डफरिन अस्पताल को 'आक्सीजन' की दरकार
वर्ष 1971 की आबादी के हिसाब से स्वीकृत हैं डॉक्टरों के पद, ओपीडी एवं इनडोर में लगातार बढ़ रही मरीजों की संख्या
जागरण संवाददाता, कानपुर : शहर का सबसे पुराना महिला अस्पताल डफरिन डॉक्टरों की कमी एवं सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है। अस्पताल में मरीजों का दबाव लगातार बढ़ रहा है, उस हिसाब से स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों की तैनाती नहीं हैं। वर्ष 1971 की आबादी के हिसाब से डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं। नवजात के इलाज के लिए एक बाल रोग चिकित्सक हैं। ऐसे में नवजात एवं छोटे बच्चों के इलाज का मुकम्मल बंदोबस्त ओपीडी में नहीं है। अस्पताल में नवजात को किसी प्रकार की जटिलता से बचाने के लिए सिक एंड न्यू बॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) है, लेकिन आक्सीजन पाइप लाइन ही नहीं है। जन्म के समय जिन बच्चों में आक्सीजन की कमी होती है, उन्हें एसएनसीयू में भर्ती कर आक्सीजन लगानी पड़ती है। ऐसे में आक्सीजन की आपूर्ति के लिए सिलेंडर मंगाने पड़ते हैं। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि डफरिन को शासन से आक्सीजन की दरकार है।
इमरजेंसी में जगह कम होने से दिक्कत
अस्पताल की इमरजेंसी में जगह कम है। ऐसे में सामान्य गर्भवती, हाई रिस्क प्रेग्नेंसी एवं संक्रमित गर्भवती को अलग-अलग भर्ती करने की सुविधा नहीं है। उनके लिए अलग लेबर रूम भी नहीं हैं। कई बार एक साथ कई गर्भवती आने पर अव्यवस्था की स्थिति होती है।
डॉक्टरों की कमी से आए दिन हंगामा
डफरिन में मरीजों का जबरदस्त दबाव है। यहां नगर व ग्रामीण क्षेत्र से गर्भवती इलाज को आती हैं। मरीजों की संख्या के हिसाब से डॉक्टर नहीं हैं। ऐसे में ओपीडी एवं इनडोर में आए दिन हंगामा होता है। यहां स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, एनस्थेटिक एवं बाल रोग विशेषज्ञ के 22 पद हैं, लेकिन तैनाती सिर्फ 18 डॉक्टरों की है। ओपीडी, इमरजेंसी एवं इनडोर में 24 घंटे ड्यूटी के हिसाब से संख्या काफी कम है। अस्पताल प्रशासन इससे कई बार शासन को अवगत करा चुका है।
एसएनसीयू में डॉक्टरों की कमी
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के सहयोग से नवजात की देखरेख के लिए 10 बेड के सिक एंड न्यू बॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) की स्थापना की गई है। यहां संविदा पर तीन बाल रोग विशेषज्ञों की तैनाती की गई है, लेकिन उसमें से एक चिकित्सक ने त्यागपत्र दे दिया है। इससे 24 घंटे सेवा उपलब्ध कराने में दिक्कत होती है।
अल्ट्रासाउंड की जांच बनी समस्या
डफरिन अस्पताल में सामान्य स्थिति में एक गर्भवती की तीन बार अल्ट्रासाउंड जांच करानी पड़ती है। इसके बावजूद रेडियोलाजिस्ट की तैनाती नहीं है। संविदा पर चिकित्सक तैनात हैं। वह एक दिन में 25 से अधिक जांच कराने को तैयार नहीं हैं। इस वजह से आए दिन हंगामा होता है। डॉक्टर ऐसी स्थिति में मजबूरी में गर्भवती की जांच बाहर से कराती हैं। इस समस्या से सीएमओ व अपर निदेशक चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तक अवगत हैं। फिर भी समस्या के समाधान के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
एक ही ओटी से समस्या
अस्पताल में एक ही आपरेशन थियेटर (ओटी) है। ऐसे में एक ही समय पर दो केस आने पर दिक्कत होती है। वहीं ओटी में मानक के अनुसार जगह भी नहीं है।
बंद पड़ा है माड्यूलर ओटी
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना (एनएचआरएम) के तहत अस्पताल में एक मॉड्यूलर ओटी का निर्माण कराया गया है। एनएचआरएम घोटाले का खुलासा होने के बाद से ओटी बंद पड़ा है। न उसका इस्तेमाल हो रहा है और न ही उसे पूरा किया गया। इस वजह से मरीजों को उसकी सुविधा नहीं मिल पा रही है।
डफरिन अस्पताल की प्रमुख अधीक्षक डॉ. नीतारानी चौधरी ने कहा कि अस्पताल में मरीजों के दबाव को देखते हुए डॉक्टरों की संख्या कम है। स्वीकृत पद से चार डॉक्टर कम हैं। किसी तरह इमरजेंसी, ओपीडी एवं इनडोर सेवा चलाई जा रही है। डॉक्टरों के अवकाश पर जाने से दिक्कत होती है। नवजात के लिए बने एसएनसीयू में आक्सीजन पाइप लाइन नहीं है। इसलिए दिक्कत होती है। शासन को इसके लिए लिखा गया है। सीमित संसाधनों में मरीजों को बेहतर चिकित्सीय सुविधा मुहैया कराने को प्रयास किया जा रहा है।