बेटों ने ही करा दी थी ट्रांसपोर्टर पिता की हत्या, कोर्ट ने सुनाई उम्रकैद की सजा
ट्रांसपोर्टर हत्याकांड में अदालत ने दो बेटों समेत आठ अभियुक्त को आजीवन कारावास और बीस बीस हजार जुर्माने की सजा सुनाई है।
By AbhishekEdited By: Published: Sat, 19 Jan 2019 08:04 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jan 2019 11:43 AM (IST)
कानपुर, जेएनएन। ग्यारह साल पहले ट्रांसपोर्टर पिता की हत्या कराने के मामले में कोर्ट ने आरोपित दोनों बेटों व रिश्तेदारों समेत आठ अभियुक्तों को आजीवन कारावास और बीस बीस हजार जुर्माने की सजा सुनाई है। इनमे एक आरोपित को आम्र्स एक्ट और साक्ष्य छिपाने के आरोप में तीन और दो वर्ष कैद तथा 5-5 हजार रुपये जुर्माने से दंडित किया है। वहीं सात आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है।
गोली मारकर की गई थी हत्या
नौबस्ता के शंकराचार्य नगर निवासी जगतबली यादव ट्रांसपोर्टर थे और ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की कार्यकारिणी में पदाधिकारी भी थे। 6 सितंबर 2007 की रात 8:20 बजे वह घर जाने के लिए स्कूटर स्टार्ट कर रहे थे, उसी वक्त स्कार्पियों से आए शूटरों ने उनके सिर से सटाकर गोली मारकर हत्या कर दी थी। आनंदपुरी चौकी के पास हुई घटना की रिपोर्ट बेटे अजय यादव ने बाबूपुरवा थाने में दर्ज करायी थी। तत्कालीन बाबूपुरवा इंस्पेक्टर जयराम सिंह ने पांच आरोपितों मयंक तिवारी, अमित यादव, काले उर्फ उदयभान, गोपाल यादव और दीपक जादौन को गिरफ्तार किया कर जेल भेजा था। 17 सितंबर को मयंक तिवारी से विवेचक ने कट्टा बरामद किया था। 16 नवंबर 2007 को विवेचक ने चार्जशीट दाखिल की थी। कोई चश्मदीद गवाह नहीं था बल्कि मामले को सर्विलांस के जरिये पर्दाफाश किया जाना दिखाया गया था। अभियोजन ने 21 गवाह प्रस्तुत किए।
कथित पत्नी के प्रार्थना पत्र के बाद आया मोड़
शासकीय अधिवक्ता मनोज बाजपेयी ने बताया कि पांच आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट लगने के बाद कथित पत्नी मालती देवी ने तत्कालीन एसएसपी को प्रार्थना पत्र दिया और मुकदमे के वादी और मृतक के बेटे अजय पर शक जाहिर किया। इसके बाद एसओजी को जांच सौपी गई। एसओजी ने सर्विलांस पर आरोपितों के फोन टैप किए, जिसके बाद हत्या की असलियत सामने आ गई।
बेटों समेत छह की गिरफ्तारी हुई
एसओजी ने जांच रिपोर्ट और साक्ष्य एसएसपी को सौंपे जिसके बाद 20 नवंबर 2007 को इस मामले की जांच तत्कालीन स्वरूप नगर इंस्पेक्टर वीपी सिंह को सौंपी गई। छह दिन की विवेचना में 26 नवंबर को उन्होंने मुकदमे के वादी और मृतक के बेटे अजय यादव भाई विजय यादव, दिलीप पांडेय, महातम यादव, ब्रह्मदेव, कबीर अंसारी और जयराम को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। विवेचक ने झकरकटी बस अड्डा से घटना में प्रयुक्त स्कार्पियों कार भी बरामद की थी।
तीसरे विवेचक ने लगायी चार्जशीट
फजलगंज थाना प्रभारी कृपाशंकर सरोज को जांच सौंपी गई। उन्होंने घटना में चार आरोपितों की भूमिका पायी और आरोपित बनाया। उन्होंने अपने साथ अन्य विवेचकों द्वारा तैयार चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की। 16 नवंबर 2007 को प्रथम विवेचक जयराम सिंह द्वारा पांच आरोपितों के खिलाफ तैयार चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की। 5 मार्च 2008 को दूसरे विवेचक वीपी सिंह द्वारा छह आरोपितों के खिलाफ तैयार चार्जशीट दाखिल की इसमे जयराम और रामकेवल का नाम भी जोड़ा। 31 मई 2008 को सुदर्शन उर्फ लंबू और संतोष के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।
रिश्तेदार बने आरोपित
