Move to Jagran APP

नीरज! आह! फिर आई याद तेरी ...कानपुर की पाती, नीरज के नाम

हर सांस गीत के बोल और पूरी जिंदगी एक अलमस्त यायावर की कहानी। इटावा से दिल्ली, कानपुर, मुंबई और फिर अलीगढ़ यानी गोपाल दास नीरज।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 09:48 PM (IST)Updated: Fri, 20 Jul 2018 08:25 AM (IST)
नीरज! आह! फिर आई याद तेरी ...कानपुर की पाती, नीरज के नाम
नीरज! आह! फिर आई याद तेरी ...कानपुर की पाती, नीरज के नाम

कानपुर (जितेंद्र शर्मा)। हर सांस गीत के बोल और पूरी जिंदगी एक अलमस्त यायावर की कहानी। इटावा से दिल्ली, कानपुर, मुंबई और फिर अलीगढ़। फर्श से अर्श के इस सफर में कानपुर एक ऐसा पड़ाव रहा, जिसके लिए नीरज का दिल हमेशा धड़कता ही रहा। यही वो माटी है, जहां यादों में नीरज के संघर्षों की जड़ से लेकर सफलता का विशाल वटवृक्ष, सबकुछ है। प्यार-मुहब्बत के महाकवि के दिल में कानपुर की विरह वेदना किस हद तक थी, यह उन्होंने कानपुर के नाम पाती में खुलकर जाहिर की। शुरुआत ही इन शब्दों से की- 'कानपुर! आह! आज याद तेरी आई फिर...। नीरज को अब उन्हीं के भावों में कानपुर पुकार रहा है- नीरज! आह! आज याद तेरी आई फिर...।

loksabha election banner

इटावा में चार जनवरी 1925 को जन्मे गोपाल दास नीरज का कानपुर से विशेष लगाव रहा। इटावा कचहरी में टाइपिस्ट की नौकरी कर दिल्ली में कुछ समय नौकरी की। फिर वह कानपुर आ गए और डीएवी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी करने लगे। फूलबाग के सामने स्थित कुरसवां में रहे पद्मश्री नीरज का डॉ. चांद कुमारी से काफी लगाव रहा। एक साक्षात्कार में नीरज ने स्वीकार किया था कि डॉ. चांद बड़ी भाभी की तरह थीं। उन्होंने मुश्किल समय में मदद की, इसलिए अपनी सारी कविताएं उनको समर्पित कर दी थीं।

वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र राव कहते हैं कि महाकवि गोपाल दास नीरज की कलम ने कानपुर से प्रेम लिखना शुरू किया और उम्र भर वही लिखा। मगर, मिल और मजदूरों के शहर में आए नीरज ने श्रमिकों के दर्द को भी अपनी कलम से रचनाओं में उभारा। यहीं से मुंबई का सफर शुरू करने वाले नीरज इस शहर को कभी भूल न पाए। उन्हें जब भी यहां किसी कवि सम्मेलन में बुलाया जाता तो वह जरूर आते। कानपुर भी उन्हें कभी नहीं भूल सकेगा।

नीरज की पाती में कानपुर की यादें

महाकवि नीरज ने कानपुर के नाम पाती में लिखा था- 

'कानपुर! आह! आज याद तेरी आई फिर 

स्याह कुछ और मेरी रात हुई जाती है,

आंख पहले भी यह रोई थी बहुत तेरे लिए

अब तो लगता है कि बरसात हुई जाती है।'

इस शहर के प्रति उनके दिल में उठने वाली हूक को उन्होंने कुछ यूं बयां किया- 

प्यार करके ही तू मुझे भूल गया लेकिन

मैं तेरे प्यार का अहसान चुकाऊं कैसे 

जिसके सीने से लिपट आंख है रोई सौ बार

ऐसी तस्वीर से आंसू यह छिपाऊं कैसे।

आज भी तेरे बेनिशान किसी कोने में 

मेरे गुमनाम उम्मीदों की बसी बस्ती है

आज ही तेरी किसी मिल के किसी फाटक पर 

मेरी मजबूर गरीबी खड़ी तरसती है।

वह अपने संघर्ष के दिनों के ठिकाने फूलबाग, मेस्टन रोड को भी न बिसरा पाए। लिखा था- 

फर्श पर तेरे 'तिलक हाल' के अब भी जाकर

ढीठ बचपन मेरे गीतों का खेल खेल आता है

आज ही तेरे 'फूलबाग' की हर पत्ती पर

ओस बनके मेरा दर्द बरस जाता है।

करती टाईप किसी ऑफिस की किसी टेबिल पर 

आज भी बैठी कहीं होगी थकावट मेरी,

खोई-खोई-सी परेशान किसी उलझन में

किसी फाइल पै झुकी होगी लिखावट मेरी।

कुरसवां के प्रति नीरज ने अपनी भावनाओं को यह शब्द दिए-

'कुरसवां' की वह अंधेरी-सी हवादार गली

मेरे 'गुंजन' ने जहां पहली किरन देखी थी,

मेरी बदनाम जवानी के बुढ़ापे ने जहां 

जिन्दगी भूख के शोलों में दफन देखी थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.