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शिक्षा पर करोड़ों खर्च, नतीजा फिर भी सिफर

संसाधनों-सुविधाओं का रोना अधिकारी आज भी रोते हैं। हालांकि शिक्षा पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है फिर भी उसका परिणाम धरातल पर नजर नहीं आता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Apr 2018 01:52 PM (IST)Updated: Tue, 03 Apr 2018 01:52 PM (IST)
शिक्षा पर करोड़ों खर्च, नतीजा फिर भी सिफर
शिक्षा पर करोड़ों खर्च, नतीजा फिर भी सिफर

जागरण संवाददाता, कानपुर : शिक्षा में सुधार के प्रयास वाकई में किसी भ्रम से कम नहीं। यह बात दो दृश्यों से समझी जा सकती है। वर्ष भर तो सरकारी विद्यालयों में पठन-पाठन और संसाधनों-साधनों पर चुप्पी ओढ़े रहे शासन की सक्रियता बोर्ड परीक्षा के समय हुई। इरादा नकलविहीन परीक्षा का ताकि इसके जरिए शिक्षा सुधार के प्रति सरकार की संजीदगी पेश की जा सके। परीक्षा केंद्रों पर खुद आला अफसर सख्ती का परचम लहराते डटे नजर आए। डिप्टी सीएम तक परीक्षार्थियों की कॉपी उलटते-पलटते दिखे। ऐसे में उम्मीदों का उफान मारना लाजिमी है कि सुधार की बयार अब बह निकली है। लेकिन, ठहरिए। पूर्व माध्यमिक विद्यालय प्रतापपुर हरि के सहायक अध्यापक की बात भी सुन लेते हैं, जो ख्वाबों से निकाल हकीकत के धरातल पर वापस लाकर खड़ा कर देती है। सहायक अध्यापक राकेशबाबू पांडेय बताते हैं कि सत्र 2017-18 में विकास अनुदान के लिए मिलने वाली जो राशि अप्रैल 2017 में मिलनी चाहिए थी, अब जाकर मार्च 2018 में भेजी गई। सभी स्कूलों में राशि स्वीकृति का यही हाल रहा। राजकीय विद्यालयों में सुधार के लिए करोड़ों रुपये हर साल खर्च करने के दावे होते हैं, लेकिन जीआइसी चुन्नीगंज में आइए तो मुगालता दूर हो जाएगा। यहां छठवीं कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक महज 300 छात्र-छात्राएं हैं। सुविधाओं-संसाधनों का रोना आज भी है।

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मौजूदा स्थिति के साथ ही आंकड़े भी सोचने को मजबूर करने वाले हैं। बेसिक व माध्यमिक शिक्षा विभाग में हर साल करोड़ों रुपये सरकार खर्च करती है, मगर नतीजा सिफर है। जैसे-तैसे साल भर का समय काटा जाता है और फिर से एक नया सत्र शुरू हो जाता है। जब यह ढर्रा नहीं बदलेगा, तब तक बेहतर शैक्षिक वातावरण और छात्र-छात्राओं की सौ फीसद उपस्थिति की बात बेमानी है। बात बेसिक शिक्षा विभाग की करें तो हर वर्ष सरकार औसतन 20,000 रुपये प्रति बच्चे पर खर्च करती है। माध्यमिक में यह आंकड़ा प्रति बच्चा 40,000 हजार है। इसके बाद भी सकारात्मक परिणाम नहीं हैं। खैर, आंकड़े तो हर वर्ष तैयार होते हैं, लेकिन मूल सवाल सिस्टम में सुधार और परिवर्तन का है। सिस्टम सुधरे तो विद्यालयों की सूरत भी बदले।

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आंकड़ों पर एक नजर:

बेसिक शिक्षा विभाग:

सर्व शिक्षा अभियान का बजट : 24.85 करोड़ रुपये

मिडडे मील का बजट : 17.70 करोड़ रुपये

वेतन पर खर्च: करीब 300 करोड़

प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या: 2471

पढ़ने वाले कुल बच्चों की संख्या: 200500

(वर्ष 2017-18 के आंकड़े)

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माध्यमिक शिक्षा विभाग:

कुल अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालय: 113

सरकार से मिलने वाला बजट: लगभग 100 करोड़ रुपये

राजकीय विद्यालयों के लिए: 77.10 करोड़ रुपये

छात्र-छात्राओं की संख्या: 2022000

(वर्ष 2017-18 के आंकड़े)


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