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शहीद दिवस पर विशेष : सात बार कानपुर आए बापू ने श्रमिकों को सिखाया था देश के लिए जीना

देश के कार्य के लिए खुले मन से चंदा देने का आह्वïान किया था राष्ट्रपिता ने 1916 से 1934 के बीच सात बार आए।

By AbhishekEdited By: Published: Wed, 29 Jan 2020 11:30 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jan 2020 04:54 PM (IST)
शहीद दिवस पर विशेष : सात बार कानपुर आए बापू ने श्रमिकों को सिखाया था देश के लिए जीना
शहीद दिवस पर विशेष : सात बार कानपुर आए बापू ने श्रमिकों को सिखाया था देश के लिए जीना

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। सिर्फ अपने अधिकारों के लिए लडऩे वाले कानपुर के श्रमिकों को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी यानी बापू ने देश के लिए जीना सिखाया था। उन्होंने शहर के हर वर्ग के लोगों से खुले मन से चंदा देने का आह्वïान भी किया था। साल 1916 से 1934 के बीच अक्सर उनकी कानपुर यात्राएं होती रहीं लेकिन इसके बाद अगले 14 वर्षों में वह कानपुर नहीं आए। 30 जनवरी 1948 को भले ही राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी इस दुनिया से विदा हो गए लेकिन आज भी शहर में उनकी स्मृतियां जीवंत हैं। शहर के तमाम ऐसे स्थान हैं जहां उनके चरण पड़े थे। कानपुर उनके लिए इतना अहम था कि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते यहां कांग्र्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन तक हुआ। उन्होंने कांग्र्रेस के राजनीतिक केंद्र तिलक हॉल की भी स्थापना की।

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जनसभा और खादी आंदोलन

सबसे पहले 31 दिसंबर 1916 को बापू औद्योगिक नगरी और क्रांति धरा कानपुर का मर्म समझने के लिए आए थे। उनकी दूसरी यात्रा 21 जनवरी 1920 को हुई थी। इसी वर्ष तीसरी यात्रा 14 अक्टूबर को हुई। उस दिन परेड मैदान में उनकी कानपुर में पहली जनसभा हुई। उस दौर में भी बापू को सुनने के लिए 40 हजार की भीड़ मौजूद थी। इस सभा का सबसे बड़ा असर शहर में खादी आंदोलन पर पड़ा और एक के बाद एक 14 दुकानें खुलीं।

आटोग्र्राफ देने, फोटो खिंचवाने के लिए पैसे

बापू आठ अगस्त 1921 को चौथी बार कानपुर आए। यह यात्रा मारवाड़ी इंटर कॉलेज के एक कार्यक्रम के लिए थी। स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उन्होंने चंदा मांगा तो खूब धन आया। इस पर उन्होंने माला पहनाने, आटोग्र्राफ देने, फोटो खिंचवाने के लिए भी पैसे लिए। बाद में जो मालाएं उन्हें पहनाई गई थीं, उन्हें भी नीलाम कर धन जुटाया गया।

झंडा गीत को दी मान्यता

बापू की पांचवी यात्रा 23 दिसंबर 1925 को हुई। इस मौके पर कानपुर में कांग्र्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। बापू इस समय कांग्र्रेस के अध्यक्ष थे। उनकी मौजूदगी में श्याम लाल गुप्त पार्षद जी ने अपना गीत 'झंडा ऊंचा रहे हमाराÓ पेश किया। बापू की मौजूदगी में इसे झंडा गीत की मान्यता दी गई। कानपुर ही वह शहर है जहां कांग्र्रेस ने अंग्र्रेजी की जगह ङ्क्षहदी को मान्यता दी। राष्ट्रीय अधिवेशन की पूरी कार्यवाही ङ्क्षहदी में ही दर्ज की गई। इससे पहले कांग्र्रेस के अधिवेशन की कार्यवाही अंग्र्रेजी में दर्ज होती थी।

कानपुर में छेड़ा स्वदेशी आंदोलन

अपनी छठी यात्रा में 22 सितंबर 1929 को बापू कानपुर आए थे। इस समय तक कानपुर का कपड़ा कारोबार पूरी दुनिया में चमक रहा था। विदेशों से आ रहा कपड़ा स्वदेशी कपड़े की बिक्री में बाधक बन रहा था। कानपुर आए बापू ने कपड़ा कारोबारियों से कहा कि विदेशी कपड़े स्वदेशी वस्त्र बेचने वालों को बर्बाद कर रहे हैं, इसलिए विदेशी छोड़ स्वदेशी को बेचें और विदेशी कपड़े बेचने का पश्चाताप करें।

तिलक हॉल का किया उद्घाटन

अपनी अंतिम यात्रा में बापू 22 जुलाई 1934 को कानपुर आए। उनकी यह यात्रा पांच दिन की थी। 24 जुलाई को उन्होंने तिलक हॉल का उद्घाटन किया। यह आज भी कांग्र्रेसियों की राजनीति का केंद्र है। इसके साथ ही बापू ने खुद ही बस्तियों में जाकर लोगों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाया। सफाई के लिए खुद फावड़ा चलाया। उस समय वह मीरपुर, कोहना, ग्वालटोली जैसी ढाई दर्जन बस्तियों में गए। पांच दिन के इस प्रवास में उन्होंने एक राजनीतिक केंद्र शुरू किया और लोगों को खुद अपनी समस्याओं से लडऩे की प्रेरणा दी। इस यात्रा के बाद वह कानपुर नहीं आए।

कानपुर और गांधी एक नजर में

-पहली यात्रा- 31 दिसंबर 1916

-दूसरी यात्रा-21 जनवरी 1920

-तीसरी यात्रा-14 अक्टूबर 1920

-चौथी यात्रा-08 अगस्त 1921

-पांचवी यात्रा-23 दिसंबर 1925

-छठी यात्रा-22 सितंबर 1929

-सातवीं यात्रा-22 जुलाई 1934 


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