सामवेद सुनना है तो चले आएं छोटी काशी, यहां के हर कंठ में है बसता Kanpur News
उन्नाव के बड़ौरा गांव में रहने वालों को कंठस्थ है सामवेद पूजा पाठ में गाकर पढ़ते हैं ऋचाएं।
कानपुर, [अमित मिश्रा]। अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये। नि होता सत्सि बर्हिषि।। त्वमग्ने यज्ञानाम् होता विश्वेषाम् हित:। देवेभिर्मानुषे जने।। ये पंक्तियां कहां से हैं और किसकी हैं शायद तमाम लोगों के जेहन में यह प्रश्न कौंध रहा होगा। गायन विधा से पढ़े जाने वाले सामवेद की इन लाइनों को पढऩे के बाद यह प्रश्न होना भी चाहिए क्योंकि सामान्य रूप से यह सुनाई भी नहीं पड़ती हैं। सिवाय बड़ौरा गांव या उससे जुड़े लोगों के मुख से। जी हां कहा जाता है कि यहां के पुराने लोगों को सामवेद कंठस्थ है। वह इसे पूजन व अन्य आध्यात्मिक क्रियाकलापों में पढ़ते भी हैं, वह भी सामान्य रूप ने नहीं बल्कि गायन विधा से।
गांव में है चार हजार की आबादी
अब आप के मन में बड़ौरा को लेकर भी तमाम सवाल आने लगे होंगे। यह एक गांव है जो लखनऊ और कानपुर के बीच बसे उन्नाव जिले के सदर तहसील में आता है। यह गांव अपने अतीत के साथ बहुत से रोचक किस्से कहानियों के लिए भी जाना जाता है। चार हजार आबादी वाले गांव में अधिकांश लोग आध्यात्मिक विचारों के साथ साथ अपने दैनिक जीवन मे भी उसी का अनुश्रवण करते हैं। इसका प्रमाण यह भी है कि गांव की साक्षरता 85 फीसद है, यहां आचार्यत्व कर्म करने वाले करीब सौ से अधिक लोग हैं। इसी कारण से इस गांव की एक अलग पहचान भी है।
काशी नरेश ने दिया छोटी काशी नाम
कभी प्रात: ब्रह्म मुहुर्त में कानों में गूंजने वाली सामवेद की स्वलहरियां आज कल्पना मात्र रह गई हैं। सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत खो रहे बड़ौरा की इस दशा को लेकर गांव केबुजुर्ग ओम प्रकाश त्रिपाठी बताते हैं कि वर्ष 1880 के करीब काशी नरेश महाराज ईश्वरी नारायण सिंह ने राज्य में खुशहाली के लिए एक विशाल यज्ञ किया। बड़ौरा गांव के सामवेदी आचार्यों की विद्वता की जानकारी होने पर उन्होंने उन्होंने यज्ञ सम्पन्न कराने के लिए ग्यारह आचार्यों को आमंत्रित किया था। एक सप्ताह चले यज्ञ को पूरे विधि-विधान के साथ बड़ौरा के आचार्यों ने सामवेद की 'गेय' विधा से सम्पन्न कराया। इससे प्रसन्न होकर राजा ईश्वरी नारायण (काशी नरेश) ने आचार्यों को ढेर सारे उपहार भेंट कर सम्मानित किया था। इतना ही नहीं बड़ौरा गांव को छोटी काशी का नाम भी दिया। इसी के बाद से गांव की पहचान भी इस नाम से हुई। अब से लोग छोटी काशी नाम से भी पुकारते हैं।
झांडेश्वर के स्वयंभू लिंग और सिद्ध हनुमान मंदिर भी है पहचान
छोटी काशी नाम को लेकर काशी और बड़ौरा में एक और समानता है। यहां पर भी काशी विश्वनाथ की तरह ही बाबा झांडेश्वर का प्राचीन मंदिर स्थापित है। मंदिर में स्वयं-भू शिव लिंग है। इसी तरह गांव के दूसरे छोर पर रूद्रावतार हनुमान का भव्य मंदिर है। दोनों ही मंदिरों लोगों की आस्था का प्रतीक हैं।
आठों दिशाओं में है देवी देवता का वास
लोननदी तट पर बसे गांव की भौगोलिक स्थिति सर्वतोभद्र है। यानी आठों दिशाओं पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैऋृत्य, वायव्य, ईशान सभी दिशाओं में देवी अथवा देवता के सिद्ध मंदिर स्थापित हैं। गांव के लोगों का मानना है कि इन्हीं की देवी देवताओं की कृपा हमेशा गांव के लोगों को हमेशा आपदा से दूर रखती है।
1870 से दी जा रही सामवेद की शिक्षा
लोन नदी के किनारे बसे बड़ौरा गांव को आचार्यों का गांव यूं ही नहीं कहा जाता। बल्कि यहां करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व से ही इसकी पाठशाला सजती थी। गांव के बुजुर्गों की माने तो वर्ष 1870 में गांव में एक गुरुकुल की स्थापना की गई थी। इस आवासीय विद्यालय में बकायदा सामवेद की शिक्षा दीक्षा दी जाती थी। यहां शिक्षा लेने वाले छात्र ही आगे चलकर विद्वान आचार्य के रूप में पहचान पाए।
विद्यालय का नहीं रहा कोई पुरुषाहाल
गांव को पहचान देने वाले करीब डेढ़ सौ दशक पुराने विद्यालय की दशा को देखकर यहां के लोगों का दर्द आज भी झलकता है। गांव के वृद्ध जन बताते हैं कि आजादी के बाद सामवेद की शिक्षा दीक्षा का काम लगातार चलता रहा, लेकिन पिछले करीब तीन दशक में गांव का यह स्कूल मात्र सरकारी जूनियर हाईस्कूल तक सीमित हो गया। सामवेद की शिक्षा अब यहां नहीं दी जाती है। बल्कि अब सरकारी सहायता से बेसिक शिक्षा विभाग इस विद्यालय का संचालन कर रहा है। आवासीय व्यवस्था इसके पहले ही समाप्त हो चुकी है।
ये है सामवेद
सामवेद गीत-संगीत प्रधान है। प्राचीन आर्यों द्वारा साम-गान किया जाता था। सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है और इसके 1875 मन्त्रों में से 69 को छोड़ कर सभी ऋगवेद के हैं। केवल 17 मन्त्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं। फिर भी इसकी प्रतिष्ठा सर्वाधिक है, जिसका एक कारण गीता में कृष्ण द्वारा वेदानां सामवेदोस्मि कहना भी है। सामवेद यद्यपि छोटा है परंतु एक तरह से यह सभी वेदों का सार रूप है और सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये है। पुराणों में जो विवरण मिलता है उससे सामवेद की एक सहस्त्र शाखाओं के होने की जानकारी मिलती है। वर्तमान में प्रपंच ह्रदय, दिव्यावदान, चरणव्युह तथा जैमिनि गृहसूत्र को देखने पर 13 शाखाओं का पता चलता है। इन तेरह में से तीन आचार्यों की शाखाएं मिलती हैं।
(1) कौमुथीय
(2) राणायनीय
(3) जैमिनीय।