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World Cup Cricket 1983 : वेस्टइंडीज का आखिरी विकेट गिरते ही सड़कों पर दिख रहा था कनपुरिया उल्लास

भारतीय टीम ने 25 जून को लाड्र्स के मैदान पर फाइनल जीतकर रचा था इतिहास कानपुर में मनी थी दीपावली।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 11:59 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 08:39 AM (IST)
World Cup Cricket 1983 : वेस्टइंडीज का आखिरी विकेट गिरते ही सड़कों पर दिख रहा था कनपुरिया उल्लास
World Cup Cricket 1983 : वेस्टइंडीज का आखिरी विकेट गिरते ही सड़कों पर दिख रहा था कनपुरिया उल्लास

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। 37 वर्ष पहले आज के ही दिन यानी 25 जून 1983 को टीम इंडिया ने अपना पहला क्रिकेट विश्वकप जीतकर दुनिया में परचम लहराया था। उस समय क्रिकेट की दहलीज पर कदम रख चुका कनपुरिया उल्लास भी हिलोरें मार रहा था। उस ऐतिहासिक दिन शहर में दीपावली सा नजारा था। उस दौर को याद कर पूर्व क्रिकेटर्स की खुशी चेहरे से साफ झलकने लगती है।

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टीवी से चिपके थे, बिजली जाते ही रेडियो सटा लेते थे कान पर : गोपाल

भारतीय क्रिकेट टीम में कानपुर की आमद वर्ष 1981 में ऑफ ब्रेक स्पिन गेंदबाज गोपाल शर्मा व बल्लेबाज शशिकांत खांडेकर के जरिए हुई थी। गोपाल शर्मा बताते हैं कि उस वक्त कुछ चुङ्क्षनदा लोगों के पास ही ब्लैक एंड व्हाइट टीवी थे। मैच देखने के लिए सुबह से ही दोस्तों व परिवार के सदस्यों ने तैयारी शुरू कर दी थी। सांसें रोक देने वाले मैच के दौरान जब लाइट जाती तो तुरंत रेडियो पर लाइव कमेंट्री सुनने लगते और बिजली आते ही फिर सभी टीवी से चिपक जाते थे। उस वक्त विश्व विजेता वेस्टइंडीज में उस दौर के स्टार बल्लेबाज सर विवियन रिचड्र्स और क्लाइव लॉयड के सामने 183 का स्कोर कुछ नहीं था लेकिन ङ्क्षसधु, मदनलाल और अमरनाथ की गेंदबाजी कहर बनकर टूटी। देर रात यह कशमकश चली और किसी की नजरें टीवी से हट नहीं रही थीं क्योंकि वेस्टइंडीज का आखिरी बल्लेबाज भी परिणाम बदलने का दम रखता था। अमरनाथ ने जैसे ही होङ्क्षल्डग को रनआउट किया तो लंदन के लाड्र्स मैदान के साथ शहर के क्रिकेट प्रेमी उछल पड़े थे। सड़क पर पटाखे फोडऩे, मिठाई खाने-खिलाने का दौर पूरी रात चला। दोस्तों के साथ तिरंगा लेकर सड़क पर पूरी रात घूमे थे।

पूरी रात घूम-घूमकर की आतिशबाजी, जलाए दीप : खांडेकर

शशिकांत खांडेकर 1983 में भारत आई वेस्टइंडीज टीम से होने वाले मुकाबले में 12 वें खिलाड़ी के रूप में जगह बना चुके थे। 59 वर्षीय शशिकांत बताते हैं कि फाइनल के लिए कुछ दिन पहले ही पड़ोसी के टीवी पर मैच देखने की योजना बनाई थी। पड़ोसी अपने घर में हो-हल्ला करने पर रोक रहे थे, लेकिन जैसे ही भारत ने जीत के लिए दौड़ लगाई तो फिर उल्लास का ज्वार उठा, उसे भला कौन रोक सकता था। हर तरफ भारत माता की जय के नारे गूंज रहे थे। सूटरगंज के गली-मोहल्ले में तिरंगा लेकर दोस्तों की टोली संग रवाना हुए। पैदल व दौड़ लगाते हुए कहीं पटाखे छुड़ाते तो कहीं दीप जलाते। यह दौर पूरी रात चलता रहा। ढोल नगाड़े बजाकर परिवार के साथ देश की जीत की खुशी मनाई। 


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