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लाखों यूरो का पैकेज छोड़ फ्रांस की डेल्फिन चित्रकूट आकर बन गईं मीनाक्षी दीदी

सुबह से शाम तक गांव-गांव घूमती हैैं और लोग उन्हें मीनाक्षी दीदी बुलाने लगे हैैं।

By AbhishekEdited By: Published: Sun, 15 Mar 2020 10:31 AM (IST)Updated: Sun, 15 Mar 2020 10:31 AM (IST)
लाखों यूरो का पैकेज छोड़ फ्रांस की डेल्फिन चित्रकूट आकर बन गईं मीनाक्षी दीदी
लाखों यूरो का पैकेज छोड़ फ्रांस की डेल्फिन चित्रकूट आकर बन गईं मीनाक्षी दीदी

चित्रकूट, [शिवा अवस्थी]। पाठा के पिछड़ापन और कोल आदिवासी महिलाओं की पीड़ा ने इतना दर्द दिया कि फ्रांस की डेल्फिन ओखलर यहीं रुक गईं। अब वह मीनाक्षी दीदी बन गई हैैं। समाजसेवा में मन रमा तो लाखों यूरो का पैकेज छोड़ दिया। आदिवासियों के हक की आवाज बनीं और गांव-गांव शिक्षा, स्वास्थ्य, नशामुक्ति, और महिला सशक्तीकरण के लिए जीवन समर्पित कर दिया।

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पेरिस की रहने वाली हैं डेल्फिन

चार बरस बाद भी डेल्फिन का हर दिन उसी जोश के साथ शुरू होता है। लोगों से मिलती हैं, समझाती हैं और समस्याएं दूर करने में सहायक की भूमिका निभाती हैं। आदिवासी भी उन्हें प्यार से मीनाक्षी दीदी बुलाते हैं। फ्रांस की राजधानी पेरिस की रहने वाली 42 वर्षीय डेल्फिन ओखलर 2013 में पहली बार चित्रकूट आईं थीं। उन्होंने बताया कि दुनिया को करीब से जानने के लिए कई देशों का भ्रमण किया। बताती हैैं, भारत में उड़ीसा, वाराणसी और इंदौर के बाद चित्रकूट पहुंची।

आदिवासी महिलाओं की पीड़ा ने झकझोरा

चित्रकूट के आध्यात्मिक वातावरण ने आकर्षित किया। कोल आदिवासी महिलाओं से मिलीं तो उनकी पीड़ा ने झकझोर दिया। इसके बाद हर साल निश्चित समय के लिए वीजा लेकर यहां आने लगी। इसी बीच आदिवासियों के लिए काम कर रही संस्था अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के तत्कालीन निदेशक स्व. भागवत प्रसाद से मुलाकात हुई। 2016 के बाद चित्रकूट धाम को ही अपना ठिकाना बना लिया। पेरिस की ऑनलाइन डिजिटल कंपनी में बड़े पैकेज पर प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम करने वाली डेल्फिन ने समाजसेवा के लिए नौकरी छोड़ दी।

संस्था के लोगों से सीखी हिंदी

समाजसेवा संस्था के पदाधिकारियों से हिंदी सीखी। चार साल से वह प्रतिदिन स्कूटी लेकर अगले लक्ष्य की ओर निकलती हैं। बरगढ़ क्षेत्र में उन्होंने कोल आदिवासी बेटियों को पाठशाला लगाकर पोषण और स्वच्छता के बारे में बताना शुरू किया। अब तक सौ से अधिक युवतियां प्रशिक्षण लेकर दूसरों को प्रेरित कर रही हैं। लोखरिया गांव में दर्जनों लोगों के मतदाता पहचान पत्र भी बनवाए हैं। मानिकपुर के पत्रकारपुरम गांव की राजरानी समेत न जाने कितने ही लोगों की वृद्धावस्था पेंशन को डीएम से मिलकर फिर से शुरू कराया है।

-आदिवासियों के लिए काम करके अच्छा लगता है। जिंदगी जीने की सीख, दर्शन, न्याय, समानता का संदेश और आदिवासियों को हक दिलाना ही अब जिंदगी का मकसद है। -डेल्फिन ओखलर

-डेल्फिन का मकसद हर कोल आदिवासी परिवार को बेहतर जिंदगी और रोजगार से जोडऩा मात्र है। इससे उनके मन को शांति मिलती है। उनकी भारतीय संस्कृति और अध्यात्म में भी गहरी आस्था है। -गोपाल भाई, संस्थापक, अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान चित्रकूट


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