जहां बसने थे औद्योगिक क्षेत्र वहीं पसरा धूल और सन्नाटा
मूलभूत सुविधाओं के अभाव में ककवन और घाटमपुर में औद्योगिक क्षेत्र नहीं बस पाए। लघु उद्योग मंत्री भी शहर के लेकिन मिनी औद्योगिक आस्थानों को संजीवनी नहीं फिर भी नहीं मिल सकी।
जागरण संवाददाता, कानपुर : उद्योग विभाग बड़े निवेशकों को रिझा रहा है और डेढ़ सौ वर्षो से औद्योगिक नगरी का तमगा पाए कानपुर में लघु एवं सूक्ष्म उद्योग के लिए विशेष तौर पर बनाए गए मिनी औद्योगिक आस्थान बदहाली के आंसू रो रहे हैं। लघु उद्योग मंत्री सत्यदेव पचौरी के गृह जिले के ही मिनी औद्योगिक क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के अभाव के चलते धूल और सन्नाटे के अलावा कुछ भी नहीं है। पचौरी के मंत्री बनने के बाद माना जा रहा था कि बदहाली दूर होगी, लेकिन इसके प्रयास ही नहीं हुए। अपनी क्षेत्रीय विशेषताओं के लिए मशहूर ककवन और घाटमपुर-पतारा मिनी औद्योगिक आस्थान की ही बात करें तो चार दशक बाद यहां एक भी उद्योग नहीं है। ककवन में कुछ लगे भी थे, लेकिन सुविधाएं न मिलने पर दम तोड़ गए। लघु उद्योग मंत्री ने भी उपेक्षा के शिकार इन क्षेत्रों की सुध नहीं ली। यहां उद्योग लगते तो बेरोजगार ग्रामीण युवाओं की तकदीर संवरती और गांवों से पलायन रुकता। रोजगार की संख्या बढ़ती।
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नाम का है घाटमपुर-पतारा मिनी औद्योगिक क्षेत्र
अस्सी के दशक में घाटमपुर और पतारा ब्लाक की सीमा पर रामसारी गांव में मिनी मिनी औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की गई थी। यह औद्योगिक क्षेत्र दो हिस्से में है। आधा हिस्सा घाटमपुर और आधा पतारा के नाम से जाना जाता है। यह सिर्फ कहने को मिनी औद्योगिक क्षेत्र है। यहां मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। जब स्थापना हुई थी तब सड़क बनी, पेयजल के लिए ओवरहेड टैंक स्थापित हुआ। बिजली के पोल आदि लगाए गए और भूखंडों का आवंटन भी हुआ, लेकिन उद्योग एक भी नहीं लगे। उद्योग विभाग ने भूखंडों का आवंटन तो किया, पर उद्योगों की स्थापना का प्रयास नहीं किया। घाटमपुर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर टमाटर होता है। यहां टमाटर से विभिन्न तरह के उत्पाद वाले उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं। फूड प्रोसेसिंग के उद्योगों का क्लस्टर बन सकता है, लेकिन नहीं बन रहा है।
ककवन में उद्योग लगे, फिर बंद हो गए
ककवन (लोधनपुरवा) में स्थापित मिनी औद्योगिक क्षेत्र में भी सिर्फ धूल उड़ रही है, यहां उद्योग नहीं हैं। बिजली के पोल तो लगे हैं, पर उन पर तार नहीं हैं। पूर्व में जब तार लगे थे तो चोरी हो गए थे। पूर्व में यहां कुछ इकाइयां स्थापित हुई थीं, जो सुविधाओं के अभाव में बंद हो गई। यहां सुविधाएं मिल जाएं तो आलू, मक्का प्रोसेसिंग के प्लांट लग सकते हैं। बिल्हौर क्षेत्र में दो से ढाई लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन होता है। किसान उचित मूल्य न मिलने की वजह से सड़कों किनारे आलू फेंकते हैं।
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नजरे इनायत हों तो दूर हो बेरोजगारी
लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों को औद्योगिक विकास की रीढ़ कहा जाता है। सर्वाधिक रोजगार लघु उद्योगों में ही मिलते हैं। घाटमपुर, पतारा, भीतरगांव, बिल्हौर, ककवन आदि क्षेत्रों में बेरोजगारी बहुत है। अगर यहां उद्योग लगते तो यहां के युवा बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता, लेकिन लघु उद्योग मंत्री की तरफ से कोई खास प्रयास यहां औद्योगिक विकास के लिए नहीं हो पाया है।
बजट मिले तो काम हो
उद्योग विभाग ने ककवन औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए 228.89 लाख रुपये, घाटमपुर के लिए 77.73 लाख रुपये और पतारा के लिए 85.52 लाख रुपये खर्च होना है। उप्र लघु उद्योग निगम ने एस्टीमेट तैयार कर भेजा है। बजट मिलेगा तो फिर निगम इन क्षेत्रों में विकास करेगा। उप्र लघु उद्योग निगम ही फजलगंज औद्योगिक आस्थान में 95.65 लाख रूपये से विकास कर रहा है।