Move to Jagran APP

इशारों की पाठशाला दिला रही दिव्यांग बच्चों को पहचान

जो लोग सुन या बोल नहीं पाते हैं उनके हाथों चेहरे और शरीर के हाव-भाव से संपर्क करने की भाषा को सांकेतिक भाषा कहा जाता है। इसी भाषा के सहारे ऐसे दिव्यांग बच्चों की जिंदगी को संवारने का काम कैंट में प्रेरणा स्पेशल स्कूल पूरी शिद्दत से कर रहा है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 02:02 AM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 02:02 AM (IST)
इशारों की पाठशाला दिला रही दिव्यांग बच्चों को पहचान
शहर के एक स्‍कूल में इस तरह प्रशिक्षित होते हैं बच्‍चे । जागरण

 केस 1 

loksabha election banner

- फेथफुलगंज के ट्रेलर शौकत अली के बेटे हाशिम पैर से दिव्यांग हैं। वह स्पेशल खेल की राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में स्वर्ण व रजत पदक जीत चुके हैं।  

केस 2 

- शांतिनगर में रहने वाले श्याम वाल्मीकि के बेटे दीपक बोल-सुन नहीं सकते। उन्होंने 2018 में लखनऊ स्पेशल नेशनल खेल में रजत पदक जीता था।

केस 3 

- लालबंगला निवासी संजीव कश्यप की बेटी प्रीति कश्यप भी बोल-सुन नहीं सकने के बावजूद एथलीट में दो नेशनल और साफ्ट बॉल में एक नेशनल पदक झटक चुकी हैं। 

केस 4 

- लालबंगला की ही सुनीता के पिता बेचूलाल सब्जी का ठेला लगाते हैं। मानसिक रूप से कमजोर बेटी सुनीता ने बरेली नेशनल में दो स्वर्ण पदक जीत काबिलियत का परिचय दिया। 

अंकुश शुक्ल, कानपुर : जो लोग सुन या बोल नहीं पाते हैं, उनके हाथों, चेहरे और शरीर के हाव-भाव से संपर्क करने की भाषा को सांकेतिक भाषा कहा जाता है। इसी भाषा के सहारे ऐसे दिव्यांग बच्चों की जिंदगी को संवारने का काम कैंट में प्रेरणा स्पेशल स्कूल पूरी शिद्दत से कर रहा है। निश्शुल्क प्रशिक्षण देकर एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों विद्यार्थियों को राष्ट्रीय मंच तक पहुंच चुके हैं। 

बुधवार को विश्व सांकेतिक भाषा दिवस है। पूर्व स्पेशल खेल प्रशिक्षक सत्येंद्र यादव बताते हैं कि कई चरणों के बाद दिव्यांग बच्चों की काबिलियत को परखा जाता है। बच्चों को अकादमिक शिक्षा, फिजियो, स्पीच थेरेपी, काउंसिलिंग, वोकेशनल ट्रेनिंग, वर्चुअल  ट्रेनिंग के बाद खेल व अन्य गतिविधियों में लाया जाता है। दिव्यांगता को देखते हुए उन्हें कुछ प्रमुख खेलों में निपुण बनाने का अभ्यास कराया जाता है। सांकेतिक भाषा की जानकार अर्चना यादव ने बताया कि बच्चों का आइक्यू स्तर देखते हुए हाथ, लिप और शरीर के हाव-भाव से पढ़ाया जाता है। 

खेल के साथ कला पहचान बना रहे बच्चे 

प्रधानाचार्य डॉ. शिखा अग्रवाल के मुताबिक विद्यालय के लगभग 30 से 35 बच्चे स्पेशल राष्ट्रीय खेल में पदक जीत चुके। चित्रकला में छात्रा प्रीति की पेङ्क्षटग रक्षा मंत्रालय के वार्षिक कैलेंडर व बुकलेट में स्थान प्राप्त कर चुकी है। विद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर स्पेशल बच्चों को संवारने के लिए रक्षा मंत्री सम्मानित कर चुके हैं। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.