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यादों के झरोखे से : जेल से छूटे तो मेरे पास चुनाव लडऩे के लिए नहीं थी फूटी कौड़ी

घाटमपुर के पूर्व विधायक रामआसरे अग्निहोत्री ने साझा कीं आपातकाल व उसके बाद बाद की यादें वर्तमान राजनीति को लेकर दिखे आहत।

By AbhishekEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 02:25 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 10:36 AM (IST)
यादों के झरोखे से : जेल से छूटे तो मेरे पास चुनाव लडऩे के लिए नहीं थी फूटी कौड़ी
यादों के झरोखे से : जेल से छूटे तो मेरे पास चुनाव लडऩे के लिए नहीं थी फूटी कौड़ी
घाटमपुर (कानपुर) , संवाद सहयोगी। 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आधी रात में इमरजेंसी लागू कर दी थी। हमारे जैसे लाखों कार्यकर्ता मीसा व डीआइआर लगा कर जेल में ठंूस दिए गए । इसी बीच पिता जी की मृत्यु हो गई लेकिन जेल में इसकी सूचना नही दी गई। 21 मार्च, 1977 को आपातकाल खत्म हुआ, तो 21 माह बाद उन्नाव जिला जेल से रिहाई हुई। जेब में एक फूटी कौड़ी न थी। बगैर टिकट ट्रेन में सवार होकर घाटमपुर पहुंचे थे। चुनाव की घोषणा हो चुकी थी।
रास्ते भर तमाम झंझावतों के बीच कई विचार मन में उमड़ते-घुमड़ते रहे। घाटमपुर चौराहा पहुंचा, तो समीप से तीन मीटर कफन का कपड़ा उधार लिया और सिर में पटखानुमा बांधकर कांग्रेस व इंदिरा गांधी के इमरजेंसी में ढाए गए जुल्म की गाथा कहते हुए बीच चौराहे पर भाषण देना शुरू कर दिया। भीड़ जुटी और देखते ही देखते 500 रुपये चंदा हो गया। जनता पार्टी से टिकट मिला और चंदा में मिले रुपयों में से ढाई सौ जमानत के तौर पर जमा कर दिए गए। शेष से बैनर व पोस्टर लगवाए।
44 वर्ष पूर्व की स्मृतियों एवं आपातकाल की यातनाओं को याद कर आज भी सिहर उठने वाले 83 वर्षीय पूर्व विधायक पं. राम आसरे अग्रिहोत्री 1977 एवं 1989 में घाटमपुर सीट से विधायक एवं खादी बोर्ड के उपाध्यक्ष होने के नाते दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री भी रहे हैं। सिर्फ दर्जा 5 तक पढ़े और ढाई दशक तक यहां से कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे स्व. शिवनाथ ङ्क्षसह कुशवाहा से चले संघर्ष के चलते पूरे प्रदेश में चर्चित रहेे पूर्व विधायक राम आसरे अग्रिहोत्री राजनीति के वर्तमान स्वरूप को लेकर बेहद आहत हैं।
शहर के वाई ब्लाक किदवईनगर स्थित आवास में बातचीत के दौरान अतीत की स्मृतियों के बीच वर्तमान दौर की चर्चा शुरू होते ही कहने लगते हैं, कि अब राजनीतिक दल पैसे लेकर सेठ साहूकारों को टिकट देते हैं। चुनाव जीतने के लिए वह लोगों को शराब पिलाते हैं। ऐसे लोगों से समाज सेवा की क्या उम्मीद? उनके दौर में टिकट के लिए कार्यकर्ता का संघर्ष पैमाना और आम मतदाताओं से जुड़ाव होता था। जनप्रतिनिधि बनने के बाद नेता जनता की समस्याओं के लिए जूझता था। आज वह चीजें बेमानी हो गई हैं।
93 में मुलायम ने टिकट काटी तो हराई थी आसपास की तीन सीटें
अतीत में डूबते उतराते राम आसरे अग्रिहोत्री बताने लगते हैं कि वर्ष 1990 में चौधरी चरण ङ्क्षसह के पुत्र अजित ङ्क्षसह व मुलायम ङ्क्षसह के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए शक्ति परीक्षण हुआ, तो वह मजबूती के साथ मुलायम के साथ खड़े हुए। 1993 में बसपा के साथ गठबंधन के बाद मुलायम ङ्क्षसह ने उनकी टिकट काट दी। तो उनके मुंह पर ही विरोध का एलान कर वापस घाटमपुर लौटे। कार्यकर्ताओं को जोड़ कर जनता दल का समर्थन कर घाटमपुर के अलावा पड़ोसी भोगनीपुर व जहानाबाद सीट से भी गठबंधन प्रत्याशियों को धूल चटाकर जनता दल प्रत्याशियों को जीत दिलाई।  

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