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गांधी जयंती विशेष : कानपुर में मजदूरों के मन की ज्वाला को आजादी की मशाल बना गए थे बापू Kanpur News

दक्षिण अफ्रीका और लंदन में मजदूरों संग आंदोलन करके समझा था उनका मनोविज्ञान।

By AbhishekEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 04:35 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 04:35 PM (IST)
गांधी जयंती विशेष : कानपुर में मजदूरों के मन की ज्वाला को आजादी की मशाल बना गए थे बापू Kanpur News
गांधी जयंती विशेष : कानपुर में मजदूरों के मन की ज्वाला को आजादी की मशाल बना गए थे बापू Kanpur News

कानपुर, [राजीव सक्सेना]। आजादी की मशाल इस कदर रोशन हो कि अंग्रेजों को कहीं छुपने की जगह न मिले, इस भाव को बखूबी समझने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कानपुर में मजदूरों का मन छूकर उनके हृदय में जल रही ज्वाला को आजादी की मशाल बना दिया। इन मजदूरों के रूप में न केवल आजादी की मशाल थामने वाले हजारों हाथ मिले बल्कि समाज में पीछे की पंक्ति के लोगों को आगे लाने की मुहिम को भी धार मिली। मजदूरों से भी आर्थिक सहयोग लेकर उनके मन में कर्तव्य बोध जगाया तो सामाजिक बराबरी का भाव भी जाग्रत किया। मजदूरों से जुड़े बापू एक बार आए तो बार-बार कानपुर आते रहे। वर्ष 1916 से 1934 के दौरान महात्मा गांधी सात बार आए और 19 दिन रुके।

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महात्मा गांधी वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे। वहां उन्होंने मजदूरों के लिए 20 मील की पदयात्रा की थी। लंदन में भी मजदूरों के लिए आंदोलन किया और उनके मनोविज्ञान को नजदीक से देखा। जब वह भारत आए तो औद्योगिक नगरी और क्रांति धरा कानपुर का मर्म समझने के लिए वर्ष 1916 में यहां की यात्रा की। 1925 में अध्यक्ष रहते हुए यहां कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन किया। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए पहली बार अधिवेशन के मिनट्स हिंदी में बने।

बापू ने शहर की ताकत, मजदूरों के हृदय में धधकती ज्वाला को स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ उन्मुख कर दिया। मजदूरों को जोडऩे के लिए आजादी की लड़ाई की खातिर उनसे और आम जनता से चंदा लिया। बापू जानते थे, ज्यादातर मजदूरों के घर बस्तियों में हैं। वह इन बस्तियों में आते रहते थे। वर्ष 1934 में बापू ने मीरपुर, कोहना, ग्वालटोली जैसी करीब ढाई दर्जन बस्तियों में खुद फावड़ा उठाकर सफाई की और लोगों को सफाई का मतलब समझाया था।

40 हजार की भीड़ थी परेड की सभा में

वर्ष 1920 में परेड मैदान में गांधी जी की पहली सभा हुई। पहली बार 1916 में कानपुर आए थे, तब बहुत लोग नहीं जानते थे। लेकिन बाद में उन्होंने आजादी की ऐसी अलख जगाई कि हर कोई उन्हें सुनना, देखना चाहता था। किसी को उम्मीद नहीं थी और बापू की सभा में तब कानपुर की आबादी का बीस फीसद यानी 40 हजार की भीड़ आई थी। उन्होंने सभा में खादी पहनने का आह्वïान किया और शहर में 14 खादी भंडार खुल गए।

नायाब तरीके से जुटाते थे धन

आजादी की लड़ाई के लिए बापू नायाब तरीकों से धन जुटाते थे। यहां डॉ. जवाहर लाल रोहतगी के यहां रुकते थे। चूंकि बकरी का दूध ही पीते थे, इसलिए बकरी खरीदी जाती। बापू उसे नीलाम करके जाते थे। कई बार अपने ऑटोग्र्राफ का भी पैसा ले लेते थे। कोई मिलने आता तो पहले चंदा लेते, तब बात करते। यह राशि आजादी की लड़ाई के लिए बने फंड में जाती थी।

गांधी जी की कानपुर यात्राएं

  • पहली यात्रा 31 दिसंबर 1916
  • दूसरी यात्रा 21 जनवरी 1920
  • तीसरी यात्रा 14 अक्टूबर 1920
  • चौथी यात्रा 8 अगस्त 1921
  • पांचवी यात्रा 23 दिसंबर 1925
  • छठवीं यात्रा 22 सितंबर 1929
  • सातवीं यात्रा 22 जुलाई 1934

-बापू की कानपुर यात्राओं से आजादी के आंदोलन को गति मिली। यहां उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को हवा दी तो दलित उत्थान के कार्यक्रम भी किए। उन्होंने कानपुर को राजनीतिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र बना दिया था। - एसपी सिंह, विभागाध्यक्ष इतिहास क्राइस्ट चर्च कालेज


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