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चौंका देगी कानपुर की धरती की ये रिपोर्ट, सुधार पर ध्यान न दिया तो आएगी ऐसी नौबत

कृषि विभाग ने कानपुर के 25 हजार से अधिक खेतों की मिट्टी के नमूनों की जांच की और नतीजे चौंकाने वाले आए हैं।

By AbhishekEdited By: Published: Thu, 06 Jun 2019 03:50 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jun 2019 09:36 AM (IST)
चौंका देगी कानपुर की धरती की ये रिपोर्ट, सुधार पर ध्यान न दिया तो आएगी ऐसी नौबत
चौंका देगी कानपुर की धरती की ये रिपोर्ट, सुधार पर ध्यान न दिया तो आएगी ऐसी नौबत

कानपुर, जेएनएन। शहर के ग्रामीण क्षेत्र की धरती की जो रिपोर्ट सामने आई है, वो चौंकाने वाली है। यदि यही स्थिति बनी रही तो वो दिन दूर नहीं है जब खाने तक के लाले पड़ सकते हैं। यदि समय रहते धरती की सेहत सुधारने पर ध्यान न दिया गया तो अन्न संकट की नौबत आ सकती है। कृषि विभाग की मृदा परीक्षण के बाद वैज्ञानिक भी चिंतित हैं और उपाय खोजने के प्रयास में जुट गए हैं।

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बंजर रहे खेत, घट रही उर्वराशक्ति

पैदावार बढ़ाने के लिए रसायनों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से उपजाऊ खेत बंजर होने लगे हैं। उनमें महत्वपूर्ण तत्वों की बेहद कमी पाई गई है। कृषि विभाग ने कानपुर के 25 हजार से अधिक खेतों के नमूनों की जांच की, जिसके नतीजे चौंकाने वाले आए हैं। जनपद के 10 ब्लॉक में से घाटमपुर, ककवन और पतारा ब्लाक की हालत सबसे ज्यादा खराब है। कृषि अधिकारी ग्रामीण क्षेत्रों में गोष्ठियां आयोजित कर किसानों को जागरूक करने की तैयारी कर रहे हैं।

सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम कम

खेतों में सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जिंक, फास्फोरस, आयरन की मात्रा कम मिली है। कृषि विभाग ने ब्लॉकवार उनका वर्गीकरण किया है। गोबर की खाद और जैविक खाद का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। अत्यधिक रसायन के प्रयोग से खेतों की उर्वरक शक्ति कम हो गई है। शायद यही कारण है कि कानपुर से जुड़े ग्रामीण परिक्षेत्र में पौध विकसित नहीं हो पा रहे हैं। पौधरोपण के बाद उनके पेड़ न बनने से हरियाली नहीं बढ़ पा रही है, जिससे पर्यावरण असंतुलन का भी खतरा बन गया है। कृषि उपनिदेशक धीरेंद्र सिंह कहते हैं कि कानपुर में खेतों की मिïट्टी की गुणवत्ता तेजी से प्रभावित हो रही है। उसमें लाभकारी तत्व कम हो गए हैं। किसानों को जैविक खेती और गोबर की खाद इस्तेमाल करने की सलाह दी जा रही है।

10 साल में खराब हुए हालात

मृदा विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज के मुताबिक 10 साल में कानपुर के खेतों की हालत बेहद खराब हुई है। उनमें एसिड की मात्रा काफी अधिक हो गई है। 10 साल पहले जो पीएच वैल्यू (7.6-7.7) के बीच होती थी, वह अब (7.8-8.4) हो गई है। कई ब्लॉक के खेतों में पीएच की मात्रा 8.5 से अधिक मिली है। यह स्थिति मिट्टी के बंजर होने की है।

खेतों में रसायनों के स्रोत

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) संबद्ध शाकभाजी अनुभाग के प्रो.संजीव सचान के मुताबिक रसायनों के अधिक उपयोग से मित्र कीट मर जाते हैं। उसके लिए सावधानी आवश्यक है।

ये बातें अपनाकर बचाएं धरती

  • -उर्वरकों के माध्यम से।
  • -रोगों, कीटों के नियंत्रण के लिए रसायनों का छिड़काव।
  • - फैक्ट्रियों से निकलने वाले दूषित जल से।
  • -नालों का पानी खेतों में पहुंचने से।
  • -फैक्ट्रियों के दूषित जल को शोधित किया जाए।
  • -किसान जैविक खेती की ओर अग्रसर हों।
  • -वैज्ञानिकों द्वारा संस्तुत मात्रा में रसायनों का उपयोग किया जाए।
  • -नीम और अन्य हर्बल तत्वों से बनाई गई दवाओं का इस्तेमाल हो।
  • -गर्मियों में गहरी खोदाई होनी चाहिए।

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