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Freedom Fighters Story: इस कष्ट में भी मेरा सुख है.., अंडमान जेल से पिता को भेजा गया शहीद महावीर सिंह का पत्र

आपको पढ़कर आश्चर्य होगा कि मैं उपरोक्त स्थान पर कब आ गया यही पहेली हल करने जा रहा हूं। तारीख 19 जनवरी को प्रात जेलर साहब सेंट्रल जेल आए और कोठरी का दरवाजा खोलकर सूचना दी कि तुम्हारा ट्रांसफर है...।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sun, 03 Oct 2021 09:51 AM (IST)Updated: Sun, 03 Oct 2021 05:29 PM (IST)
Freedom Fighters Story: इस कष्ट में भी मेरा सुख है.., अंडमान जेल से पिता को भेजा गया शहीद महावीर सिंह का पत्र
शहीद क्रांतिकारी महावीर सिंह की कलम से..।

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। शहीद महावीर सिंह को लाहौर षड्यंत्र केस में उम्र कैद की सजा हुई थी। महावीर सिंह व उनके अन्य साथियों को अंडमान जेल में भेजा गया था। उस समय शहीद महावीर सिंह ने जेल से पिता को भेजे गए पत्र में जिस तरह कष्टों को सुख की परिभाषा देकर समझाया था उससे उनकी स्वाधीनता के प्रति दिवानगी का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। पढ़िए, उनके पत्र के अंश...।

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पोर्ट ब्लेयर, अंडमान

परम पूज्य पिता जी,

आपको पढ़कर आश्चर्य होगा कि मैं उपरोक्त स्थान पर कब आ गया। यही पहेली हल करने जा रहा हूं। तारीख 19 जनवरी को प्रात: लगभग 11 बजे जेलर साहब सेंट्रल जेल बिलारी आए और कोठरी का दरवाजा खोलकर सूचना दी कि तुम्हारा ट्रांसफर है, पर यह नहीं बताया कि कहां हुआ है। पूछने पर केवल इतना कहा कि शायद पंजाब में नए लाहौर साजिश केस में गवाही देने के लिए मद्रास भेजे जाओगे। अस्तु, 19 तारीख की शाम को जब मैंने सेंट्रल जेल, मद्रास में पैर रखा तो मेरे जीवन-मरण के साथी श्रीयुत् भाई कमलनाथ तिवारी के दर्शन लगभग दो वर्ष बाद हुए और रात को भाई बीके दत्त और भाई कुंदनलाल जी की आवाजें सुनीं। आप स्वयं ही जान सकते हैं कि मुझे कितनी प्रसन्नता हुई परंतु अलसुबह फिर कुछ निराशा की झलक नजर आई जब देखा कि तिवारी और भाई दत्त और कुंदनलाल हमसे पहले पृथक ले जाए गए हैं, परंतु 15 मिनट बाद वह फिर हर्ष में बदल गई और मोटर लारी में हम फिर मिल गए। बहुत दिनों का वियोग मिट गया। उस समय तक हम मन की खिचड़ी पका रहे थे और मिलने के आनंद में विह्वल थे परंतु यह पता नहीं था कि कहां जा रहे हैं। सोचते थे शायद पंजाब जावें, बाद में यहां आवें परंतु हमारी लारी बंदरगाह पहुंची और विख्यात महाराजा जहाज के दर्शन हुए। उस समय समझा कि हम लोग अंडमान अर्थात् ‘काला पानी’ जा रहे हैं। मातृभूमि तथा बंधु वर्ग से सदैव के लिए अथवा कम से कम 18 साल के लिए पृथक हो रहे हैं। जिस जननी की गोद में पले और धूलि में लोटे, उसके दर्शन से भी वंचित हो रहे हैं। आप लोगों के पदारविंद की रज से सदैव के लिए दूर हो रहे हैं। ऐसी दशा में प्यारे देश को छोड़ते हुए हृदय में कितना ही कष्ट हुआ परंतु प्रसन्नता भी हुई, जो कि इसके सम्मुख कुछ अधिक ही थी। वह थी क्रांतिकारी की दर्शनाभिलाषी-पुण्य पवित्र तीर्थ स्थान की, जिसको भाई रामरक्खा ने अपनी समाधि बनाकर पवित्र किया है और दूसरे बंगाली तथा सिक्ख वीरों की तपोभूमि रही है और साथ ही आशा थी कि हमारे जीवन के बंधुगण सर्वदा साथ रहेंगे और भी अपने कंधे से कंधा सटाने वाले भाइयों के दर्शन होंगे। अस्तु, 23 जनवरी की संध्या को विस्तृत नील गंभीर जलराशि की 850 मील से अधिक लंबी यात्रा करके हम इस पोर्ट ब्लेयर की जेल में पहुुंचे, जहां अपने वर्तमान साथियों को मिलने के लिए अति उत्कंठित पाया। उनकी वैसी ही दशा हो रही थी जैसी हमारी थी। यहां संप्रति लगभग 40 बी क्लास के तथा 24 सी क्लास के राजनैतिक कैदी हैं और कुछ लोगों की निकट भविष्य में आशा भी करते हैं।

