बिठूर महोत्सव के मंच पर लोक कलाओं का 'चीरहरण'
कम वक्त की दलील देकर बीच में नौटंकी और आल्हा की प्रस्तुति रोक दी, खुले आसमान के नीचे बैठे रहे लोक कलाकार।
कानपुर, जेएनएन। आल्हा में गाई जा रही रानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा अफसरों को न भाई, 'नौटंकी' से भी तुरंत ऊब गए। वक्त की कमी की दलील देकर आल्हा और नौटंकी की प्रस्तुति बीच में रोक दी गई। हां, फैशन शो के चार राउंड बड़े शौक से देखे गए। यह बिठूर गंगा महोत्सव का मंच था, जहां बुधवार को लोक कलाकारों का अपमान हुआ और लोक कलाओं का 'चीरहरण'।
पांच दिवसीय बिठूर गंगा महोत्सव के उद्घाटन समारोह में मंगलवार को मंडलायुक्त ने बार-बार इस बात पर जोर दिया था कि यह कला-संस्कृति का मेला है, यहां बुंदेलखंड की लोककला आल्हा की भी प्रस्तुति होगी। कला-संस्कृति के प्रति सम्मान के इस भाव की लाज अधीनस्थ न रख सके। बुधवार को शाम पांच से सात बजे तक नौटंकी का समय निर्धारित था। नौटंकी शिक्षण संस्थान कानपुर से हरिश्चंद नक्कारवादक की मंडली पहुंची। कार्यक्रम काफी देर से शुरू हुआ, कलाकार इंतजार में तैयार बैठे रहे। प्रस्तुति शुरू हुई, इसमें रामशरण वर्मा, मुन्नी, मधु शर्मा आदि ने राजा हरिश्चंद्र और रानी तारावती की कहानी शुरू की, जिसे पंद्रह-बीस मिनट बाद ही आयोजकों ने रुकवा दिया।
कलाकारों ने दुख जताया कि उन्हें देशभर में सम्मान मिलता है, लेकिन जहां से नौटंकी का जन्म माना जाता है, उसी शहर में यूं अपमानित किया गया। रामभरोसे बाघमार का कहना था कि हमें ठंड में खुले आसमान के नीचे बिठा दिया गया। प्रस्तुति के बाद एक कमरा खोला गया। वहीं पर महिला कलाकारों ने छिपते-छुपाते कपड़े बदले।
यही नहीं, देशभर में लगभग 600 कार्यक्रम कर चुकीं शीलू सिंह राजपूत रायबरेली से सात कलाकारों की मंडली के साथ आल्हा की प्रस्तुति देने आईं थीं। वह झांसी की रानी की कहानी पूरे ओज के साथ सुना रही थीं, जिसे बीस मिनट बाद बीच में ही रोक दिया गया। शीलू का कहना था कि हम तो चार बजे से तैयार बैठे थे। इतना विलंब से मंच मिला। कहा आधे घंटे में प्रस्तुति पूरी करें। फिर पंद्रह-बीस मिनट ही दिए। बीच-बीच में भी आयोजक टोक-टोक कर व्यवधान करते रहे।
खुद लोक कलाकारों ने भी देखा उनसे पहले यूनाइटेड इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइनिंग का एथनिक शो हुआ। रुचि रोहतगी द्वारा डिजाइन साड़ी, लहंगा, गाउन और खादी की ड्रेस के अलग-अलग राउंड हुए, जिसमें 20 मॉडल्स ने कैटवॉक किया। उसके लिए समय की कोई कमी नहीं थी।