बर्फीले तूफानों में सैनिकों के लिए खाना पका रहा कानपुर का चूल्हा, जानें-क्यों बना सेना की पसंद
कानपुर की फैक्ट्री डिफेंस कुकिंग कुकर स्टोव और अल्कोजेल ईंधन की सप्लाई कर रही है।
कानपुर, विक्सन सिक्रोडिय़ा। ऐसी ठंड, जिसमें उबलता लहू भी जम जाए, मुंह से निकली भाप बर्फ बन जाए तो चाय बनाने और खाना पकाने की दुश्वारियां समझी जा सकती हैं। ऐसी ही बर्फीले लेह, लद्दाख और सियाचिन में कनपुरिया चूल्हा और ईंधन, वहां तैनात सैनिकों की इस दुश्वारी को घटा रहा है। यह चूल्हा और ईंधन माइनस 60 डिग्री के तापमान में भी गरमागरम चाय-कॉफी और गरम खाने की सुविधा दे रहा है। यूं तो कानपुर की मिनरल ऑयल कारपोरेशन ने इस चूल्हे को पांच साल पहले बनाया था लेकिन कंपनी ने सेना से मिले तीसरे आर्डर में ईंधन को अपग्रेड करके कुकिंग टाइम को बीस मिनट बढ़ा दिया है।
जेल ईंधन अल्कोजेल का इस्तेमाल
अल्कोहल, हाई अल्कोहल व जिलेन के मिश्रण से बने जेल ईंधन अल्कोजेल से माइनस 60 डिग्री के तापमान में डिफेंस कुकिंग कुकर स्टोव 100 एमएल पानी महज 15 मिनट में उबाल देता है। रक्षा अनुसंधान एïवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की कानपुर स्थित शोध प्रयोगशाला, डिफेंस मैटीरियल एंड स्टोर रिसर्च एंड डेवलेपमेंट इस्टेबलिशमेंट (डीएमएसआरडीई) से अप्रूवल मिलने के बाद सेना सियाचिन और लद्दाख में इसका इस्तेमाल कर रही है।
सेना ने तीसरी बार दिया आर्डर
मिनरल ऑयल कोरपोरेशन के एमडी विकास अग्रवाल कहते हैं कि सियाचिन और लद्दाख में केरोसिन और लकड़ी पर खाना पकाना मुमकिन नहीं है। बर्फीले इलाके में भी सैनिकों को खाना पकाने संबंधी दिक्कत न हो, इसके लिए कुकिंग स्टोव और अल्कोजेल ईंधन बनाया गया था। इस ईंधन के प्रदूषण मुक्त होने के कारण सेना ने तीसरी बार आर्डर दिया है।
2500 कुकर की इस खेप की आपूर्ति के पहले अल्कोजेल ईंधन को अपग्रेड किया गया है। पहले 170 ग्राम अल्कोजेल 150 मिनट यानी ढाई घंटे जलता था और स्टोव में ईंधन का अवशेष भी बच जाता था। अब यह 20 मिनट अधिक जलेगा, अवशेष भी महज 0.52 ग्राम ही बचेगा। यानी बिल्कुल प्रदूषण नहीं होगा। अल्कोजेल को कहीं भी लेकर आ-जा सकते हैं और किसी भी तापमान में रख सकते हैं।
कुकर में 170 ग्राम की फिलिंग
कुकिंग कुकर स्टोव में एक बार में 170 ग्राम अल्कोजेल भरते हैं। खत्म होने पर रीफिल कर सकते हैं। कुकर पर छोटे भगौने, कुकर, कड़ाही, केतली, बीकर आदि रखकर चाय, सब्जी बना सकते हैं।