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लोगों के करोड़ों लेकर भागी चिट फंड कंपनी, दफ्तर के बाहर पीडि़तों का हंगामा

पांच साल तक रकम जमा करने के बाद लोग मैच्योरिटी की रकम लेने गए तो पता लगा कि कंपनी ने दफ्तर बंद कर दिया है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Fri, 21 Apr 2017 09:52 PM (IST)Updated: Fri, 21 Apr 2017 09:52 PM (IST)
लोगों के करोड़ों लेकर भागी चिट फंड कंपनी, दफ्तर के बाहर पीडि़तों का हंगामा
लोगों के करोड़ों लेकर भागी चिट फंड कंपनी, दफ्तर के बाहर पीडि़तों का हंगामा

कानपुर (जेएनएन)। पांच साल में रकम दोगुनी करने का झांसा देकर एफडी करने और रिकरिंग डिपोजिट खाते खोल एक कंपनी ने सैकड़ों लोगों को चूना लगा दिया। पांच साल तक रकम जमा करने के बाद लोग मैच्योरिटी की रकम लेने गए तो पता लगा कि कंपनी ने दफ्तर बंद कर दिया है। शुक्रवार को पीडि़तों ने अनवरगंज स्टेशन के पास दफ्तर के बाहर हंगामा किया और रायपुरवा थाने में रिपोर्ट लिखाई।
नौबस्ता निवासी राकेश कुमार एक निजी फर्म में नौकरी करते हैं। उन्होंने छह साल पहले अपने मामा वीरेंद्र सिंह के कहने पर कल्पबट रीयल एस्टेट कंपनी के अनवरगंज दफ्तर में रकम निवेश की थी। वीरेंद्र सिंह उस समय कंपनी में एजेंट थे। कंपनी ने एफडी पर साढ़े पांच साल में रकम दोगुनी करने और रिकरिंग डिपोजिट पर पांच साल बाद डेढ़ गुनी रकम देने की बात कही थी। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी रीना, दामाद अमित व तमाम रिश्तेदारों के भी एफडी और रिकरिंग खाते खुलवाए।

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कुल मिलाकर करीब नौ लाख रुपये जमा हुए। पांच साल पूरे होने पर जब वे सभी रकम लेने गए तो नोटबंदी और दूसरे बहाने बनाकर कंपनी के अफसर टरकाते रहे। शुक्रवार को सभी एकजुट होकर दोबारा पहुंचे और दफ्तर बंद उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया। पुलिस ने लोगों को शांत कराया। बाद में राकेश की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज की। इंस्पेक्टर विष्णु कौशिक ने बताया कि रिपोर्ट दर्ज करके जांच की जा रही है।

मथुरा में है कंपनी का हेड आफिस
राकेश ने बताया कि कंपनी का हेड आफिस मथुरा में है। हालांकि वे कभी वहां नहीं गए। अब वे यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि वहां भी कंपनी का आफिस बंद तो नहीं हो गया। राकेश ने बताया कि सैकड़ों रिकङ्क्षरग खाते 300 व 200 रुपये प्रतिमाह के खुले थे। उनके रिश्तेदारों ने तो एफडी और रिकङ्क्षरग खाते एक साथ खुलवाए थे।

दो दर्जन एजेंटों ने खुलवाए सैकड़ों खाते
राकेश के अनुसार उनके मामा कंपनी में एजेंट थे, लेकिन उनका अब देहांत हो चुका है। मामा के कहने पर ही उन्होंने अपनी और तमाम रिश्तेदारों की रकम निवेश कराई। मामा की ही तरह करीब एक दर्जन एजेंट थे जिन्होंने सैकड़ों खाते खुलवाए। एक एजेंट के 40 लाख रुपये फंस गए। 


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