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ऐसी हैं शकुंतला, भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में सबसे पहले पति को ही कराया निलंबित Auraiya News

कानपुर के मकनपुर की शकुंतला को भ्रूण हत्या व बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाने में 2017 में रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार मिला था।

By Edited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 10:35 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 01:37 PM (IST)
ऐसी हैं शकुंतला, भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में सबसे पहले पति को ही कराया निलंबित Auraiya News
ऐसी हैं शकुंतला, भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में सबसे पहले पति को ही कराया निलंबित Auraiya News
औरैया, जेएनएन। बिना पढ़ी लिखी शकुंतला के साहस की कहानी सुन हर कोई उन्हें सलाम करता है। उन्होंने कुरीतियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया तो सबसे पहले अपने ही ग्राम पंचायत अधिकारी पति को निलंबित करा दिया। इसके अलावा किसी भी प्रकार से रिश्वत लेने पर पति पर रोक लगा दी और समाज में बाल विवाह से लेकर भ्रूण हत्या तक अभियान चलाया। शकुंतला के अभियान में सैकड़ों महिलाएं जुड़ गईं। उनके साहस को सरकार ने सराहा और 2017 में रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार से सम्मानित किया।
पिता, भाई व बहन की मौत से टूट गई थीं
कानपुर के मकनपुर निवासी शकुंतला के पिता की मौत के बाद भाई व बहन की भी मौत हो गई। मां ने किसी तरह उसका विवाह मल्हानपुर्वा निवासी ग्राम पंचायत सचिव जगदीश श्रीवास्तव से करा दिया। शादी के बाद घर का काम और पति की डांट से वह परेशान थी। इसके बाद उसने महिलाओं के उत्पीडऩ के खिलाफ आवाज उठाने को ठानी। इसी बीच गांव की 58 गरीब महिलाओं के पट्टे पर दबंगों ने कब्जा कर लिया था।
महिलाओं के साथ उठाई आवाज
अक्टूबर 1998 में शकुंतला ने महिलाओं के साथ जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। उनके ग्राम पंचायत अधिकारी पति उन्हें धरना प्रदर्शन से हटने की धमकी देने लगे और कहा कि नहीं हटी तो तलाक दे दूंगा। वह नहीं मानी और अंत में तत्कालीन जिलाधिकारी ने उनके पति को निलंबित करते हुए गरीब महिलाओं को पट्टे पर काबिज कराया। इसके बाद उनके साथ वह सभी महिलाएं जुड़ गईं। उन्होंने गांव व आस-पास 50 बाल विवाह और कई जगह भ्रूण हत्या रुकवाईं। 18 दिसंबर 2017 में उन्हें मुख्यमंत्री ने रानी लक्ष्मी बाई पुरुष्कार भी दिया।
परदा प्रथा पर किया प्रहार
शकुंतला ने महिलाओं को परदा प्रथा पर भी प्रहार किया। वह बताती हैं कि ससुराल में पूरे दिन घूंघट रखने से वह कोई काम नहीं कर पातीं। महिलाएं घूंघट के बाहर निकली और उनसे जुड़ती चली गई। शकुंतला की उम्र 50 हो गई है। मगर उन्होंने हार नहीं मानी है। वह महिलाओं के अधिकारों के लिए जिला प्रशासन से लेकर कमिश्नर तक कार्यालय में धरने पर बैठ जाती हैं। वह बताती हैं कि आज उनके साथ कई युवतियां भी जुड़ी हैं।

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