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मरीज की शिफ्टिंग की मुश्किल होगी आसान, कई खूबियों वाला है ये ऑटोमेटिक स्ट्रेचर Kanpur News

आइआइटी के पूर्व छात्र ने रेट्रोफिट पेशेंट ट्रांसफर सिस्टम पर आधारित स्ट्रेचर बनाया है।

By AbhishekEdited By: Published: Tue, 29 Oct 2019 09:26 AM (IST)Updated: Wed, 30 Oct 2019 10:35 AM (IST)
मरीज की शिफ्टिंग की मुश्किल होगी आसान, कई खूबियों वाला है ये ऑटोमेटिक स्ट्रेचर Kanpur News
मरीज की शिफ्टिंग की मुश्किल होगी आसान, कई खूबियों वाला है ये ऑटोमेटिक स्ट्रेचर Kanpur News

कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। अब मरीज को एक बेड से दूसरे बेड में शिफ्ट करते समय पीड़ा नहीं झेलनी होगी। वह बड़ी आसानी से ईसीजी, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड व ऑपरेशन थिएटर में स्थानांतरित किए जा सकेंगे। आइआइटी के मास्टर ऑफ डिजाइन के पूर्व छात्र आशीष मोहनदास ने ऐसी रेट्रोफिट पेशेंट ट्रांसफर सिस्टम से लैस ऑटोमेटिक स्ट्रेचर बनाया है, जिससे मरीजों को लाने ले जाने की मुश्किल आसान हो जाएगी। रोलिंग बेल्ट मैकेनिज्म पर बनाया गया यह स्ट्रेचर किसी भी सामान्य स्ट्रेचर में फिट किया जा सकेगा। इसके लिए उन्हें जेम्सटाइसन व ताइवान इंटरनेशनल स्टूडेंट डिजाइन कंपटीशन के दो अंतरराष्ट्रीय अवार्ड से नवाजा गया है।

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मरीज को बेड से उठाने में चार आदमियों की जरूरत नहीं होगी

बेड से मरीज को उठाने का काम जहां पहले चार आदमी किया करते थे जिसमें उन्हें भी बहुत तकलीफ होती थी वह काम अब यह स्ट्रेचर बड़ी आसानी से करेगी। ऑटोमेटिक स्ट्रेचर को बनाने के लिए उन्होंने साल भर तक मरीजों पर अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि गंभीर फ्रेक्चर से लेकर किसी बड़े घाव का इलाज करा रहे मरीज को कई बार अलग-अलग जांचों के लिए लाया ले जाया जाता है। उन्हें बेड से स्ट्रेचर पर पहुंचाने के लिए बेडशीट पकड़कर उठाया जाता है।

इसके अलावा रोजाना अलग अलग मरीजों को उठाने वालों के कंधों में दर्द की शिकायत मिली। इसके लिए रेट्रोफिट पेशेंट ट्रांसफर सिस्टम बनाया गया। जो ट्रेड मिल की तरह घूमता रहता है और मरीज को बेड से बड़ी आसानी से उठाकर दूसरे बेड व स्ट्रेचर पर पहुंचाता है। बस इसके लिए स्ट्रेचर व बेड के स्तर को एक समान करना होता है। मैकेनिकल इंजीनियङ्क्षरग के प्रोफेसर नचिकेता तिवारी के गाइडेंस में उन्होंने इसका प्रोटोटाइप तैयार किया है।

एम्स से फैलोशिप कर रहे हैं

आशीष मोहनदास अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली (एम्स) से फैलोशिप कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दो साल के अंदर मरीजों को इसका लाभ मिलने लगेगा। इस सिस्टम को तैयार करने से पहले एसजीपीजीआइ समेत कई अस्पतालों में भर्ती मरीजों की केस स्टडी की।


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