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खाकी पर एफआइआर: कानपुर में तैनात रहे आइपीएस ने रची थी वसूली की साजिश, पीड़ित का दावा पुलिस के खिलाफ है कई सबूत

लखनऊ कमिश्नरेट के पूर्वी जोन की क्राइम ब्रांच के आठ पुलिसकर्मियों पर एफआइआर के बाद खाकी को शर्मसार कर दिया है। सट्टेबाजी का आरोप लगाकर चालान करने के मामले में पीड़ित के पास पुलिस के खिलाफ कई सुबूत हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Fri, 26 Nov 2021 07:40 AM (IST)Updated: Fri, 26 Nov 2021 07:40 AM (IST)
काकादेव में वसूली के आरोप में पुलिस कर्मियों पर मुकदमा दर्ज किया गया है। प्रतीकात्मक फोटो।

कानपुर, जागरण संवाददाता। काकादेव क्षेत्र के घर में आकर जेवर-नकदी लूटने और चार लोगों को अवैध हिरासत में लेकर लाखों रुपये वसूलने के आरोप के बाद लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस के आठ पुलिस वालों पर डकैती के मुकदमे ने खाकी को शर्मसार कर दिया। यह मामला जितना चौंकाने वाला है, उससे अधिक हैरान कर देने वाली बात सामने आई है कि इन पुलिसकर्मियों के पीछे साजिशकर्ता एक आइपीएस है। कभी कानपुर में तैनात रहा आइपीएस ही इन सबका नेतृत्व कर रहा था। आरोप है कि इसी आइपीएस के कहने पर लखनऊ पुलिस कानपुर से पीड़ितों को उठाकर ले गई थी। पीड़ित का दावा है, उसके पास आरोपित पुलिसकर्मियों के खिलाफ कई सुबूत हैं। पुलिस ने अपने हित के लिए उसका करियर दांव पर लगा दिया।

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काकादेव क्षेत्र के शास्त्रीनगर निवासी अजय सिंह के बेटे मयंक ने पिछले दिनों काकादेव में मुकदमा दर्ज कराया है। लखनऊ कमिश्नरेट के पूर्वी जोन में तैनात पुलिसकर्मी रजनीश वर्मा, देवकी नंदन, संदीप शर्मा, नरेंद्र बहादुर, रामनिवास शुक्ला, आनंद मणि सिंह, अमित लखेड़ा और रिंकू सिंह को आरोपित बनाया गया है। आरोप है कि ये पुलिस वाले 24 जनवरी 2021 को मयंक व उसके दोस्त को अवैध हिरासत में लेकर लखनऊ ले गए। दूसरे दिन उसे लेकर लखनऊ पुलिस शास्त्रीनगर उसके घर पहुंची और घर मेंरखे जेवर व नकदी लूट ली। बाद में उसके मामा व एक अन्य दोस्त को भी अवैध हिरासत में लिया। चारों को छोडऩे के एवज में 40 लाख रुपये वसूले और बाद में चालान सट्टेबाजी में कर दिया।

अब सामने आया है कि लखनऊ कमिश्नरेट की जो पुलिस टीम कानपुर आई थी, उसका नेतृत्व कानपुर में तैनात रहे एक आइपीएस के हाथों में थी। हालांकि, जो मुकदमा दर्ज कराया गया है, उसमें आइपीएस का नाम कहीं नहीं है। मगर, पीडि़त परिवार का आरोप है कि आइपीएस की भूमिका भी है। चूंकि उनके मामले में आइपीएस सामने नहीं आए, इसलिए उनका नाम नहीं लिखा, लेकिन पुलिस अधिकारियों को इस मामले में जांच करानी चाहिए। 40 लाख वसूलने के लिए जो फोन काल किए गए, उसकी रिकार्डिंग, कानपुर से उन्हें ले जाने का वीडियो फुटेज आदि साक्ष्य उनके पास हैं।


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