं।

loksabha election banner

ऐसे होती सुनवाई

  • शरई अदालत में सुनवाई को लिखित में शिकायत जरूरी, संबंधित को एक माह में जवाब देने का नोटिस 
  • नोटिस का जवाब मिलने पर फरियादी को उससे अवगत कराते हैं
  • जवाब न आने पर फोन पर सूचना 
  • दोनों पक्ष साथ बैठाकर सुनवाई, फिर शरीयत के अनुसार फैसला
  • अंतिम फैसले के दिन उपस्थिति जरूरी, फैसला फिर भी होगा, प्रति संबंधित को डाक से भेज देते हैं

घरेलू हिंसा कम हुई

बीते सालों में तीन तलाक का मुद्दा काफी उछला। केंद्र सरकार ने एक साथ तीन तलाक देने के खिलाफ संसद में बिल रखा। इस पर काफी हो-हल्ला मचा। मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया लेकिन इसके बाद उपजे हालात मुस्लिम महिलाओं की दशा में सुधार लाने वाले रहे। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो या स्वयंसेवी संगठन, उन्होंने समाज को जागरूक किया। परिवारों की काउंसिलिंग की। असर दिखा और तीन तलाक के मामले घटे। घरेलू हिंसा कम हुई। 

शरीयत की रौशनी में हल होते मसले 

मदरसा इशाअतुल उलूम कुलीबाजार में नौ सदस्यीय मुफ्तियों टीम मुस्लिमों के हर मसले को शरीयत की रौशनी में हल करती है। दो साल पहले वहां दर्ज आंकड़ों का हिसाब बता रहा था कि मुस्लिम महिलाओं के उत्पीडऩ के मामले अधिक हैं। वर्ष 2017 में घरेलू हिंसा का आंकड़ा करीब 300 था तो 2018 में केवल 19 ही रहा। आंकड़ों से साफ है, मुस्लिम महिलाओं की दशा सुधरी है। इससे उलमा भी खुश हैं। कहते हैं कि अल्लाह और मोहम्मद साहब ने सभी को मिलजुलकर रहने का संदेश दिया है।

शरई अदालत कोई कानूनी अधिकार नहीं 

शहर काजी एवं प्रमुख शरई अदालत के मौलाना हाफिज अब्दुल कुद्दूस हादी ने बताया कि बीते दो सालों में मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ मामले घटे हैं, हालांकि शरई अदालत को कोई कानूनी अधिकार नहीं है, फिर भी अल्लाह को मानने वाले फैसले को मानते हैं। अधिकार मिल जाए तो स्थिति में और सुधार होगा। दबाव भी बनाया जा सकेगा। फिर गैर शरई काम करने वाले खुद जिम्मेदार होंगे। 

वर्ष  तलाक   विरासत    घरेलू हिंसा 

2016 : 12     288     1157

2017 : 6      289      297

2018 : 2      30       19

इसके अलावा दहेज उत्पीडऩ के 188, गुजारा भत्ता 112 और शौहर के सुध नहीं लेने के लिए 28 मामले आए। इनकी संख्या में भी कमी आई है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.