Holi Celebration 2021: क्या आप जानते हैं, भारत में 13 प्रकार से मनाई जाती है होली, तस्वीरों में देखें
Types Of Holi In India अनेकता में एकता की अवधारणा को साबित करने वाला भारत ही एकमात्र देश है। भारत में अपने धर्म के लिये एक-दूसरे की भावनाओं और भरोसे को ठेस पहुंचाए बिना कई धर्म संस्कृतियों और परंपराओं के लोग एक साथ रहते हैं।
कानपुर, [शाश्वत गुप्ता]। Types Of Holi In India भारत एक अधिक जनसंख्या वाला देश है तथा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है क्योंकि यहां पर 'विविधता में एकता' का अनूठा स्वरूप देखा जाता है। संस्कृति, परंपरा, धर्म और भाषा से अलग होने के बावजूद भी लोग यहां पर एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, साथ ही भाई-चारे की भावना के साथ एकजुट होकर रहते हैं। भारत की यही खूबसूरती देश के लोकतंत्र के मजबूत होने का प्रमाण है। भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों के निवास करने के कारण यहां वर्ष भर त्योहारों का सिलसिला जारी रहता है। जनवरी में लोहड़ी से दिसंबर के क्रिसमस तक भारत में जो सद्भाव दिखता है वह देश की एकजुटता को बयां करने के लिए पर्याप्त है। देश में मनाए जाने वाले त्योहारों की कड़ी में एक त्योहार रंगों का भी है। जिसका इंतजार लोग वर्ष भर करते हैं।
..लेकिन क्या आप जानते हैं, भारत के कई प्रांतों में होली का आयोजन अलग-अलग तरह से होता है। यदि नहीं तो खबरों की इस कड़ी में हम आपको बताएंगे देश में मनाई जाने वाली कुछ स्पेशल होली के तरीकों के बारे में:
चिता भस्म होली: यह होली मंदिरों की नगरी काशी में खेली जाती है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के महाउत्सव में शामिल नहीं हो पाने वाले महादेव के प्रिय गण, भूत, प्रेत, पिशाच आदि के साथ बाबा चिता भस्म होली खेलने के लिए महाश्मशान में आते हैं। चिता भस्म होली खेलते समय यहां का नजारा अलौकिक हो जाता है। इसकी शुरुआत बाबा मसाननाथ की विधिवत पूजा के साथ होती है। इस दौरान बाबा को जया, विजया, मिठाई और सोमरस का भोग लगाया जाता है। बाबा और माता को चिता भस्म व गुलाल चढ़ने के साथ होली का आगाज हो जाता है।
देवर-भाभी होली और दही हांडी: यह होली भारत के हरियाणा में मनाई जाती है। देश के लोकप्रिय होली उत्सवों में से एक हरियाणवी होली है, जिसे भाभी-देवर होली के रूप में भी जाना जाता है। इतना ही नहीं, हरियाणा में दही हांडी भी मनाई जाती है। इसके अंतर्गत सड़क पर छाछ से भरा बर्तन लटका दिया जाता है और पुरुष उस बर्तन को तोड़ने की कोशिश करते हैं जबकि महिलाएं उन पर पानी डालती हैं।
लठमार होली: देश में होली की वास्तविक मस्ती तो ब्रज में देखने को मिलती है। यहां के होली के रंगों में सराबाेर होने को प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। ब्रज में होली की मौज-मस्ती करीब एक महीने तक चलती है। यहां पर बरसाना में खेली जाने वाली लठ मार होली देश भर में काफी लोकप्रिय है। यहां लोग मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव जैसे क्षेत्रों में एक महीने तक पारंपरिक होली का आनंद लेते हैं। बरसाना अपनी लड्डृ होली के लिए भी जाना जाता है, जिसमें लड्डू इधर-उधर फेंके जाते हैं और भक्ति गीत गाए जाते हैं।
फूलों की होली: यहां होली राधा और कृष्ण के प्रेम के लिए विख्यात और पवित्र शहर वृंदावन में मनाया जा है। यहां होली के दिन से पहले रंग खेलना शुरू होता है, और लोगों को कृष्ण मंदिरों में फूल, पवित्र जल और हर्बल रंगों से छिड़का जाता है। इसी तरह, पुष्कर में फूलों की होली लोगों में उत्साह और ऊर्जा का संचार करती है।
कुमाउनी होली: उत्तराखंड के कुमाउ क्षेत्र में हर साल कुमाउनी होली का आयोजन धूम-धाम से होता है। यहां मौजूद सभी लोगों के लिए ये त्योहार एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यहां होली को उत्साह लोगों में करीब दो महीनों तक रहता है। यहां पर होली विभिन्न प्रकार के संगीत समारोह के रूप में मनाई जाती है, इसे बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली के नाम से भी माना जाता है।
