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विशेषज्ञों की जुबानी जानिए, गर्भस्थ शिशु पर मां की खुशी, गम और सोच का क्या पड़ता है प्रभाव

जीएसवीएम मेडिकल कालेज में फॉग्सी के अधिवेशन डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूकॉन में विशेषज्ञों ने संस्कारवान पीढ़ी के लिए मां की कोख से शिशु को संस्कार देने पर दिया जोर।

By AbhishekEdited By: Published: Mon, 08 Oct 2018 04:59 PM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 10:32 AM (IST)
विशेषज्ञों की जुबानी जानिए, गर्भस्थ शिशु पर मां की खुशी, गम और सोच का क्या पड़ता है प्रभाव
विशेषज्ञों की जुबानी जानिए, गर्भस्थ शिशु पर मां की खुशी, गम और सोच का क्या पड़ता है प्रभाव

कानपुर(जागरण संवाददाता)। महाभारत में अभिमन्यु का चरित्र तो सभी को पता होगा। अभिमन्यु ने गर्भावस्था में ही चक्रव्यूह के द्वार तोडऩा सीख लिया था और सातवें द्वार के समय मां के सो जाने से वह उसे तोडऩा नहीं सीख सके थे। आज के समय में विशेषज्ञों का भी मानना है कि मां की खुशी, गम और सोच और सुनाई देने वाली बातों का गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव पड़ता है। जीएसवीएम मेडिकल कालेज में फॉग्सी के अधिवेशन डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूकॉन में गर्भस्थ शिशु का समग्र विकास एवं गर्भोत्सव संस्कार के वैज्ञानिक प्रमाण पर चर्चा करते हुए विशेषज्ञों ने मां की कोख से ही शिशु में संस्कार डालने पर जोर दिया।

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ऋषि-मनीषियों की अनोखी विधा

अधिवेशन में देव संस्कृति विश्वविद्यालय (हरिद्वार) के कुलाधिपति डॉ.प्रणव पांड्या ने कहा कि प्राचीनकाल में ऋषि-मनीषियों ने प्रतिभावान पीढ़ी के निर्माण के लिए अनोखी विधा विकसित की है। उस संस्कार परंपरा को फिर से अपनाने की जरूरत है जिससे भावी पीढ़ी को दिशाविहीन व नैतिक मूल्यों से वंचित होने से बचाया जा सके। चिकित्सा, अध्यात्म और योग के समावेश के जरिए मां की कोख से ही उसे संस्कार देने होंगे।

मां की सोच का गर्भस्थ शिशु पर असर

डॉ. पांड्या ने बताया कि मां गर्भवती होते ही बीमार समझने लगती है। उसकी हर गतिविधि का गर्भस्थ शिशु पर असर पड़ता है। वह जैसा सोचेगी, जैसा माहौल मिलेगा, शिशु पर वैसा प्रभाव पड़ेगा। गर्भ में बच्चा सभी योग करता है। खाने का स्वाद लेता है, सपने भी देखता है। नौ माह तक गर्भ में रहने से मां से बॉडिंग हो जाती है। शास्त्र-उपनिषद एवं आधुनिक विज्ञान भी इसे मानता है। यही वजह है कि प्रसव उपरांत नवजात मां की गोद में जाते ही चुप हो जाता है, क्योंकि वह दिल की धड़कन पहचानता है।

पहले दिन से करनी होगी शुरुआत

अधिवेशन में डॉ. पांड्या ने कहा कि भावी पीढ़ी को संस्कारवान एवं नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण बनाने को गर्भ के प्रथम दिन से प्रयास करने होंगे। इसके लिए गर्भसंस्कार की शुरुआत करनी होगी। मां की सोच उत्कृष्ट करना होगा। उन्हें स्वाध्याय के लिए प्रेरित करना होगा। गर्भवती को गीता, रामायण, कुरान, गुरुग्रंथ साहिब और बाइबिल आदि देनी होंगी। संगीत से जोडऩा होगा। उसमें भजन और सकारात्मक सोच के गीत सुनाने होंगे।

गर्भवती खुश रहेगी तो विलक्षण प्रतिभा का धनी होगा बच्चा

अधिवेशन में शांतिकुंज हरिद्वार के श्रीराम शर्मा जन्मशताब्दी चिकित्सालय की प्रमुख और बनारस ङ्क्षहदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) की स्त्री एवं प्रसूति रोग की पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. गायत्री शर्मा ने कहा कि मां की खुशी और गम का असर गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है।

गर्भवती जब खुश और संतुष्ट होती है तो सोच सकारात्मक होती है। ऐसे में सकारात्मक हार्मोंस रिलीज होते हैं। इनमें ऐडोर्फिन, एनकेफलिन, सिरोटोनिन, डोपामाइन हार्मोंस हैं। इसका गर्भस्थ शिशु पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जन्म के बाद बच्चा प्रसन्न, तनावमुक्त, खुशमिजाज होता है। व्यवहारकुशल होने के साथ पढ़ाई में मेधावी होता है। उसमें बातचीत करने की विलक्षण प्रतिभा होती है। उसमें निर्णय लेने की क्षमता भी होती है।

मां के भयभीत होने पर गुस्सैल होगा शिशु

डॉ. गायत्री शर्मा ने बताया कि गर्भवती भयभीत माहौल में रह रही है। वह गुस्सैल, ईष्यालु और चुगलखोर है। ऐसे में वह तनाव में रहेगी, जिससे एड्रिनेलिन, एसिटिएच और काटिसाल हार्मोंस रिलीज होंगे। इन हार्मोंस का गर्भस्थ शिशु पर निगेटिव प्रभाव पड़ता है। उसकी नाडिय़ों में सिकुडऩ आने से उसे प्रॉपर पोषक तत्व व ऑक्सीजन नहीं मिल पाएगी। इससे उसकी ग्रोथ प्रभावित होती है। बच्चा बात-बात पर रोनेवाला, चिड़चिड़ा, हाईपर एक्टिव, कई बीमारियों को लेकर पैदा होता है। मां कुपोषित है तो बच्चा हाईपरटेंशन, कैंसर और स्ट्रीमिंक हार्ट डिजीज की संभावनाएं लेकर पैदा होता है। उन्होंने गर्भोत्सव संस्कार का भावी पीढ़ी के निर्माण में भूमिका पर भी प्रकाश डाला।


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