यहां न मस्जिद है न मंदिर पर सुबह-शाम सुनाई देती राम नाम की गूंज और अल्लाह की इबादत
कानपुर के सरसौल स्थित क्वारंटाइन सेंटर में गंगा-जमुनी तहजीब की बयार बह रही है।
कानपुर, [शैलेन्द्र त्रिपाठी]। यहां न तो मस्जिद है और न ही कोई मंदिर, लेकिन, सुबह-शाम राम नाम की गूंज और अल्लाह की इबादत की अावाज सुनाई देती है। हर दुआ में बस कोरोना से मुक्ति की एक ही मांग रहती है। इन दिनों सामाजिक समरसता की यह बयार नर्वल तहसील में सरसौल स्थित क्वारंटाइन सेंटर बने आश्रयस्थल में बह रही है, जहां प्रवासी मजदूरों को ठहराया गया है।
क्वारंटाइन सेंटर में ठहरे हैं रोजदार
आश्रय स्थल में लगभग डेढ़ सौ प्रवासी पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड आदि राज्यों के रहने वाले हैं, इनमें एक दर्जन से अधिक रोजेदार हैं। भोर पहर तीन बजे जब रोजेदार रोजा की तैयारियां शुरू करते हैं तो वहां ठहरे हिंदू उन्हें पानी लाकर देते हुए पूरी मदद करते हैं। रात में भोजन के बाद हिंदू राम की महिमा का गान करते हैं। लेखपाल आलोक, प्रभांशु, शनि कनौजिया, अमित गुप्ता, पवन प्रकाश, विनय व सुधीर आदि प्रतिदिन शाम को रोजेदारों को इफ्तारी कराते हैं।
परिवार की तरह मिल रहा हिंदू भाइयों का सहयोग
पश्चिम बंगाल निवासी रोजेदार इस्तफार, मोफिद हुसैन, गुलाम हैदर, फैजुल रमन, मुख्तार आलम, दिलकश, शाबिर ,मुर्तजा, अजहर आदि ने बताया कि रोजे से हैं। क्वारंटाइन सेंटर में किसी को दिक्कत नहीं है। हिंदू भाइयों का सहयोग घर परिवार तरह मिल रहा है। कहने को आश्रयस्थल में हैं लेकिन कतई महसूस नहीं होता कि अपनों से दूर हैं।
मिलजुल कर रहे सभी लोग
आश्रयस्थल प्रभारी रुचि मिश्रा ने बताया कि प्रवासी मजदूरों के साथ रोजेदार भी हैं। यहां भारी संख्या में अलग-अलग धर्मों के लोग थे, लेकिन सब मिलजुल कर रहे। एसडीएम नर्वल रिजवाना ने बताया कि शाहिद-रोजेदारों के लिए इफ्तारी वशहरी आदि का प्रबंध व्यवस्था में लगे सभी लोग मिलजुल कर करते हैं। हं5दू भाई भी मदद में हाथ बटाते हैं।