कानपुर में पक्षीघर की मिट्टी और पानी के नमूने बताएंगे हकीकत, छह घंटे चिडिय़ाघर के हर हिस्से पर टीमें रखेंगी निगाह
वरिष्ठ वन्य जीव चिकित्सक डॉ. आरके सिंह ने बताया कि पक्षियों में बर्ड फ्लू के लक्षण बाहरी व आंतरिक दोनों प्रकार के होते हैं। बाहरी लक्षणों के अंतर्गत चिडिय़ों के हाव-भाव देखकर इसका पता लगाया जा सकता है। उनके आंतरिक अंगों की जांच की जा जाती है।
कानपुर, जेएनएन। बर्ड फ्लू की दहशत के बाद रविवार को चिडिय़ाघर के पक्षीघर से डॉ. नासिर, डॉ. यूसी श्रीवास्तव व उनकी टीम ने मिट्टी के सात व पानी के आठ नमूने लिए। अब इन्हेंं नेशनल इंस्टीट््यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनीमल डिसीजेस भोपाल में जांच के लिए भेजा जाएगा। इससे पता चलेगा कि बर्ड फ्लू का संक्रमण इन पक्षियों के पिंजड़ों में है या नहीं। मिट्टी व पानी के साथ ही चिडिय़ों की रैंडम सैंलिंग किए जाने के लिए भी डॉक्टरों की एक टीम बनाई गई है। टीम ने अपना काम रविवार से शुरू कर दिया। यह टीम लक्षण के आधार पर ही चिडिय़ों के सैंपल एकत्रित करेगी। इसके साथ झील व पक्षीघर पर नजर रखने के लिए सहायक निदेशक अरविंद कुमार सिंह के नेतृत्व में क्षेत्रीय वन अधिकारी दिलीप कुमार गुप्ता, उप क्षेत्रीय वन अधिकारी मुकेश कुमार, वन्य जीव रक्षक प्रांशु यादव, शाहदाब अहमद, विशाल सोनकर, विजय नारायण त्रिवेदी व जितेंद्र कुमार की टीम बनाई गई है। यह टीम रोजाना छह घंटे तक चिडिय़ाघर में घूमकर निगरानी रखेगी।
हाव-भाव देखकर लगाया जा सकता है बर्ड फ्लू का पता
वरिष्ठ वन्य जीव चिकित्सक डॉ. आरके सिंह ने बताया कि पक्षियों में बर्ड फ्लू के लक्षण बाहरी व आंतरिक दोनों प्रकार के होते हैं। बाहरी लक्षणों के अंतर्गत चिडिय़ों के हाव-भाव देखकर इसका पता लगाया जा सकता है। उनके आंतरिक अंगों की जांच की जा जाती है। आंतों में सूजन, नाक से फ्लूड निकला व डायरिया होना भी बर्ड फ्लू के लक्षण होते हैं।
ऐसे पक्षियों में बर्ड फ्लू की आशंका
जब चिडिय़ां सुस्त हो जाए।
पास जाने पर नहीं भागे।
उसकी उड़ान कम हो जाए।
दाना-पानी खाना छोड़ दे।
दुर्लभ पक्षियों की होगी जांच, मारे नहीं जाएंगे
सहायक निदेशक अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि चिडिय़ाघर में ऐसी कई प्रजातियों के पक्षी हैं, जो दुर्लभ हैं। ऐसे में सभी पक्षियों को नहीं मारा जा सकता। इनके लिए बर्ड फ्लू व वन्य जीव अधिनियम की गाइडलाइन के तहत काम होगा। अगर किसी पक्षी में बर्ड फ्लू के लक्षण मिलते हैं तो उसे क्वारंटाइन करके चिकित्सीय जांच होगी। अगर किसी पक्षी को मारना भी है तो उसके लिए प्रमुख वन संरक्षक की स्वीकृति लेनी होगी।