Kanpur Naaptol Ke Column: ये चाय वाली सियासत है.., हम तो सबके साथ हैं
कानपुर शहर में व्यापारिक संगठनों की गतिविधियों और चर्चाओं की जानकारी देता है नापतोल के कॉलम। व्यापारिक राजनीति के दो प्रतिद्वंद्वियों के एसी रूम में साथ चाय की चुस्कियां लेने की चर्चा जोरो पर है तो व्यापार बंधु बैठक में भी राजनीति हो गई।
कानपुर, [राजीव सक्सेना]। व्यापारिक गतिविधियों के लिए कानपुर शहर भी बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां बाजार के साथ कई व्यापारिक संगठन भी सक्रिय हैं, राजनीतिक शुरुआत का बड़ा गढ़ भी रहा है। व्यापारिक संगठन के बीच होने वाली कई चर्चाएं पर्दे के पीछे रह जाती हैं, जिन्हें चुटीले और व्यंग अंदाज में लाता है नापतोल के कॉलम...।
ये चाय वाली सियासत है
ये सच है कि एक कप चाय के साथ दुनिया-जहान की राजनीति हो सकती है। नई रणनीति के साथ रूठों को मना भी सकते हैं। ऐसी ही राजनीति पिछले दिनों व्यापारिक जगत में देखने को मिली। कुछ मिनट पहले तक एक मंच पर एक-दूसरे के विरोध में बोल रहे प्रदेश स्तर के दो नेता थोड़ी देर बाद एक एसी रूम में अकेले चाय की चुस्कियां लेते हुए भविष्य की रूपरेखा पर चर्चा करते नजर आए। उन्हें अलग हुए काफी वर्ष हो चुके हैं। बैठक में मनाने के दौर चले तो तमाम पुरानी बातें भी निकल कर सामने आईं। कुछ पदों पर भी चर्चा हुई। अच्छी खासी बैठक चल रही थी, तभी एक कपड़ा कारोबारी का फोन आ गया। जिनके पास फोन आया था, उनके मुंह से निकल गया कि कहां बैठे हैं। फोन कटने तक दोनों नेताओं को इस गलती का भान हो गया और बैठक वहीं खत्म हो गई।
फिर संदेह तो होगा ही
कई बार विपरीत संगठनों के नेता लोग मिलकर कुछ ऐसा काम कर जाते हैं कि न चाहते हुए भी संदेह होता है कि ऐसा हो कैसे गया। पिछले दिनों व्यापार बंधु की बैठक हुई। तीन माह बाद हुई बैठक 30 मिनट भी नहीं चली। एक अधिकारी को अचानक मीटिंग छोड़कर जाना पड़ा। बैठक में पहले से कई विभागों के अधिकारी नहीं आए थे। इससे व्यापारी नाराज होने लगे। एक व्यापारी नेता ने बैठक का बहिष्कार करने की बात रख दी। उनके बोलते ही दूसरे खेमे के एक नेता उठे और बैठक का बहिष्कार कर दिया। इसके बाद एक-एक कर व्यापारी संगठनों के पदाधिकारी बाहर निकल गए। अब जो व्यापारी नेता सबसे पहले उठकर बाहर गए थे, उनके संगठन के पदाधिकारी जांच कर रहे हैं कि विरोधी संगठन के नेता के कहने पर उनके पदाधिकारी ने कैसे बहिष्कार कर दिया। कहीं, दोनों पहले से ही मिलीभगत करके तो नहीं आए थे।
हम तो सबके साथ हैं
पिछले दिनों लोहे के व्यापार से जुड़े कारोबारियों का चुनाव हुआ। छोटे से व्यापार मंडल के चुनाव में व्यापार मंडलों के पदाधिकारियों की काफी रौनक नजर आई। सुबह से ही शहर के दोनों बड़े व्यापार मंडलों के पदाधिकारी चुनाव के दौरान वहीं मौजूद रहे। सुबह से शाम हो गई। मतगणना के बाद परिणाम भी निकला। अब दोनों व्यापार मंडल के पदाधिकारियों ने विजयी प्रत्याशियों को अपने अपने व्यापार मंडल का बताना शुरू कर दिया। मालाओं से चुनाव में जीते प्रत्याशियों का सम्मान कर उन्हें बधाई दी गई। दोनों व्यापार मंडल के पदाधिकारियों को मौजूद देख लोहा व्यापार मंडल का चुनाव जीते प्रत्याशियों ने भी अलग रणनीति बनाई। उन्होंने दोनों व्यापार मंडल के पदाधिकारियों को खुश करने के लिए उनके साथ ग्रुप फोटो ङ्क्षखचवाई। अब दोनों ही व्यापार मंडल के पदाधिकारी अपने अपने वाट््सएप ग्रुप में अपनी अपनी फोटो डालकर वहां के व्यापार मंडल को अपना बताकर खुश हो रहे हैं।
ये पूर्व शिष्य हैं भई
व्यापारिक राजनीति में इस समय एक नेताजी ने खुद को संघर्षशील व्यापारी नेताओं के पूर्व शिष्य की संज्ञा दी है। वो वैसे तो खुद एक व्यापार मंडल में पदाधिकारी हैं, लेकिन इनदिनों कुछ व्यापारी नेताओं से नाराज हैं। उनकी नाराजगी का कारण पिछले दिनों जीएसटी को लेकर भारत बंद का किया गया आह्वान है। उन्होंने अपनी नाराजगी को आजकल इंटरनेट मीडिया पर कुछ ज्यादा ही मुखर कर दिया है। हालांकि, सामान्यतौर पर व्यापारिक राजनीतिक में लोग इनकी बातों को सुनकर भी अनसुना कर देते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने जो लिखा, उसको लेकर बहुत से व्यापारी नेता भी उनकी बातों पर हामी भर रहे हैं। उनकी नाराजगी इस बात की है कि जिस संगठन ने एक जुलाई 2017 की रात 12 बजे लड्डू बांटे थे, वही अब इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है। अब व्यापार मंडलों के बीच इन पूर्व शिष्य के संदेश खूब वायरल हो रहे हैं।