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सामाजिक व व्यावहारिक ज्ञान के लिए एमबीबीएस पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा की पढ़ाई जरूरी

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष बोले, ईश्वर और बड़े-बुजुर्गो के सामने झुकने से होता सकारात्मक ऊर्जा का संचार

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 01:29 AM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 10:19 AM (IST)
सामाजिक व व्यावहारिक ज्ञान के लिए एमबीबीएस पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा की पढ़ाई जरूरी

जागरण संवाददाता, कानपुर : नई पीढ़ी में सामाजिक और व्यावहारिक ज्ञान की कमी है। वह संस्कार तथा नैतिक मूल्यों से वंचित हो रही है। इसलिए उन्हें संस्कारों के सिद्धांत पढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है। यह बातें सोमवार को जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष प्रो. यशवंत राव ने कहीं। उन्होंने दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित जागरण विमर्श में 'एमबीबीएस पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा की पढ़ाई जरूरी' विषय पर अपने विचार रखे।

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उन्होंने कहा कि पहले बच्चों को नैतिकता का पाठ घर पर सिखाया जाता था, जिसमें धीरे-धीरे कमी आ रही है। माता-पिता ठोक-पीटकर बच्चों को डॉक्टर बनाने में जुटे रहते हैं। इस आपाधापी में संस्कार देना भूल जाते हैं, इसलिए उन्हें सामाजिक एवं व्यावहारिक जानकारी और भले-बुरे की समझ भी विकसित नहीं हो पाती। सिर्फ किताबी कीड़ा बनकर रह जाते हैं। एमबीबीएस में दाखिला मिलने पर वह खुद को स्वतंत्र महसूस करते हैं। मेडिकल कॉलेज पहुंचते ही उन्मुक्त हो जाते हैं। इसलिए उन्हें सामाजिक एवं नैतिकता का पाठ पढ़ाना जरूरी है। माता-पिता भी बच्चों में संस्कार डालें। ईश्वर और बड़े-बुजुर्गो के सामने झुकना सिखाएं, ताकि उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।

शिक्षक बनें रोल मॉडल

स्कूल-कॉलेजों से लेकर मेडिकल कॉलेजों के शिक्षक भी छात्र-छात्राओं के लिए रोल मॉडल बनें। इसके लिए शिक्षकों को अपने में सुधार लाना होगा। उनका भविष्य संवारने के लिए जातिवाद एवं क्षेत्रवाद से ऊपर उठना पड़ेगा। खुद रोल मॉडल बनकर उनके चरित्र में बदलाव लाना संभव है।

एमबीबीएस को न समझें कुबेर का खजाना

डॉ. राव का कहना है कि माता-पिता को भी अपनी समझ बदलनी होगी। समाज में यह भ्रांति है कि बच्चे का एमबीबीएस में दाखिला दिलाने के साथ ही उसे कुबेर के खजाने की चाबी पकड़ा दी है। ऐसा नहीं होना चाहिए, बच्चे में सेवाभाव पैदा कीजिए। ताकि, वह डॉक्टर बन समाजसेवा कर उनका और अपना नाम रोशन कर सके।

सोशल मीडिया से पीढि़यों का अंतर प्रभावित

सोशल मीडिया से पीढि़यों का अंतर प्रभावित हुआ है। पहले पीढि़यों में अंतर (जनरेशन गैप) 10-20 साल में होता था, जो सोशल मीडिया की वजह से 1-2 साल में हो रहा है।

तनावपूर्ण है चिकित्सा शिक्षा का सफर

मेडिकल कॉलेजों एवं सरकारी अस्पतालों में न सुविधाएं और न संसाधन हैं। पैरामेडिकल स्टॉफ से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कमी है। इन हालात में एमबीबीएस, एमडी/एमएस से लेकर सुपरस्पेशिएलिटी की पढ़ाई का सफर पूरा होता है, जो काफी तनावपूर्ण है। छात्र-छात्राएं काम के दबाव में रहते हैं। इसलिए कई बार विषम स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं।


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