हमारी जेल तिमंजिला है और पास ही कुछ गजों के फासले पर नीलास्व (जल) राशि गंभीर गर्जन के साथ किनारे से टक्करें मारती है जो ऊपर से दीख पड़ती हैं। यह द्वीप समूह जंगलों से भरा सुना जाता है जिसमें केवल नग्न रहने वाले असभ्य लोग रहते हैं परंतु खुली हुई जगहों में कुछ भारतीय भी बस गए हैं, जिनकी भार्षा ंहदुस्तानी है। इनमें से बहुत से कैदी हैं, कुछ सरकारी नौकर हैं और कुछ तिजारती लोग भी हैं। अभी हाल में तो जेलवालों का कुछ ठीक-ठाक हाल मालूम होता है, लेकिन आगे की कह नहीं सकते। हमारे पुराने साथियों में अभी हमारे साथ डा. गयाप्रसाद, बीके दत्त, भाई कुंदनलाल जी तथा कमलनाथ तिवारी हैं। बाकी तीन साथी मद्रास सूबे में होंगे जो कि शायद अभी भी हंगर स्ट्राइक पर होंगे। हमारे साथियों में 3/4 से अधिक संख्या बंगाल प्रदेशवालों की है।

पूज्यवर शायद आप चिंतित होंगे कि मैंने इतने दिनों से पत्र क्यों नहीं लिखा। इसका कारण थीं घनघोर घटाएं जो चारों ओर मंडरा रही थीं। तनिक भी शांति का अवसर नहीं देती थीं। इसी कारण मैंने उनमें फंसकर पत्र लिखने का सुयोग न पाया। अब यह बहुत दिनों बाद पत्र लिख रहा हूं, जिससे आप शांति लाभ करेंगे परंतु पिता जी, आप शांति हर दशा में रखें, क्योंकि आप जानते हैं कि हमें कष्टों में आनंद और सुख मालूम होता है। अब इस कारागार में वास करके तथा अपने ध्येय को सम्मुख रखते हुए कष्ट भी सुख ही प्रतीत होता है और यही है हमारा जीवन और जहां ये बातें इसमें नहीं रहीं तो समझिए कि हम मर गए। इसलिए आप या हमारी पूज्य बुआ जी तथा माता जी इस बात का ध्यान रखते हुए कभी कोई चिंता न करें और सर्वदा शांतिपूर्वक आनंदित रहें।

प्यारे भाई का क्या हाल है, इसकी सूचना मुझे शीघ्र दीजिएगा। उसे केवल वैद्य ही बनने का उपदेश न देना साथ ही मनुष्य बनना भी बतलाना। आजकल मनुष्य वही है जिसे वर्तमान वातावरण का ज्ञान हो जो मनुष्य के कर्तव्य को जानता ही न हो परंतु उसका पालन भी करता हो। इसलिए समाज की धरोहर को आलस्य तथा आरामतलबी तथा स्वार्थपरता में डालकर समाज के सामने कृतघ्न न साबित हो। शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार की उन्नति करता रहे, क्योंकि दोनों आवश्यक हैं। शारीरिक पुष्टि अन्न तथा व्यायाम से तथा मानसिक अध्ययन से। उसे आजकल के वातावरण का ज्ञान करने के लिए समाचार पत्र तथा ऐतिहासिक, सांपत्तिक तथा राजनैतिक, सामाजिक पुस्तकों का अवलोकन (अध्ययन) करने को कहिए। समाज से मेरा मतलब जन साधारण से है, क्योंकि ये धार्मिक समाज मेरे सामने संकीर्ण होने के कारण कोई भी मूल्य नहीं रखते हैं और साथ ही इस संकीर्णता तथा स्वार्थपरता तथा अन्यायपूर्ण होने के कारण सब धर्मों से दूर रहना चाहता हूं और दूसरों को भी ऐसा ही उपदेश देता हूं। केवल एक बात मानता हूं (और) उसको सबसे बढ़कर तथा मनुष्य तथा समाज का (के लिए) कल्याणकारी समझता हूं। वह है ‘मनुष्य का मनुष्य तथा प्राणी मात्र के साथ कर्तव्य -बिना किसी जातिभेद, रंगभेद, धर्म तथा धनभेद के।’ यही मेरा उपदेश बेटी सरोजिनी को है और दूसरे हमारे भाइयों को भी है।

पूज्यवर, आज जब मैं देखता हूं कि सबकी बहनें समाजसेवा के लिए अपने को तन, मन, धन से लगाए हुए हैं, अभागा मैं ही ऐसा हूं जिसकी ऐसी कोई बहन नहीं। यद्यपि यह मेरी संकीर्णता है क्योंकि अपने मन के अनुसार दूसरी बहनें भी अपनी ही हैं और वैसी ही समझता भी हूं परंतु मैं उनकी संख्या में बढ़ती चाहता हूं, जिसकी कुछ आशा मैं अपनी पूजनीया जिया महताब कुंवरि से करता था। उनका बहुत समय से कोई समाचार नहीं पाया है। यदि हो सके, मेरा चरण स्पर्श कहिएगा। श्रीमान दादा जी सरदार सिंह जी को जो मेरे पहले-पहल गुरु और आपके शिष्य हैं, सादर प्रणाम, भाइयों को नमस्ते। पूज्य बुआ जी तथा माता जी को प्रणाम, लली, दोनों बहनों को, मुंशी सिंह जी को नमस्कार, भानजे तथा भतीजों को प्यार। इति शुभम्। पत्र शीघ्र भेजिएगा।

आपका आज्ञाकारी पुत्र

महावीरा

(शहीद महावीर सिंह को लाहौर षड्यंत्र केस में उम्र कैद की सजा हुई थी। महावीर सिंह व उनके अन्य साथियों को अंडमान जेल में भेजा गया था। प्रस्तुत पत्र 23 जनवरी, 1923 को पोर्ट ब्लेयर, अंडमान से लिखा गया )


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