माइनस 60 डिग्री तापमान में भारतीय सैनिक रहेंगे मुस्तैद, पहाड़ों पर महफूज रखेगा थ्री लेयर सूट
अभी तक ऑस्ट्रिया स्विटजरलैंड व डेनमार्क से आने वाला डिफेंस सूट पहनते रहे जो माइनस 40 डिग्री तक ही काम करता है।
कानपुर, विक्सन सिक्रोडिय़ा। जान की परवाह किए बगैर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले भारतीय सैनिकों का अब बर्फीले तूफान कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएंगे। सर्द हवाएं और बारिश के बीच माइनस 60 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी वह अब डटकर सरहद की निगहबानी कर सकेंगे। कश्मीर, सियाचिन, लेह व लद्दाख के पहाड़ों पर शून्य से माइनस डिग्री तापमान में भारी-भरकम कपड़े नहीं पहनने पड़ेंगे और करीब सवा किलो वजन भी कम रहेगा। बर्फबारी के बीच पहाड़ों पर उन्हें स्वदेशी टेक्निकल नायलॉन फैब्रिक का थ्री लेयर सूट महफूज रखेगा।
कानपुर के उद्यमी ने बनाया सूट
अबतक ऑस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड व डेनमार्क से आने वाले सूट माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान तक ही सैनिकों की हिफाजत कर पाते थे लेकिन उससे ज्यादा कारगर सूट को आइआइटी खडग़पुर से प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी से एमटेक करने वाले कानपुर के उद्यमी मयंक श्रीवास्तव ने आत्मनिर्भर भारत के तहत नायलॉन फैब्रिक का थ्री लेयर सूट तैयार किया है। परीक्षण में खरा उतरने के बाद सैनिकों के लिए वह पहली खेप भेजने की तैयारी कर रहे हैं।
ऐसे करता है हिफाजत, वजन भी कम
इस 'एक्सट्रीम कोल्ड वेदर क्लॉथिंग सिस्टम' की सबसे नीचे की लेयर थर्मल गारमेंट की है जो त्वचा से चिपकी रहती है। शरीर को गर्म रखकर यह लेयर पसीने को ऊपर की ओर फेंकती रहती है। जिससे शरीर गर्म रहने के साथ सूखा रहता है। दूसरी लेयर का काम अंदर की गर्माहट को रोके रखना है। सबसे ऊपरी लेयर हवा व पानी को शरीर तक पहुंचने नहीं देती है। इसका वजन महज दो किलो 100 ग्राम है जबकि पहले के गर्म कपड़ों का वजन सवा तीन किलो तक था।
टेक्निकल टेक्सटाइल के लिए सरकार ने रखा 1480 करोड़ का बजट
एनसीएफडी कंपनी के सीईओ मयंक श्रीवास्तव ने बताया कि बर्फीले क्षेत्रों में रहने वाले सैनिकों के हल्के व गर्म कपड़े बनाने के लिए सरकार का जोर टेक्निकल टेक्सटाइल पर है। इसके लिए 1480 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। इसमें 620 करोड़ रुपये ऐसे सूट के लिए हैं। सरकारी गजट के अनुसार अभी टेक्निकल टेक्सटाइल से बनने वाले उत्पाद इस्तेमाल की अपेक्षा महज चार फीसद बन रहे हैं। सरकार की मंशा है कि अब इन्हें आयात करने के बजाय यहीं बनाया जाए। इसे बनाने में तीन महीने का समय लगा। पहले इसका परीक्षण निजी प्रयोगशाला में हुआ। उसके बाद सेना मुख्यालय में इसे परीक्षण के लिए भेजा। सेना ने इसे उपयुक्त बताया है। वर्ष 2024 तक कार्बन फाइबर, कार्बन फैब्रिक, नायलॉन कोटेड फैब्रिक व बैलेस्टिक फैब्रिक से इन्हें तैयार करने पर जोर है।