भ्रष्टाचार के चलते बिठूर में रानी लक्ष्मी बाई की प्रतिमा टूटकर गिरी
1857 की क्रांति का बिगुल बिठूर की धरती से फुंका गया था और रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के दांत किए थे खट्टे काम में भ्रष्टाचार के चलते प्रतिमा टूट कर क्षति ग्रस्त हो गई। जहां देश क्रांतिकारी रानी लक्ष्मी बाई की जयंती मना रहा
कानपुर, जेएनएन। कानपुर के बिठूर का इतिहास गौरव शाली रहा है यहां की धरती ऐतिहासिक व पौराणिक है यहां की धरती क्रांतिकारियों से भरी पड़ी है। 1857 की क्रांति बिठूर से ही शुरुअत हुई थी नाना साहब, तात्या टोपे अजीमुल्ला, रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के चलते रानी लक्ष्मी बाई की प्रतिमा अपने ही घाट पर टूटी पड़ी है दो वर्ष पूर्व ही नमामि गंगे परियोजना के तहत इस प्रतिमा को रानी लक्ष्मी बाई घाट पर स्थापित किया गया था, लेकिन काम में भ्रष्टाचार के चलते प्रतिमा टूट कर क्षति ग्रस्त हो गई। जहां देश क्रांतिकारी रानी लक्ष्मी बाई की जयंती मना रहा है।
वहीं उनकी प्रतिमा जमीन पर पड़ी है। रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मनु था मनु का जन्म 19 नवम्बर 1835 में वनारस में हुआ था इनके पिता मोरोपंत तांबे माता का नाम भागीरथी बाई था मनु बाई चार वर्ष की आयु में पिता जी के साथ पेशवा महल बिठूर आई इनकी प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा नाना साहब के साथ हुई सोलह वर्ष की अवस्था तक आते आते अश्व रोहड अस्त्र शस्त्र धनुष कृपाण तलवार चलाने में युद्ध कला हासिल कर ली थी पेशवा महल के पास आज भी एक पुराना कुंआ है।
इसी कुआ से मनु का घोड़ा पानी पीता था, जिसका नाम सारंग था सन 1949 में झांसी के गंगाघर राव के साथ विवाह हुआ तब से रानी लक्ष्मी बाई कहलाई 19 जून 1858 में ग्वालियर की धरती पर ऐतिहासिक युद्ध हुआ इस युद्ध में रानी लक्ष्मी बाई ने वह युद्ध कला दिखाई, जिसमें अंग्रेज़ो के छक्के छूट गए इस युद्ध में रानी गम्भीर रूप से घायल हो गई। उनके विश्वासी सिपाही उन्हेंं सहारा देकर बाबा गंगा दास की कुटिया ले गए। जहां उन्होंने अंतिम सांस ली लेकिन वह अंग्रेजों के हाथ नहीं लगी वहीं पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।