प्रदेश की जेलों में भ्रष्टाचार की जड़ें बन चुकीं कैंटीन होंगी बंद
आइजी जेल ने शासन को भेजा प्रस्ताव, अनुमति का इंतजार, तिहाड़ जेल की तर्ज पर सर्कुलर जारी कर शुरू हुई थी व्यवस्था।
By Edited By: Published: Thu, 06 Dec 2018 01:45 AM (IST)Updated: Thu, 06 Dec 2018 04:27 PM (IST)
कानपुर (आलोक शर्मा)। प्रदेश की जेलों में चल रही कैंटीन वर्तमान में भ्रष्टाचार की बड़ी वजह बन गई हैं। इससे निजात पाने के लिए कैंटीन व्यवस्था खत्म करने की तैयारी है। इसके लिए प्रदेश भर की जेलों के मुखिया, आइजी जेल ने शासन को प्रस्ताव भेजा है। ऐसे बंदी जो सामान्य खाना खाने की अपेक्षा कुछ और भी खाना चाहते हैं वह पैसे से कैंटीन से वस्तुएं खरीद सकते हैं।
इस संबंध में 30 नवंबर 2015 को सचिव एसके रघुवंशी उप्र सरकार ने सर्कुलर जारी किया था। इसके बाद कारागार विभाग के 7 जनवरी 2016 के आदेश पर प्रदेश की जेलों में कैंटीन व्यवस्था शुरू हो गई। इसे अब भ्रष्टाचार की बड़ी वजह माना जा रहा है। विभागीय सूत्रों के अनुसार कैंटीन की आड़ में खाने पीने के साथ ही दूसरी वस्तुओं की बिक्री भी हो रही है। यह न केवल अवैध कमाई का जरिया बन गया है बल्कि प्रतिबंधित वस्तुएं पहुंचने की आशंका भी रहती है।
खासकर रसूखदार बंदियों के मनपसंद सामान के लिए मनमाना पैसा लिया जाता है। दो दिन पहले जेलों में पड़े छापे के पीछे की वजह भी यही थी। आइजी कारागार विभाग उप्र चंद्रप्रकाश ने बताया कि जेल में कैंटीन व्यवस्था खत्म करने का प्रस्ताव शासन को दिया है। जैसे ही शासन से अनुमति मिल जाएगी, प्रदेश की जेलों में कैंटीन खत्म कर दी जाएगी। जेल मैनुअल से नहीं सर्कुलर की है व्यवस्था जेल में कैंटीन की व्यवस्था मैनुअल की नहीं बल्कि सर्कुलर की है। इसे तिहाड़ जेल में चल रही व्यवस्था के आधार पर शुरू किया गया था। इसमें 13 वस्तुओं को बेचने की अनुमति थी।
तय हुआ था कि बेचे जा रहे सामान की कीमत क्षेत्रीय स्तर पर सीनियर मार्केटिंग इंस्पेक्टर तय करेगा इसलिए सामान की कीमतें जेल अधिकारी तय करते हैं। बाजार की तुलना में जेल की कैंटीन में सामान दो से तीन गुना महंगा बेचा जाता है, जबकि नियम है कि सामान की खरीद और उसे बनाने में आयी लागत का दस फीसद अतिरिक्त पैसा ही लिया जाएगा। यह पैसा सरकारी खजाने में जमा होगा। सूत्र बताते हैं कि दस फीसद सरकारी खजाने में जमा करने के बाद ही प्रतिदिन हजारों रुपये की आमदनी इन्ही कैंटीनों से होती है जो जेबों में जाती है।
इस संबंध में 30 नवंबर 2015 को सचिव एसके रघुवंशी उप्र सरकार ने सर्कुलर जारी किया था। इसके बाद कारागार विभाग के 7 जनवरी 2016 के आदेश पर प्रदेश की जेलों में कैंटीन व्यवस्था शुरू हो गई। इसे अब भ्रष्टाचार की बड़ी वजह माना जा रहा है। विभागीय सूत्रों के अनुसार कैंटीन की आड़ में खाने पीने के साथ ही दूसरी वस्तुओं की बिक्री भी हो रही है। यह न केवल अवैध कमाई का जरिया बन गया है बल्कि प्रतिबंधित वस्तुएं पहुंचने की आशंका भी रहती है।
खासकर रसूखदार बंदियों के मनपसंद सामान के लिए मनमाना पैसा लिया जाता है। दो दिन पहले जेलों में पड़े छापे के पीछे की वजह भी यही थी। आइजी कारागार विभाग उप्र चंद्रप्रकाश ने बताया कि जेल में कैंटीन व्यवस्था खत्म करने का प्रस्ताव शासन को दिया है। जैसे ही शासन से अनुमति मिल जाएगी, प्रदेश की जेलों में कैंटीन खत्म कर दी जाएगी। जेल मैनुअल से नहीं सर्कुलर की है व्यवस्था जेल में कैंटीन की व्यवस्था मैनुअल की नहीं बल्कि सर्कुलर की है। इसे तिहाड़ जेल में चल रही व्यवस्था के आधार पर शुरू किया गया था। इसमें 13 वस्तुओं को बेचने की अनुमति थी।
तय हुआ था कि बेचे जा रहे सामान की कीमत क्षेत्रीय स्तर पर सीनियर मार्केटिंग इंस्पेक्टर तय करेगा इसलिए सामान की कीमतें जेल अधिकारी तय करते हैं। बाजार की तुलना में जेल की कैंटीन में सामान दो से तीन गुना महंगा बेचा जाता है, जबकि नियम है कि सामान की खरीद और उसे बनाने में आयी लागत का दस फीसद अतिरिक्त पैसा ही लिया जाएगा। यह पैसा सरकारी खजाने में जमा होगा। सूत्र बताते हैं कि दस फीसद सरकारी खजाने में जमा करने के बाद ही प्रतिदिन हजारों रुपये की आमदनी इन्ही कैंटीनों से होती है जो जेबों में जाती है।
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