हाइपरटेंशन हार्ट अटैक, स्ट्रोक, ब्रेन डैमेज जैसी कई गंभीर समस्याओं का कारण, समय पर इलाज जरूरी
दुनिया भर में मृत्यु का दूसरा बड़ा कारण स्ट्रोक है। हर दो सेकेंड में एक स्ट्रोक होता है। लंग कैंसर के ज्यादातर मरीज शुरुआत में टीबी के लक्षण समझकर इलाज करवाते हैं जो जानलेवा होता है। कुछ ऐसी ही जानकारी डाक्टरों ने दी।
कानपुर, जागरण संवाददाता। अत्याधिक तनाव और बदलती हुई जीवनशैली हर किसी के जीवन का हिस्सा बन चुकी है। जिसकी वजह से हाइपरटेंशन की बीमारी होने लगी है। इसमें कई बार झटके आने या चलते वक्त अचानक लोगों का सिर चकराने की समस्या सामने आती है। आंखों के सामने अंधेरा भी छा जाता है। ये परेशानियां शरीर में रक्तचाप का स्तर बढ़ने के कारण हो सकती हैं। अचानक से ब्लड प्रेशर हाई होना स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है। हाइपरटेंशन हार्ट अटैक, स्ट्रोक, ब्रेन डैमेज जैसी कई गंभीर समस्याओं को न्योता दे सकता है। यह बातें शनिवार को आइएमए की ओर से आर्यनगर स्थित गैंजेज क्लब में आयोजित सीएमई में मेदांता अस्पताल लखनऊ के नेफ्रोलाजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट एंड यूरोलाजी इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डा. आरके शर्मा ने कही।
सीएमई में मेदांता अस्पताल के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने चिकित्सा के क्षेत्र में एडवांस तकनीक के बारे में चर्चा की। इसमें मेदांता अस्पताल के डा. आरके शर्मा ने हाइपरटेंशन एंड क्रोनिक किडनी डिजीज, न्यूरोसर्जरी इंस्टीट्यूट आफ न्यूरो साइंस के डायरेक्टर डा. रवि शंकर ने रिसेंट मैनेजमेंट इन स्ट्रोक मैनेजमेंट और आफ मेडिकल एंड हेमेटो आंकोलाजी कैंसर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डा. हर्षवर्धन अत्रेया ने कैमिलियोन रीसेंबलेंस आफ लंग कैंसर विद ट्यूबरक्लोसिस विषय पर चर्चा की।
डा. रवि शंकर ने रिसेंट मैनेजमेंट इन स्ट्रोक मैनेजमेंट के बारे में बताते हुए कहा कि दुनिया भर में मृत्यु का दूसरा बड़ा कारण स्ट्रोक है। हर दो सेकेंड में एक स्ट्रोक होता है और हर छह सेकेंड में स्ट्रोक के कारण एक जान चली जाती है। दुनिया में चार में से एक व्यक्ति को अपने जीवन में स्ट्रोक होता है। इतने भयावह आंकड़ों के बावजूद इसके बारे में जागरूकता की कमी है। ब्रेन स्ट्रोक में अचानक शरीर का संतुलन खोना, एक या दोनों आंखों से अचानक देखने में परेशानी, चेहरे में बदलाव, बाजु का सुन्न होना और बोलने में परेशानी होती है। अगर मरीज को पहले कुछ घंटों के अंदर सही इलाज मिल जाए, तो ब्रेन स्ट्रोक का इलाज संभव है या इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
वहीं, डा. हर्षवर्धन अत्रेया ने बताया कि लंग कैंसर के सभी लक्षण टीबी के जैसे ही होते हैं। दोनों की प्राथमिक जांच भी एक ही है, लेकिन सिर्फ इस आधार पर ही इलाज खतरनाक है। एक्स-रे में अगर धब्बा आए तो उसी टीबी मानकर इलाज शुरू न करें क्योंकि यह लंग कैंसर भी हो सकता है। ऐसे में बलगम और सीबी नेट जांच करवाएं। अगर टीबी न निकले तो सीटी स्कैन और ब्रोंकोस्कोपी से बायोप्सी करवाएं, जिससे यह स्पष्ट हो की कैंसर है या नहीं। लंग कैंसर के ज्यादातर मरीज शुरुआत में टीबी के लक्षण समझकर इलाज करवाते हैं। समय से जानकारी नहीं होने पर लंग कैंसर लास्ट स्टेज में पहुंच जाता है और मृत्यदर में तेजी आती है।