World COPD Day 2021: सीओपीडी के मरीज प्रदूषण व ठंड से बचाव के साथ उपचार में न बरतें लापरवाही...
World COPD Day 2021 कानपुर के पलमोनोलाजिस्ट डा. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि क्रानिक आब्सट्रेक्टिव पलमोनरी डिजीज के मरीज को प्रदूषण व ठंड जटिल बना देता है। इसलिए उनके बचाव के साथ उपचार में न बरतें लापरवाही...
कानपूर, जेएनएन। क्रानिक आब्सट्रेक्टिव पलमोनरी डिजीज (सीओपीडी) सांस संबंधित रोगों में प्रमुख है। वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार, विश्वभर में लगभग 10 फीसद वयस्क इस रोग से पीड़ित हैं। इस रोग के 80 फीसद रोगी विकासशील देशों में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, यह रोग मृत्यु का तीसरा मुख्य कारण है। बीते दो वर्षों में कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों के फेफड़ों को सबसे अधिक नुकसान हुआ है, जो लोग पहले से ही इस रोग से ग्रसित थे, उनकी समस्या और जटिल हो गई है।
ठंड की शुरुआत और बढ़े प्रदूषण ने इसके रोगियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वैसे भी बदलते मौसम में इस रोग की तीव्रता बढ़ जाती है। इससे रोगी को सांस लेने में परेशानी होती है और फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसलिए उपचार में लापरवाही न बरतें, क्योंकि समस्या बढ़ने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है।
सीओपीडी का कारण: सीओपीडी का प्रमुख कारण धूमपान है। भारत में लगभग 25 करोड़ लोग धूमपान करते हैं। हालांकि कुछ मामलों में यह रोग धूमपान न करने वालों को भी होता है। धूमपान के अतिरिक्त चूल्हे या उद्योगों से निकलने वाले धुएं, प्रदूषित वातावरण व टीबी का पुराना रोग इसकी वजह है।
प्रमुख लक्षण: इस रोग के लक्षण मौसम में बदलाव के समय, वातावरण में अधिक प्रदूषण बढ़ने पर या अधिक ठंड पड़ने पर दिखते हैं। धीरे-धीरे यह लक्षण हमेशा रहते हैं और स्थिति ऐसी हो जाती है कि पीड़ित अपने दैनिक कार्य भी ठीक से नहीं कर पाता है। इसके प्रमुख लक्षणों में लंबे समय तक खांसी आना, खांसी के साथ बलगम आना और चलने पर सांस फूलना शामिल है।
उपचार: कुछ वर्षों पूर्व तक इस बीमारी का इलाज नहीं था, लेकिन नए शोधों ने इनहेलर व दवाओं के प्रयोग से इसे नियंत्रित करने में सफलता पाई है। इसे परहेज और उपचार से नियंत्रित किया जा सकता है। इससे बचने के लिए धूमपान से बचें। घर से बाहर निकलने पर मास्क का प्रयोग करें और चिकित्सक की सलाह पर दवाएं लेते रहें। इस रोग से बचाव के लिए चिकित्सक मरीज को दो अलग-अलग प्रकार के इनहेलर का प्रयोग कराते हैं, जिनमें अलग-अलग दवाएं होती हैं। यह चिकित्सकीय परीक्षण के बाद ही तय हो पाता है कि किस मरीज को कौन सा इनहेलर देना है। इसके रोगियों को आवश्यक होने पर चिकित्सक स्टेरायड का सेवन भी कराते हैं।