तो जमीन मालिक बन जाएंगे कैंटवासी, नगर निगम में शामिल होते ही नामांतरण होगा आसान
मीरपुर तलऊआ कब्रिस्तान नई बस्ती यह कुछ ऐसी जगह हैं जहां अवैध निर्माण कर लोग रह रहे हैं। यह संपत्तिया कर निर्धारण प्रक्रिया से दूर रहती हैं। उपाध्यक्ष बताते हैं कि नगर निगम में शामिल होने से जहां कुछ फायदे होंगे तो नुकसान भी होगा।
कानपुर, जेएनएन। केंद्र सरकार देश की सभी 62 छावनियों का अस्तित्व समाप्त करना चाहती है। इसके लिए कवायद शुरू कर दी गई है। यदि ऐसा हुआ तो छावनी वासियों को संपत्ति के मामले में फायदा जरूर मिलेगा।कैंट बोर्ड में किसी भी संपत्ति की रजिस्ट्री करानी हो तो इसके लिए अनुमति लेनी होती है। बोर्ड के नियम के मुताबिक संपत्ति मालिक ग्राउंड फ्लोर के साथ एक खंड बना सकता है जबकि इससे उपर बनाने की अनुमति नहीं है। चूंकि कैंट बोर्ड में ज्यादातर निर्माण नियम के विपरीत हैं ऐसे में इनका नामांतरण अथवा दाखिल खारिज भी बामुश्किल होता है। कैंट के सुमित तिवारी बताते हैं कि दाखिल खारिज पर मिनिस्ट्री ऑफ दर्ज होता है। इसका सीधा मतलब है कि रक्षा विभाग इन संपत्तियों का स्वामी होगा। कैंट बोर्ड में संपत्तियां ओल्ड ग्रांट अथवा लीज पर भी हैं। इन सब कारणों से यहां के निवासी खुद को मलवा का मालिक मानते हैं संपत्ति का नहीं। बोर्ड उपाध्यक्ष लखन लाल ओमर बताते हैं यदि कैंट बोर्ड नगर निगम में शामिल हो गया तो नगर निगम के नियमों के मुताबिक अमूल चूल परिवर्तन करके संपत्तियों को फ्री होल्ड कराया जा सकेगा। रक्षा विभाग की जमीन न होने पर संपत्ति के वास्तवित मालिक उपयोगकर्ता होंगे। बोर्ड में मकान बनाने का नियम स्पष्ट है।
ग्राउंड फ्लोर के साथ एक खंड का निर्माण किया जा सकता है, जबकि नगर निगम के नियमों में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। कैंट बोर्ड वर्तमान में करीब छह हजार मकानों का कर निर्धारण करता है। जबकि यहां कई अवैध बस्तियां भी बसी हुई हैं जहां व्यवसायिक गतिविधियां तो चलती ही हैं, ऊंची ऊंची इमारतें भी बन गई हैं। मीरपुर तलऊआ, कब्रिस्तान, नई बस्ती यह कुछ ऐसी जगह हैं जहां अवैध निर्माण कर लोग रह रहे हैं। यह संपत्तिया कर निर्धारण प्रक्रिया से दूर रहती हैं। उपाध्यक्ष बताते हैं कि नगर निगम में शामिल होने से जहां कुछ फायदे होंगे तो नुकसान भी होगा। अभी कैंट बोर्ड पानी का बिल ही लेता है, जबकि सीवर टैक्स नहीं लिया जाता है। तब यह टैक्स भी देना होगा।