अधिवक्ता सुनील कुमार पांडेय ने बताया कि मृतक के रिश्तेदारों को पुलिस ने हत्या में नामजद किया था। मृतक के बेटों के अलावा रिश्तेदार भी शामिल थे। सुनवाई के बाद अपर सत्र न्यायाधीश कृष्ण स्वरूपधर द्विवेदी की कोर्ट ने आठ आरोपितों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद और 20-20 हजार रुपये जुर्माने से दंडित किया है। इसमें दोनों बेटे अजय यादव व विजय यादव, मयंक तिवारी उर्फ छोटू, अमित यादव, महातम यादव, कबीर अंसारी, संतोष और जयराम शामिल हैं। जबकि आरोपित ब्रह्मदेव, रामकेवल, सुदर्शन उर्फ लंबू, काले उर्फ उदयभान, गोपाल यादव, दिलीप पांडेय और दीपक जादौन को बरी कर दिया गया है।
गोली मारकर की गई थी हत्या
नौबस्ता के शंकराचार्य नगर निवासी जगतबली यादव ट्रांसपोर्टर थे और ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की कार्यकारिणी में पदाधिकारी भी थे। 6 सितंबर 2007 की रात 8:20 बजे वह घर जाने के लिए स्कूटर स्टार्ट कर रहे थे, उसी वक्त स्कार्पियों से आए शूटरों ने उनके सिर से सटाकर गोली मारकर हत्या कर दी थी। आनंदपुरी चौकी के पास हुई घटना की रिपोर्ट बेटे अजय यादव ने बाबूपुरवा थाने में दर्ज करायी थी। तत्कालीन बाबूपुरवा इंस्पेक्टर जयराम सिंह ने पांच आरोपितों मयंक तिवारी, अमित यादव, काले उर्फ उदयभान, गोपाल यादव और दीपक जादौन को गिरफ्तार किया कर जेल भेजा था। 17 सितंबर को मयंक तिवारी से विवेचक ने कट्टा बरामद किया था। 16 नवंबर 2007 को विवेचक ने चार्जशीट दाखिल की थी। कोई चश्मदीद गवाह नहीं था बल्कि मामले को सर्विलांस के जरिये पर्दाफाश किया जाना दिखाया गया था। अभियोजन ने 21 गवाह प्रस्तुत किए।
कथित पत्नी के प्रार्थना पत्र के बाद आया मोड़
शासकीय अधिवक्ता मनोज बाजपेयी ने बताया कि पांच आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट लगने के बाद कथित पत्नी मालती देवी ने तत्कालीन एसएसपी को प्रार्थना पत्र दिया और मुकदमे के वादी और मृतक के बेटे अजय पर शक जाहिर किया। इसके बाद एसओजी को जांच सौपी गई। एसओजी ने सर्विलांस पर आरोपितों के फोन टैप किए, जिसके बाद हत्या की असलियत सामने आ गई।
बेटों समेत छह की गिरफ्तारी हुई
एसओजी ने जांच रिपोर्ट और साक्ष्य एसएसपी को सौंपे जिसके बाद 20 नवंबर 2007 को इस मामले की जांच तत्कालीन स्वरूप नगर इंस्पेक्टर वीपी सिंह को सौंपी गई। छह दिन की विवेचना में 26 नवंबर को उन्होंने मुकदमे के वादी और मृतक के बेटे अजय यादव भाई विजय यादव, दिलीप पांडेय, महातम यादव, ब्रह्मदेव, कबीर अंसारी और जयराम को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। विवेचक ने झकरकटी बस अड्डा से घटना में प्रयुक्त स्कार्पियों कार भी बरामद की थी।
तीसरे विवेचक ने लगायी चार्जशीट
फजलगंज थाना प्रभारी कृपाशंकर सरोज को जांच सौंपी गई। उन्होंने घटना में चार आरोपितों की भूमिका पायी और आरोपित बनाया। उन्होंने अपने साथ अन्य विवेचकों द्वारा तैयार चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की। 16 नवंबर 2007 को प्रथम विवेचक जयराम सिंह द्वारा पांच आरोपितों के खिलाफ तैयार चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की। 5 मार्च 2008 को दूसरे विवेचक वीपी सिंह द्वारा छह आरोपितों के खिलाफ तैयार चार्जशीट दाखिल की इसमे जयराम और रामकेवल का नाम भी जोड़ा। 31 मई 2008 को सुदर्शन उर्फ लंबू और संतोष के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।
रिश्तेदार बने आरोपित
अधिवक्ता सुनील कुमार पांडेय ने बताया कि मृतक के रिश्तेदारों को पुलिस ने हत्या में नामजद किया था। मृतक के बेटों के अलावा रिश्तेदार भी शामिल थे। सुनवाई के बाद अपर सत्र न्यायाधीश कृष्ण स्वरूपधर द्विवेदी की कोर्ट ने आठ आरोपितों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद और 20-20 हजार रुपये जुर्माने से दंडित किया है। इसमें दोनों बेटे अजय यादव व विजय यादव, मयंक तिवारी उर्फ छोटू, अमित यादव, महातम यादव, कबीर अंसारी, संतोष और जयराम शामिल हैं। जबकि आरोपित ब्रह्मदेव, रामकेवल, सुदर्शन उर्फ लंबू, काले उर्फ उदयभान, गोपाल यादव, दिलीप पांडेय और दीपक जादौन को बरी कर दिया गया है।
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