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कोरोना संक्रमण से टूटती जा रहीं सांसें, जनप्रतिधियों ने कानपुर प्रशासन को ठहराया दोषी

कानपुर में सत्ता व विपक्ष के विधायक कोरोना से हुई मौतों के लिए प्रशासन को दोषी मानते हैं। उनका मानना है कि चार अप्रैल को संक्रमितों की संख्या एक हजार पार होने पर भी अफसर नहीं चेते और तब 34326 संक्रमित थे जो छह मई तक 77200 हो गए।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sat, 08 May 2021 08:45 AM (IST)Updated: Sat, 08 May 2021 08:45 AM (IST)
मूक बना मौतों का तमाशा देखता रहा प्रशासन।

कानपुर, जेएनएन। इस समय शहर में करीब 12 हजार कोरोना संक्रमित मरीज हैं। यह संख्या छोटी नहीं होती, लेकिन अगर यह बताया जाए कि पिछले एक माह में छह मई तक कानपुर में कुल 42,874 लोग कोरोना की चपेट में आए तो शायद आपको इसकी गंभीरता का और करीब से अहसास होगा। यह सरकारी आंकड़ा है जबकि बड़ी संख्या में लोग ऐसे भी रहे जिनकी रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन वे वास्तव में पॉजिटिव थे। बहुत से लोगों ने कोई जांच ही नहीं कराई और घर में रह कर खुद अपना इलाज कर लिया।

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चार अप्रैल से बज गई थी खतरे की घंटी

वास्तव में कोरोना ने शहर में चार अप्रैल को ही खतरे की घंटी बजा दी थी जब सक्रिय संक्रमितों का आंकड़ा एक हजार के पार पहुंचा था, पर अधिकारियों ने इसे नजरअंदाज कर दिया था। इसके चलते ही 32 दिनों में संक्रमितों की संख्या 34,326 से 77,200 जा पहुंची। कानपुर की आबादी की बात की जाए तो उसका एक फीसद के आसपास ही संक्रमितों की संख्या होगी। यानी हर सौ लोगों में एक व्यक्ति सरकारी लिखापढ़ी में कोरोना की चपेट में है। इस एक माह के दौरान सिर्फ निरीक्षण, आदेशों-निर्देशों की खानापूरी होती रही। मुख्यमंत्री ने आदेश किया कि ऑक्सीजन का मास्क लगाए कोई मरीज अस्पताल के बाहर नहीं दिखना चाहिए, लेकिन अस्पतालों के बाहर ऑक्सीजन का मास्क लगाए मरीज बिना इलाज तड़प तड़प कर मरते रहे।

शासन को लिखे पत्र

अधिकारियों ने नए अस्पताल के लिए निराला नगर का रेलवे मैदान और कोविड हॉस्पिटल के लिए जागेश्वर अस्पताल देखा। शासन को 125 टन ऑक्सीजन देने के लिए पत्र लिखा, लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ। बड़े-बड़े निजी अस्पतालों को ऑक्सीजन देने के लिए प्रशासनिक अधिकारी तैनात कर दिए गए, लेकिन नर्सिंगहोम पर दबाव नहीं बनाया गया कि वे ऑक्सीजन जेनरेटर लगाएं या कंसंट्रेटर खरीदें। मेडिकल कालेज में एक वर्ष से 26 वेंटिलेटर खराब पड़े रहे, उन्हें वापस करने के लिए सिर्फ कागजी कार्रवाई कर सभी शांत हो गए। कांशीराम अस्पताल में छह वेंटिलेटर खाली पड़े रहे, लेकिन एक सप्ताह से भी ज्यादा समय में वे मेडिकल कालेज नहीं लाए जा सके क्योंकि प्रशासन प्रोसीजर फॉलो कर रहा था। खुद सत्ता और विपक्ष के जनप्रतिनिधि भी प्रशासन के इस रुख से नाराज हैं। उनका कहना है कि प्रशासन ने इसमें भारी चूक की।

क्या बोले जनप्रतिनिधि

-प्रशासन को अतिरिक्त योजना बनानी चाहिए थी। समय से प्रशासनिक कदम नहीं उठाए गए और जब तक कुछ सोचा गया तब तक वे चौतरफा फंस चुके थे और उन्हें कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें। 100 बेड से ऊपर के नर्सिंगहोम को ऑक्सीजन जनरेटर लगवाने के लिए अभी से दबाव डाला जाए तो तीसरी लहर आने पर ऑक्सीजन की किल्लत नहीं होगी। -सुरेंद्र मैथानी, भाजपा विधायक

-कोरोना से निपटने में प्रशासन पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है। शुरुआती दौर में जो उपाय कर लेने चाहिए था वह नहीं किए गए। प्रशासन को नर्सिंगहोम से कहना चाहिए कि उनका लाइसेंस तभी रहेगा जब उनके पास बेड के हिसाब से ऑक्सीजन जनरेटर होंगे। ऐसा न करने पर उनका लाइसेंस खारिज कर देना था। सरकारी अस्पतालों में अब तक ऑक्सीजन जनरेटर लग जाने चाहिए थे। -अभिजीत सिंह सांगा, भाजपा विधायक

-आइआइटी के कार्यवाहक निदेशक रहे मणींद्र अग्रवाल ने बताया था कि दूसरी वेब कब से कब तक रहेगी। इसके बाद भी कानपुर के ही प्रशासनिक अधिकारी नहीं चेते। उनके शोध को नजरअंदाज कर दिया। प्रशासनिक अधिकारियों ने इस पूरे समय जिस तरह का रवैया दिखाया, उससे लगा कि वह अपने ऊपर किसी को नहीं मानते और इसका खामियाजा हमें अपनों की जान गंवाकर भुगतना पड़ा। -इरफान सोलंकी, सपा विधायक

-तेजी से संक्रमितों की संख्या बढ़ रही थी, तब भी 22 अप्रैल के बाद प्रशासन ने बेड की संख्या नहीं बढ़ाई। यह पूरी तरह कुप्रबंधन था। मरीजों की संख्या बढऩे से पहले जो सावधानी बरतनी चाहिए थी, अधिकारियों ने उसे नहीं किया। उन्हें बेड, ऑक्सीजन की व्यवस्था पहले से करनी चाहिए थी। ऐसा किया जाता तो बहुत से लोगों के प्रियजन आज उनके साथ होते। -अमिताभ बाजपेई, सपा विधायक


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