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पुराने नोटों के मामले में आरोपित बिल्डर के खिलाफ नहीं कोई साक्ष्य!

96.62 करोड़ रुपये के पुराने नोटों की बरामदगी के मामले में आरोपित बिल्डर के अधिवक्ता ने कोर्ट में डिस्चार्ज की अर्जी देकर मुवक्किल के खिलाफ साक्ष्य न होने का दावा किया है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 27 May 2018 01:04 PM (IST)Updated: Sun, 27 May 2018 01:04 PM (IST)
पुराने नोटों के मामले में आरोपित बिल्डर के खिलाफ नहीं कोई साक्ष्य!

जागरण संवाददाता, कानपुर : करोड़ों रुपये के पुराने नोटों की बरामदगी मामले में अब एक नया मोड़ आ गया है। अधिवक्ता की ओर से मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय में बिल्डर आनंद खत्री को मुकदमे से डिस्चार्ज (आरोप मुक्त) करने की अर्जी दी गई है। अधिवक्ता के तर्क हैं कि पुलिस के जुटाए मौजूदा साक्ष्य और चार्जशीट के आरोपों को सही मान लिया जाए तो भी उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई आरोप नहीं बनता। न्यायालय में यह तर्क सिलसिलेवार धाराओं का जिक्र करते हुए दिए गए हैं। ऐसे में अधिवक्ता के दावे को मानें तो सीधा प्रश्न विवेचना में जुटाए गए साक्ष्यों पर खड़ा होता है। फिलहाल मामले पर अगली सुनवाई 6 जून को होनी है।

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बता दें कि इसी वर्ष जनवरी में पुलिस ने 96.62 करोड़ के पुराने नोट बरामदगी में बिल्डर व एक महिला समेत 16 लोगों को आरोपी बनाया था। इसमें 96.14 करोड़ रुपये आनंद खत्री से बरामद दिखाए गए थे जबकि 48 लाख रुपये अन्य लोगों के पास से मिले थे। पांच माह में ही इन सभी को हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है।

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इन धाराओं में है चार्जशीट

पुलिस ने आइपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 511(मुख्य अपराध को करने का प्रयास), 120बी (षड़यंत्र) और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 5 (तय सीमा से अधिक पुराने नोट रखना) व 7 (दोषी पाए जाने पर पांच गुना जुर्माना) में चार्जशीट दाखिल की है।

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अधिवक्ता के तर्क

धारा 420 : आइपीसी की यह धारा धोखाधड़ी करने पर लगाई जाती है। पुलिस द्वारा दाखिल साक्ष्यों में इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि उनके मुवक्किल ने किसी को धोखा दिया या रुपयों के एवज में कोई चल अचल संपत्ति ली या दी अथवा भविष्य में ऐसी संपत्ति लेने या देने का आश्वासन दिया।

धारा 511 : इसमे मुख्य अपराध को करने का प्रयास सही पाए जाने पर दंड का प्रावधान है। दाखिल दस्तावेजों में प्रयास जैसे कोई साक्ष्य नहीं हैं।

धारा 120बी : अपराध में शामिल सभी आरोपितों पर षड़यंत्र रचने में इस धारा के तहत कार्रवाई हुई है। पुलिस की पत्रावलियों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष षड़यंत्र का कोई आरोप नहीं है। साक्ष्यों के मुताबिक उनका मुवक्किल सह अभियुक्तों के साथ किसी भी तरह के संव्यवहार में नहीं पाया गया।

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''नोट बरामदगी आनंद खत्री के निवास स्थल से नहीं हुई। यह तथ्य भी हम कोर्ट में साबित करेंगे। एफआइआर, केस डायरी और चार्जशीट के सभी आरोपों को सही मान लें तो भी उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं। डिस्चार्ज का प्रार्थना पत्र इसीलिए दिया है। - शरद कुमार बिरला, वरिष्ठ अधिवक्ता

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डिस्चार्ज हुए तो मुकदमा खत्म

अधिवक्ता शिवाकांत दीक्षित बताते हैं कि न्यायालय ने डिस्चार्ज प्रार्थना पत्र स्वीकार कर लिया तो मुकदमा उसी स्तर से समाप्त हो जाता है। फिर आगे सुनवाई नहीं होती। ऐसा तब होता है जब विवेचक द्वारा जुटाए गए साक्ष्य इतने मजबूत न हों कि मुकदमा चलाया जा सके।


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