गंगा के जीवों को बचाने की कवायद, डीएनए विश्लेषण से होंगे संरक्षित
दिसंबर माह में 25 दिन के लिए कानपुर आएगी भारतीय प्रणि सर्वेक्षण की टीम, गंगा में पल रहे जीवों का करेगी अध्ययन।
कानपुर (जागरण संवाददाता)। जीवनदायिनी गंगा की गोद में पलने वाले जीवों को संरक्षित करने के लिए उनके डीएनए का विश्लेषण किया जाएगा। नमामि गंगे के अंतर्गत भारतीय प्रणि सर्वेक्षण ने इसके लिए एक टीम बनाई है। यह टीम दिसंबर माह में 25 दिन के लिए कानपुर आएगी और गंगा में पल रहे जीवों का अध्ययन करेगी।
यह जानकारी मंगलवार को भारतीय प्राणि सर्वेक्षण के वैज्ञानिक डॉ. शांतनु कुंदु व डा. संदीप कुशवाहा ने सीएसजेएमयू में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान दी। वैज्ञानिक द्वय ने बताया कि गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण से दुर्लभ जलीय जीव जंतुओं पर खतरा मंडरा रहा है। घडिय़ाल, डाल्फिन व कछुओं की संख्या लगातार घट रही है। इसके अलावा छोटे जलीय जीव भी खत्म हो रहे हैं जो जल में तैरने वाले खराब अवयवों को नष्ट करते हैं। उन्होंने बताया कि डीएनए विश्लेषण व डीएनए बारकोडिंग की मदद से मछली, मेढ़क, मधुमक्खियां व मच्छरों के अलावा छोटे छोटे जलीय जीवों को बचाया जा सकता है।
इससे यह पता लग जाएगा कि कौन-कौन से जीव खत्म होने की कगार पर पहुंच गए हैं। इस दौरान इलाहाबाद विवि के प्रोफेसर संदीप कुमार मल्होत्रा, चौधरी चरण सिंह विवि के प्रोफेसर अशोक कुमार चौबे, डा. आशा राना व डा. अशक हुसैन मौजूद रहे।
छात्रों को सिखाएंगे डीएनए निकालना
कार्यशाला के दूसरे दिन बुधवार को डा. शांतनु कुन्दु व डा. संदीप कुशवाहा भर्तिहारि विवि कोयंबटूर, एचएनवी विवि गढ़वाल, आगरा, मेरठ व बरेली विश्वविद्यालय से चुने गए छात्रों, रिसर्च स्कॉलर व फैकल्टी को कीटों व मछलियों से डीएनए निकालना व उसकी बारकोडिंग करना सिखाएंगे।
कीटों की क्लोनिंग की जा सकती है
डा. संदीप कुशवाहा ने बताया कि डीएनए के विश्लेषण से प्रयोगशाला में कीटों की क्लोनिंग की जा सकती है। इसके अलावा दो कीटों के बीच अंतर भी इससे पता किया जा सकता है।
16 फरवरी से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने बताया कि सीएसजेएमयू में 'बायोसाइंसेज एंड मेडिकल साइंसेज न्यू फ्रेंटियर्स इन हेल्थ एंड इनवायरनमेंटÓ विषय पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होगा। मंगलवार को इसका ब्रोशर जारी कर दिया गया।