आइआइटी के पीएचडी छात्रो की डिग्री पर लगेगी दो मुहर
जागरण संवाददाता, कानपुर: आइआइटी के पीएचडी छात्रो की डिग्री पर दो संस्थानो की मुहर लगे
जागरण संवाददाता, कानपुर: आइआइटी के पीएचडी छात्रो की डिग्री पर दो संस्थानो की मुहर लगेगी। पहली मुहर आइआइटी और दूसरी कर्टिन यूनिवर्सिटी आस्ट्रेलिया की होगी। पीएचडी मे रजिस्ट्रेशन के बाद दोनो संस्थानो के वरिष्ठ प्रोफेसर की टीम जिन छात्रो को चुनेगी, वे इस नई शिक्षा व्यवस्था के तहत पढ़ाई कर सकेगे। इन छात्रो की तीन साल की पढ़ाई आइआइटी मे होगी जबकि एक साल उन्हे कर्टिन यूनिवर्सिटी मे पढ़ने का मौका मिलेगा। संयुक्त पीएचडी डिग्री प्रोग्राम के लिए दोनो संस्थानो से करीब 25 छात्रो का चयन किया जाएगा।
सिविल इंजीनिय¨रग, मैकेनिकल इंजीनिय¨रग, कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रानिक्स व मैनेजमेट समेत सात पाठ्यक्रमो मे पीएचडी के लिए छात्रो का चयन होगा। चयन होने के बाद उनका खर्च दोनो संस्थान उठाएंगे। छात्र जिस संस्थान मे पढ़ेगा, पूरी व्यवस्था उसी को करनी होगी। सोमवार को आइआइटी के कार्यवाहक निदेशक प्रो. मणीद्र अग्रवाल और कर्टिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अभिजीत मुखर्जी ने इस करारनामे पर हस्ताक्षर किए। पीएचडी के अलावा संयुक्त शोध, शैक्षणिक आदान प्रदान, इंडस्टि्रयल रिसर्च और स्टार्टअप सपोर्ट के रूप मे भी दोनो संस्थान मिलकर काम करेगे। मेलबर्न यूनिवर्सिटी आस्ट्रेलिया, बुफेलो यूनिवर्सिटी न्यूयॉर्क व नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के बाद यह आइआइटी प्रशासन का शैक्षिक आदान प्रदान को लेकर बड़ा करार है। प्रो. अभिजीत मुखर्जी ने बताया कि पिछले साल आस्ट्रेलिया मे शैक्षणिक शोध कार्य के लिए सरकार ने सात मिलियन डॉलर का बजट दिया था, जबकि इंडस्टि्रयल रिसर्च का बजट दस मिलियन डॉलर था। इस संयुक्त शोध कार्यक्रम के अंतर्गत भविष्य मे मिलने वाले शैक्षिक बजट का लाभ भारत के छात्रो को भी मिलेगा।
भारत के पर्यावरण को बचाएगी तरल प्राकृतिक गैस :
आइआइटी के पूर्व छात्र रहे प्रो. अभिजीत मुखर्जी भारत के साथ मिलकर तरल प्राकृतिक गैस पर शोध कार्य कर रहे है। इससे पर्यावरण को नुकसान से बचाने के साथ डीजल के बढ़ते दामो को भी कम किया जा सकेगा। तरल प्राकृतिक गैस उपलब्ध न होने से जहा उद्योगो की उत्पादन लागत बढ़ रही है, वही पर्यावरण को भी नुकसान पहुच रहा है। भविष्य मे ऊर्जा की जरूरतो के लिहाज से प्राकृतिक गैस सबसे महत्वपूर्ण श्रोत है। वही दूसरी ओर वह एनटीपीसी से निकलने वाली राख से मजबूत बिल्डिंग मेटेरियल बनाने पर काम कर रहे है। बीच-बीच मे करार को वह आस्ट्रेलिया से भारत आते रहते है।