Kanpur: जान बचाने की बात आई तो नवरात्र का उपवास तोड़कर किया रक्तदान
Kanpur Blood Donation डा. नागर बताती हैं कि स्कूल के दिनों में पढ़ाई करते समय ही उन्हें मालूम हो गया था कि उनका ब्लड ग्रुप बहुत कम लोगों का होता है और यह लोगों के अधिक काम आने वाला है। उन्हें डाक्टरों ने बताया कि कभी और कहीं भी जाकर रक्तदान न करें बल्कि आवश्यकतानुसार मरीजों के लिए रक्तदान करें।
जागरण संवाददाता, कानपुर। शहर के डीएवी कालेज की शिक्षक डा. निधि नागर का ब्लड ग्रुप बी-नेगेटिव है। रक्त समूह की विशेषता ने उन्हें दुर्लभ रक्तदाता समूह की श्रेणी में शामिल कर रखा है। इसलिए वह चिकित्सकों की मांग पर अत्यंत गंभीर रोगियों को ही रक्तदान करती हैं।
2018 की चैत्र नवरात्र के पहले दिन भी उनके साथ ऐसा हुआ कि रक्तदान करने के लिए उन्हें अपना व्रत तोड़ना पड़ा लेकिन आपरेशन टेबल पर मरीज की जान बचने का संतोष उन्हें आज भी जीवन का सबसे बड़ा सुख प्रतीत होता है।
डा. नागर बताती हैं कि स्कूल के दिनों में पढ़ाई करते समय ही उन्हें मालूम हो गया था कि उनका ब्लड ग्रुप बहुत कम लोगों का होता है और यह लोगों के अधिक काम आने वाला है। उन्हें डाक्टरों ने बताया कि कभी और कहीं भी जाकर रक्तदान न करें बल्कि आवश्यकतानुसार मरीजों के लिए रक्तदान करें। तब से वह अस्पताल से आने वाली फोन काल पर भी रक्तदान करती आ रही हैं। लखनऊ के सभी प्रमुख चिकित्सालयों में उनकी जानकारी दर्ज है।
वह बताती हैं कि 2018 के मार्च महीने की 18 तारीख को चैत्र नवरात्र का पहला दिन था और डीएवी कालेज में हो रही एक परीक्षा के लिए वह लखनऊ से आई थीं। शाम को वापस जाने के लिए जाजमऊ पुल के पास रोडवेज बस की प्रतीक्षा कर रही थीं तभी उनके पास एक फोन आया।
फोन करने वाले ने खुद को भारतीय सेना का अधिकारी बताया और कहा कि उनके पिता जी की हालत गंभीर है। उनका आपेरशन होने वाला है और उन्हें बी-नेगेटिव रक्त की तत्काल जरूरत है।
डा. नागर ने बताया कि लखनऊ पहुंचने में अभी तीन घंटे लग जाएंगे तो उन्होंने पूछा कि आप कहां हैं। हम आपको जल्दी बुलाने के लिए प्रबंध कर सकते हैं तो बताया कि कानपुर में हैं।
तब उन्होंने बताया कि आपके बारे में जानकारी लखनऊ के कमांड अस्पताल से मिली है लेकिन रोगी कानपुर के रीजेंसी अस्पताल में भर्ती है। उन्होंने तत्काल अपनी गाड़ी भेजकर उन्हें अस्पताल बुला लिया।
डा. निधि बताती हैं कि उस दिन वह उपवास कर रही थीं लेकिन जब रक्तदान करने की बारी आई तो कोई समस्या उत्पन्न न हो इसलिए उन्होंने उसी समय अपना उपवास तोड़ दिया। रक्तदान करने के बाद लखनऊ चली गईं।
अगले दिन जब पता चला कि आपेरशन सफल रहा तो यह जीवन का न भूलने वाला किस्सा बन गया जब रक्तदान के लिए उन्होंने देवी पूजा का व्रत तोड़कर प्राण रक्षा का संकल्प पूरा किया।