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अगर बिना वजह भाप लेते हैं तो जरूर पढ़ें ये खबर, सामने आई ब्लैक फंगस की एक और वजह

कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कालेज में अबतक ब्लैक फंगस के 53 मरीजों पर शोध किया गया है। भाप लेने से नाक-आंख के बीच की मीडियल वाल आफ आर्बिट डैमेज होने की बात सामने आई है। शोध को प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित कराने के लिए ईमेल किया है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 16 Jun 2021 09:52 AM (IST)Updated: Wed, 16 Jun 2021 02:04 PM (IST)
अगर बिना वजह भाप लेते हैं तो जरूर पढ़ें ये खबर, सामने आई ब्लैक फंगस की एक और वजह
कोरोना के डर से भाप लेना पड़ा भारी।

कानपुर, [ऋषि दीक्षित]। कोरोना की चपेट में आने वाले और एहतियातन बचने के लिए लोगों ने खूब भाप ली। यही भाप अब ब्लैक फंगस की वजह बन गई है। इससे नाक और आंख के बीच की परत यानी मीडियल वाल आफ आर्बिट डैमेज हो गई। प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) पनपने लगा। जो धीरे-धीरे नाक, आंख और ब्रेन की तरफ बढ़ता गया।

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यह अहम जानकारी जीएसवीएम मेडिकल कालेज के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष व अन्य चिकित्सकों के शोध में सामने आई है। अस्पताल में अब तक 50 मरीज भर्ती हुए हैं, जिसमें से 90 फीसद ने भाप लेने की बात कही। उसमें से कई ऐसे भी हैं, जो कोरोना संक्रमित नहीं हुए फिर भी ब्लैक फंगस पीडि़त हुए। इस शोध को प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित कराने के लिए ईमेल किया है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर की ढलान के बाद डाक्टरों के लिए नई चुनौती के रूप में ब्लैक फंगस सामने आया। विशेषज्ञों का कहना है कि सामान्यत: इस प्रजाति के फंगस का संक्रमण विरले ही किसी मरीज में मिलता है। इसके इलाज का देश-दुनिया में उपलब्ध चिकित्सकीय किताबों में भी ज्यादा जिक्र नहीं है। इसके निराकरण के लिए नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रो. परवेज खान ने असिस्टेंट प्रोफेसर डा. पारुल सिंह और डा. नम्रता के साथ इन मरीजों पर अध्ययन शुरू कर दिया, ताकि असल वजह पता चल सके। अभी तक 53 संक्रमितों की केस स्टडी तैयार की है। उसमें ब्लैक फंगस पीडि़त सबसे कम उम्र का 25 वर्षीय युवक और सबसे अधिक उम्र के 70 वर्षीय बुजुर्ग मिले हैं। उसमें से 95 फीसद को कोरोना हुआ, जबकि 5 फीसद बिना कोरोना हुए ब्लैक फंगस की चपेट में आए।

यह रही अहम वजह : ब्लैक फंगस के 99 फीसद मरीज में मधुमेह पाई गई। उन्हें स्टेरायड और एंटीबायोटिक दवाएं खूब दी गईं। इससे उनकी प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) कमजोर हो गई। उस पर सभी ने दिन में कई-कई बार भाप ली। नाक में नमी से फंगस के स्पोर वहां तेजी से विकसित हुए।

30 मरीजों का साइनस व चार की आंख निकाली : एलएलआर अस्पताल (हैलट) में 15 मई से 15 जून के बीच ब्लैक फंगस के 30 मरीजों की साइनस की सर्जरी की गई है, जबकि चार संक्रमितों की आंख निकालनी पड़ी। 35 मरीजों को इंजेक्शन लगाकर आंख बचाई गई।

कानपुर में यह रही ब्लैक फंगस की स्थिति

53 मरीज ब्लैक फंगस के हुए भर्ती

95 फीसद में कोरोना

99 फीसद में मधुमेह

99 फीसद को स्टेरायड

20 से 30 दिन तक हाईग्रेड एंटीबायोटिक

  • कोरोना पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में भी फैला, लेकिन वहां ब्लैक फंगस केस रिपोर्ट नहीं हुए। सर्वाधिक केस भारत में ही सामने आए हैं। वजह पता करने को अध्ययन शुरू किया है। 90 फीसद मरीज अपने मन से दिन में कई-कई बार भाप ले रहे थे। हाई एंटीबायोटिक इस्तेमाल से शरीर के अच्छे बैक्टीरिया भी मर गए, जिससे फंगल आक्रामक हो गया। -प्रो. परवेज खान, विभागाध्यक्ष, नेत्र रोग, जीएसवीएम मेडिकल कालेज।

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