गर्भ में यदि बच्चे का बढ़ रहा है वजन तो ये है मधुमेह का संकेत
गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज के दुष्प्रभाव पर कॉग्स की गोष्ठी में डाक्टरों ने रखे विचार नियमित जांच से बचा जा सकता।
By AbhishekEdited By: Published: Sun, 10 Mar 2019 11:56 PM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2019 11:48 AM (IST)
कानपुर, जागरण संवाददाता। गर्भ में बच्चे के वजन बढऩा पहले तंदरुस्ती की निशानी था। अब यह सेहत के लिए नुकसानदेह और मधुमेह (डायबिटीज) का संकेत है। ये बातें रविवार को गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज के दुष्प्रभाव पर कानपुर आब्स एवं गॉयनकोलॉजी सोसाइटी (कॉग्स) की विजय इंटरनेशनल में हुई गोष्ठी में डॉ. नंदनी रस्तोगी एवं डॉ. ब्रिज मोहन ने कहीं।
उन्होंने कहा कि जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावस्था के दौरान होने वाली डायबिटीज) गंभीर समस्या बन रही है। इसकी चपेट में 15 फीसद गर्भवती आती हैं, जिससे दो पीढिय़ां प्रभावित होती हैं। जांच कराकर समय से नियंत्रित करने से स्वयं व बच्चे को बचा सकते हैं। डायबिटीज नियंत्रित नहीं करने से गर्भ में बच्चे का आकार और वजन बढ़ जाता है। बच्चे का वजन साढ़े तीन किलो से अधिक होने पर सामान्य प्रसव नहीं होता, सीजेरियन करना पड़ता है। ऐसे बच्चों को 15-16 वर्ष की उम्र में सामान्य बच्चों की तुलना में 8-10 गुना अधिक डायबिटीज का खतरा रहता है। इसलिए गर्भधारण के पहले महीने और पांचवें महीने में ग्लूकोज टालरेंस टेस्ट (जीटीटी) जरूर कराएं। डायबिटीज 140 से ऊपर हो तो नियंत्रित करें। डॉ. राशि मिश्रा, डॉ. किरण सिन्हा मौजूद थीं।
गर्भवती इंसुलिन लें, दवाएं नहीं
गर्भावस्था में डायबिटीज हो जाए तो उसे पहले खानपान एवं नियमित व्यायाम से नियंत्रित करें। नियंत्रित न होने पर इंसुलिन लें, इससे गर्भस्थ शिशु को नुकसान नहीं होता। दवाओं से साइड इफेक्ट का खतरा रहता है।
डायबिटीज से बांझपन की समस्या
वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. मधु लूंबा ने कहा कि लंबे समय तक अनियंत्रित डायबिटीज से बांझपन की समस्या होती है। ऐसी महिलाओं का मासिक धर्म गड़बड़ा जाता है। उनमें अंडे नहीं बनते हैं। बच्चेदानी का फंक्शन भी खराब हो जाता है। पुरुषों का स्पर्म काउंट गिर जाते हैं। गर्भ नहीं ठहरता है, ठहरने पर गर्भपात हो जाता है।
पेट में मर जाते हैं बच्चे
कॉग्स की अध्यक्ष डॉ. नीलम मिश्रा ने कहाकि डायबिटीज से पीओसीडी और मोटापे की समस्या होती है। बच्चे बड़े पैदा होते हैं। माइक्रोसोमिया होने से बच्चे पेट में ही मर जाते हैं। ऐसी महिलाओं का 36 हफ्ते में ही नार्मल या सीजेरियन प्रसव कराना चाहिए।
यह है वजह
अनुवांशिक कारण, अधिक उम्र में शादी, मोटापा, पीसीओडी, अनियंत्रित खानपान और व्यायाम न करना है।
उन्होंने कहा कि जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावस्था के दौरान होने वाली डायबिटीज) गंभीर समस्या बन रही है। इसकी चपेट में 15 फीसद गर्भवती आती हैं, जिससे दो पीढिय़ां प्रभावित होती हैं। जांच कराकर समय से नियंत्रित करने से स्वयं व बच्चे को बचा सकते हैं। डायबिटीज नियंत्रित नहीं करने से गर्भ में बच्चे का आकार और वजन बढ़ जाता है। बच्चे का वजन साढ़े तीन किलो से अधिक होने पर सामान्य प्रसव नहीं होता, सीजेरियन करना पड़ता है। ऐसे बच्चों को 15-16 वर्ष की उम्र में सामान्य बच्चों की तुलना में 8-10 गुना अधिक डायबिटीज का खतरा रहता है। इसलिए गर्भधारण के पहले महीने और पांचवें महीने में ग्लूकोज टालरेंस टेस्ट (जीटीटी) जरूर कराएं। डायबिटीज 140 से ऊपर हो तो नियंत्रित करें। डॉ. राशि मिश्रा, डॉ. किरण सिन्हा मौजूद थीं।
गर्भवती इंसुलिन लें, दवाएं नहीं
गर्भावस्था में डायबिटीज हो जाए तो उसे पहले खानपान एवं नियमित व्यायाम से नियंत्रित करें। नियंत्रित न होने पर इंसुलिन लें, इससे गर्भस्थ शिशु को नुकसान नहीं होता। दवाओं से साइड इफेक्ट का खतरा रहता है।
डायबिटीज से बांझपन की समस्या
वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. मधु लूंबा ने कहा कि लंबे समय तक अनियंत्रित डायबिटीज से बांझपन की समस्या होती है। ऐसी महिलाओं का मासिक धर्म गड़बड़ा जाता है। उनमें अंडे नहीं बनते हैं। बच्चेदानी का फंक्शन भी खराब हो जाता है। पुरुषों का स्पर्म काउंट गिर जाते हैं। गर्भ नहीं ठहरता है, ठहरने पर गर्भपात हो जाता है।
पेट में मर जाते हैं बच्चे
कॉग्स की अध्यक्ष डॉ. नीलम मिश्रा ने कहाकि डायबिटीज से पीओसीडी और मोटापे की समस्या होती है। बच्चे बड़े पैदा होते हैं। माइक्रोसोमिया होने से बच्चे पेट में ही मर जाते हैं। ऐसी महिलाओं का 36 हफ्ते में ही नार्मल या सीजेरियन प्रसव कराना चाहिए।
यह है वजह
अनुवांशिक कारण, अधिक उम्र में शादी, मोटापा, पीसीओडी, अनियंत्रित खानपान और व्यायाम न करना है।
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