फगुआ होली: इस होली का आयोजन बिहार प्रांत में होता है। यहां की फगुआ होली को भोजपुरी होली भी कहा जाता है। जो कि बड़े ही जोश के साथ मनाई जाती है और यहां होली पर सिर्फ रंगों का ही नहीं बल्कि कीचड़ का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा होली की खुशी में यहां के लोग इस दिन जमकर भांग भी चढ़ाते हैं। भोजपुरी बोली में गाए जाने वाले लोकप्रिय लोकगीतों की आवाज से माहौल और भी खुशनुमा हो जाता है।
बसंत उत्सव या बंगाली होली: जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि ये त्योहार पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। वहां होली को बसंत उत्सव के नाम से मनाया जाता है। प. बंगाल के एक छोटे-से शहर शांति निकेतन में इसे धूमधाम से मनाया जाता है। वहां पर त्योहार की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। होली से एक दिन पहले डोल जात्रा निकाली जाती है। इसमें महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहनकर राधा-कृष्ण की पूजा करती हैं।
रंग पंचमी: देश में रंग पंचमी के नाम से होली महाराष्ट्र में मनाई जाती है। यहां लोग होलिका के पुतले को जलाने के बाद उत्सव की शुरुआत करते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह समारोह पूर्णिमासी दशमी पर सूर्यास्त के बाद किया जाता है। अगले दिन, जिसे फाल्गुन कृष्णपक्ष पंचमी होती है, जिसे रंगपंचमी कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से पूरनपोली नामक व्यंजन अवश्य बनाया जाता है।
शिग्मो फेस्टिवल: गाेवा का यह त्योहार प्राकृतिक रंगों और ग्रामीण लिबास के साथ होली का अनुभव कराता है। शिगमो फेस्टिवल पर्यटक और अन्य आगंतुकों के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है। यह फाल्गुन के माह में मनाई जाने वाली पूर्व-होली परंपरा है। इसमें स्थानीय लोग सुंदर पोशाक पहनते हैं और एक पूरे जुलूस को लेकर समूहों में सड़कों पर नृत्य करते हैं। यह त्योहार उत्साह और उत्साह के साथ रंगों के कार्निवल में बदल जाता है।
होला मोहल्ला: पंजाब के सिखों को उनकी अत्यधिक बहादुरी, समाज सेवा और स्पष्टता के लिए पहचाना जाता है। होली के रंगों के बीच होला मोहल्ला का त्योहार अपने कलात्मक कलाकारों के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह मार्च के महीने में तीन दिनों के लिए मनाया जाता है। तिथियां चंद्र कैलेंडर के अनुसार तय की जाती हैं और वो ज्यादातर रंगों के त्योहार के साथ मेल खाती हैं। मुख्य कार्यक्रम आनंदपुर साहिब में होता है, जो एक ऐसा स्थान है जो समुदाय के लिए महान ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है।
डोला उत्सव: डोला उत्सव ओडिशा के तटीय क्षेत्र में मनाया जाने वाला छह दिवसीय त्योहार है। यह भगवान श्रीकृष्ण और राधा की पूजा करने के लिए किए गए सभी अनुष्ठानों का केंद्र है। डोला पूर्णिमा के दिन, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को मंदिर से बाहर लाया जाता है ताकि भक्त उनके साथ होली खेल सकें। सभा रंग-बिरंगे लोगों के भजन गाते हुए जुलूस में बदल जाती है। अधिकतर, होली का त्योहार डोला पूर्णिमा के अगले दिन मनाया जाता है।
मंजुल कुली: केरल में होली को मंजुल कुली के नाम से जाना जाता है, जिसे गोसरीपुरम थिरुमा के कोंकणी मंदिर में मनाया जाता है। पहले दिन, भक्त मंदिर में आते हैं, दूसरे दिन, लोग एक दूसरे को रंगीन पानी का छिड़काव करते हैं, जिसमें हल्दी होती है और पारंपरिक लोक गीतों पर नृत्य किया जाता है।
याओशांग: इस रंगीन त्योहार को मणिपुर में पांच दिनों के लिए मनाया जाता है और भगवान 'पखंगबा' को श्रद्धांजलि देने के लिए 'यवोल शांग' के नाम से जाना जाता है। सूर्यास्त के बाद, लोग इस उत्सव की शुरुआत योसंग मेई थाबा नामक जलती हुई परंपरा से करते हैं। जिसके बाद की परंपरा' नाकथेंग है जिसमें बच्चों को दान लेने के लिए हर घर में जाने की अनुमति दी जाती है। स्थानीय बैंड दूसरे दिन मंदिरों में प्रदर्शन करते हैं। लड़कियां दूसरे और तीसरे दिन दान मांगती हैं और आखिरी दो दिनों में लोग एक दूसरे पर पानी और रंग छिड़क कर इस त्योहार को मनाते हैं।