जिदंगी के सवालों का जवाब खोजने ब्रायन आए थे भारत, बन गए बासु घोष दास
बड़ोदरा इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष बासु घोष दास जन्म के 19 वर्ष तक शिकागो में रहे और फिर भारत आ गए। तबसे श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।
कानपुर (जागरण संवाददाता)। शिकागो शहर में जन्मे ब्रायन डेविस जिदंगी के सवालों का जवाब खोजते खोजते भारत क्या आए, यहीं के होकर रह गए। कृष्ण के प्रति प्रेम में इस्कॉन से जुड़कर बासु घोष दास बने और गूढ़ सवालों के जवाब पाने के लिए देव भाषा संस्कृत को आध्यात्मिक भाषा बनाकर शास्त्र मथ डाले। संस्कृत के गूढ़ रहस्यों पर आइआइटी में कक्षाएं लगाईं और भगवत गीता यथा रूप को समझाया। बात हो रही है वर्तमान में बड़ोदरा इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष बासु घोष दास की। वह जन्म के 19 वर्ष तक शिकागो में रहे और फिर भारत आ गए। वह बीते 45 वर्ष से श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रचार कर रहे हैं।
आइआइटी के छात्र ले रहे संस्कृत की शिक्षा
संस्कृत में उनकी पकड़ इस कदर है कि देश को बेहतरीन टेक्नोक्रेट देने वाले आइआइटी के छात्र भी बासु घोष दास से इस भाषा की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अमेरिका में ही कृष्ण प्रेम और फिर संस्कृत भाषा के प्रति लगाव शुरू हो गया था, मैं भारत आ गया। कहा, अमेरिका का युवा भारतीय संस्कृति व अध्यात्म के प्रति आकर्षित है। वे भारतीय परिधान पहनना पसंद कर रहे हैं।
तुलसी देवी की परिक्रमा की और बताया महत्व
इस्कॉन में चल रहे उत्सव के दौरान भक्तों ने तुलसी पूजा में भाग लेकर उनकी परिक्रमा की। सत्संग में बताया कि तुलसी देखकर पाप मिट जाते हैं, उनके चरण छूने से शरीर शुद्ध हो जाता है। तुलसी को जल देने से मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अर्पण करने से तुलसी मुक्ति और भक्ति प्रदान करती हैं। यहां गोल्डन बुक का लोकार्पण भी किया गया, जिसमें उन सभी भक्तों के नाम लिखे हैं जिन्होंने मंदिर निर्माण में सहयोग किया है। यह गोल्डन बुक श्रीश्री राधा माधव को भेंट है। गुरुप्रसाद स्वामी महाराज ने कृष्ण कथा में उनकी लीला का वर्णन किया। कहा, उनकी महिमा अपरंपार है। श्री कृष्ण की पूजा करना बहुत आसान है। कृष्ण प्रसाद को लेने के लिए भक्तों को केवल हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए।