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दुनिया ने भारत से सीखा शह-मात का खेल, राजा हर्षवर्धन काल में खेला जाने वाला चतुरंग ही है शतरंज

जर्मनी के इतिहासकार एजे ईडर और डेनमार्क के डॉ. जैकब ने शोध में सिद्ध किया है।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 18 Jan 2020 05:03 PM (IST)Updated: Sat, 18 Jan 2020 05:03 PM (IST)
दुनिया ने भारत से सीखा शह-मात का खेल, राजा हर्षवर्धन काल में खेला जाने वाला चतुरंग ही है शतरंज
दुनिया ने भारत से सीखा शह-मात का खेल, राजा हर्षवर्धन काल में खेला जाने वाला चतुरंग ही है शतरंज

कन्नौज, [प्रशांत कुमार]। शह और मात का खेल शतरंज कहां और कैसे शुरू हुआ, यह विवाद हमेशा रहा है। वैसे दुनिया में शतरंज के 40 रूप हैं। इसमें वर्मा में सित्तुइन, कंबोडिया में औक चत्रण, थाईलैंड में मकरुक, कोरिया में चंगी, जापान में शोगी और चीन में शियांग कहते हैं। चीन और यूरोप खुद को शतरंज का जनक मानते हैं लेकिन जर्मनी के इतिहासकार एजे ईडर और डेनमार्क के इतिहासकार डॉ. जैकब पूरी दुनिया को बताएंगे कि शतरंज भारत की देन है। इसके लिए वे इत्र और इतिहास की नगरी कन्नौज में 50 देशों के इतिहासकारों के साथ सेमिनार करने जा रहे हैं और इसके लिए ईडर ने राजकीय पुरातात्विक संग्रहालय को पत्र भी भेजा है।

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ईडर व डॉ. जैकब ने कई वर्षों तक किया शोध

वर्ष 1999 में चैरिटी ट्रस्ट चेस हिस्टोरिकल बनाने वाले जर्मनी के इतिहासकार एजे ईडर व डेनमार्क के डॉ. जैकब ने कई वर्षों के शोध के बाद माना है कि हर्षवर्धन काल के खेल चतुरंग का आधुनिक रूप शतरंज है। कन्नौज के राजकीय पुरातात्विक संग्रहालय के अध्यक्ष दीपक कुमार का कहना है कि ईडर की टीम ने विभिन्न देशों से तथ्य जुटाए हैं।

टीम के डॉ. जैकब वर्ष 2018 में पहले बिहार, फिर कन्नौज आए। यहां बाणभट्ट रचित हर्षचरित और संग्रहालय में रखी हर्षकालीन वस्तुएं मसलन टेराकोटा से बने गजारोही, अश्वरोही, पैदल योद्धा आदि भी देखे। ऐसे कई प्रमाण और साहित्य साथ ले गए, जो चतुरंग को शतरंज का पुराना रूप सिद्ध करते हैं। सेमिनार की प्रस्तावित तिथि 27-28 फरवरी है। भारत सरकार से इसकी अनुमति मांगी गई है।

हर्ष चरित में भी उल्लेख

बाणभट्ट रचित हर्षचरित में उल्लेख है कि हर्षवर्धन ने सेना को 24 भाग में बांटकर कई युद्ध जीते। इसी आधार पर 24 खाने के चतुरंग खेल की शुरुआत हुई। इसमें भी युद्ध की तरह हाथी सवार, घुड़सवार और पैदल योद्धा होते थे।

शतरंज और चतुरंग में अंतर

16-16 मोहरों से दो खिलाड़ी खेलते हैं। हर मोहरे की चाल तय है, जो खिलाड़ी के विवेक पर निर्भर है। वहीं चतुरंग में भी 8-8 मोहरों से चार खिलाड़ी खेलते थे। कौन सा मोहरा कब व कितना चलेगा, पासा तय करता था। एक आने पर प्यादा, तीन पर घोड़ा, चार पर हाथी व छह आने पर राजा या वजीर बढ़ाते थे। दो-दो खिलाडिय़ों की टीम होती है, जो बीच में भंग हो सकती थी।

दोनों खेल में प्रमुख मोहरे

शतरंज           चतुरंग

राजा                राजा

वजीर               मंत्री

हाथी                रथ

ऊंट                 गज

घोड़ा               अश्व

प्यादा             पदाति

पहले भी शोध में हो चुकी पुष्टि

आंध्रप्रदेश के कृष्णदेव राय विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर आर बसंता ने अपने शोध में शतरंज का जनक भारत और समय हर्षवर्धन काल माना है। शोध के मुताबिक आधुनिक शतरंज कुषाण काल में प्रचलित चतुरंग या अष्टपद से निकला है। शतरंज का पहला जिक्र सातवीं सदी में लिखे फारसी महाकाव्य में हुआ। बसंता एसोसिएशन ऑफ गेम बोर्ड रिसर्च की सदस्य भी रही हैं।


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