मेहनत की चाबी से मुसीबत की बेड़ियां हुईं Unlock, प्रेरणास्रोत बनीं सरला और उमा
लॉकडाउन में पति का काम छूट गया और भूमिहीन परिवार के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया तब महिलाओं ने लांघी घर की देहरी।
कानपुर, [नरेश पांडेय]। “जब हौसला बना लिया है ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसमान का...।' यह पंक्तियां चौबेपुर के ककरहा गांव की सरला व उमा पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। कोरोना संकट में मजदूरी छिन जाने से परिवार रोटी के लिए मोहताज हो गया तो बंदिशें तोड़ फल और सब्जी का ठेला लगाकर जीविका चलानी शुरू कर दी। उनका हौसला विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानने का संदेश दे रहा है।
ककरहा गांव की सरला के पति साहब लाल कानपुर देहात की एक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन में काम छिना तो मुसीबतों ने घेर लिया। घर पर राशन खत्म हो गया, वहीं जमा पूंजी पति की बीमारी में खर्च हो गई। भूमिहीन परिवार के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया। सरला का कहना है कि उसके दो बच्चे हैं। कुछ दिन रिश्तेदारों से मदद मिली, लेकिन बाद में वह भी बंद हो गई।
ऐसे में झिझक छोड़ जीटी रोड पर फल का ठेला लगाने लगीं। कुछ ऐसी ही दास्तां उमा की भी है। पति पप्पू दिल्ली की एक फैक्ट्री में काम करते हैं। लॉकडाउन में घर नहीं लौट सके। घर में बेटी रागिनी वबेटा छोटू संग वृद्ध मां भी हैं। उमा कहती हैं कि मसाला फैक्ट्री में काम मिल जाता था लेकिन लॉकडाउन में बंदी के चलते भूखे रहने की नौबत आगई थी। ऐसे में समाज की परवाह किए बिना किराए पर ठेला लेकर सब्जी की फेरी लगाने लगीं।
सरकारी योजनाओं का नहीं मिला लाभ
हर जरूरतमंद तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचने के दावे यहां खोखले नजर आते हैं। दोनों महिलाओं का परिवार बेहद गरीब है, बावजूद इसके न तो बीपीएल कार्ड बना और न ही आवास योजना का लाभ मिला। कोरोना संकट में भी राशन नहीं मिल सका। तीन माह से ठेला लगा रहीं इन पर सरकार के नुमाइंदों की नजर नहीं पड़ी। ग्राम प्रधान गंगा देवी कहती हैं कि सरला के आधार कार्ड में त्रुटि होने से लाभ नहीं मिल पा रहा है। आधार कार्ड को दुरुस्त करा योजानाओं को लाभ दिलाया जाएगा। वहीं, उमा देवी को भी राशन समेत अन्य योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा।