चेक बाउंस करा दी तो भी देना होगा पैसा
केस एक : किसान भीखम सिंह ने अपनी जमीन बेची। जमीन खरीदने वाले ने 10 और 15 लाख रुपये की द
केस एक : किसान भीखम सिंह ने अपनी जमीन बेची। जमीन खरीदने वाले ने 10 और 15 लाख रुपये की दो चेकें दी, दोनों चेक बाउंस हो गईं। सब कुछ गंवाकर भीखम इंसाफ मांगने कोर्ट पहुंचा। एसीएमएम प्रथम की कोर्ट में 14 अक्टूबर 2016 को मुकदमा दाखिल हुआ। एक वर्ष बीत चुका हैं, लेकिन अभी तक चेक जारी करने वाला हाजिर नहीं हुआ।
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केस दो : बेनाझाबर निवासी विजय कुमार सिंह ने एक फाइनेंस कंपनी को 62 हजार रुपये की चेक दी थी। 10 फरवरी 2015 को चेक बाउंस हो गया। स्पेशल सीजेएम में मुकदमा दाखिल हुआ। करीब तीन वर्ष गुजरने को हैं। कोर्ट ने समन, वारंट और अब कुर्की नोटिस भी जारी कर दी लेकिन आरोपी अभी तक कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ।
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केस तीन : दिल्ली की एक कंपनी ने शहर के शिशिर खरे को 2.50 लाख रुपये का चेक दिया था। चेक बाउंस हुआ तो शिशिर ने 25 जुलाई 2011 को एसीएमएम तृतीय की कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया। छह वर्ष से ज्यादा बीत गए लेकिन कंपनी की ओर से कोई भी कोर्ट में पेश नहीं हुआ।
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आलोक शर्मा, कानपुर : ये तीन
उदाहरण यह बताने के लिए काफी हैं कि किस तरह लोगों ने चेकों को धोखाधड़ी का जरिया बना लिया है। चेक कैशलेस लेनदेन का सशक्त जरिया हैं लेकिन चेक से लेनदेन के नाम पर फर्जीवाड़ा भी तेजी से बढ़ा है। बैंक खाते में पर्याप्त धनराशि न होने से चेक बाउंस हो जाती है और पीड़ित इंसाफ के लिए भटकते हैं। इसका बड़ा कारण एनआइ (निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट) एक्ट के लचीले प्रावधान हैं। इन्हें देखते हुए अब केंद्र सरकार ने एनआइ एक्ट में संशोधन का मन बनाया है। बीते शुक्रवार को कैबिनेट इस प्रस्ताव को पास कर चुकी है। संसद के शीतकालीन सत्र में इस पर मुहर लग सकती है। इसके बाद मुकदमे के दौरान आरोपी को अदालत में धनराशि जमा करनी होगी। यह धनराशि पीड़ित को बतौर अंतरिम राहत मिल जाएगी।
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संशोधन में यह हैं प्रावधान
वरिष्ठ अधिवक्ता कौशल किशोर शर्मा बताते हैं कि संशोधन के बाद ट्रायल कोर्ट को अधिकार होगा कि वह जमानत पर सुनवाई से पूर्व विवादित धनराशि का कुछ हिस्सा बतौर अंतरिम राहत जमा करा सकेगी।
- अभियुक्त को सजा होती है तो उसकी अपील पर सुनवाई करने से पूर्व अपीलीय कोर्ट जुर्माने की धनराशि का बड़ा हिस्सा या पूरा पैसा जमा कराएगी जो वादी को मिलेगा।
- यह भी प्रावधान है कि अभियुक्त बरी हुआ तो ट्रायल के दौरान वादी को दी गई उक्त धनराशि ब्याज समेत लौटानी होगी। संशोधन के प्रावधान मौजूदा सुनवाई पर चल रहे मामलों में भी लागू होंगे।
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इसलिए हुआ संशोधन
केंद्र सरकार देश में कैशलेस व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहती है। एनआइ एक्ट के प्रावधान सख्त न होने से चेक से लेनदेन भरोसेमंद नहीं रह गया है। चेक के माध्यम से भुगतान की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए यह संशोधन हुआ है।
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यह हैं मौजूदा हालात
चेक बाउंस हुई तो पीड़ित कोर्ट में मुकदमा दाखिल करता है। आरोपी वर्षो हाजिर ही नहीं होता है। हाजिर हुआ भी तो जमानत आसानी से मिल जाती है। फिर मुकदमा तारीखों में उलझ जाता है। वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेश सिंह चौहान बताते हैं कि एनआइ एक्ट में तीन वर्ष तक सजा और चेक पर अंकित धनराशि का दोगुने जुर्माने तक का प्रावधान है। चूंकि सजा तीन वर्ष है इसलिए अपील के लिए तुरंत जमानत भी मिल जाती है। ऐसे में कई साल चले मुकदमे की सुनवाई फिर शुरू हो जाती है।
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जिले में छह हजार से ज्यादा मामले लंबित
चेक बाउंस के बढ़ते मामलों का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जिले में छह हजार से ज्यादा वाद लंबित हैं। इनमें कई तो लाखों रुपये के लेनदेन से जुड़े हुए हैं।