दस साल में ही डूब गया ब्रह्मावर्त बैंक
2008 में शुरू हुए बैंक के सामने दस साल में ही वित्तीय संकट आ गया। इसका प्रमुख कारण वित्त्तीय अनियमितता रहा।
जागरण संवाददाता, कानपुर : वर्ष 2008 में खोला गया ब्रह्मावर्त कॉमर्शियल कोआपरेटिव बैंक का प्रबंधन एक दशक सिर्फ वित्तीय अनियमितता करता रहा। पहले सात वर्ष बैंक अपनी माली हालत अच्छी दिखाता रहा, इससे बड़ी संख्या में लोगों ने अपने खाते बैंक में खुलवा लिए, लेकिन 2015 से बैंक ने वित्तीय संकट दिखाना शुरू कर दिया। तीन वर्ष में यह स्थिति हो गई कि रिजर्व बैंक को 2018 में इसका लाइसेंस रद करना पड़ा। गुरुवार को डेढ़ वर्ष बाद खाताधारकों का धन वापस लौटाने की प्रक्रिया शुरू हो सकी।
जांच अधिकारियों के मुताबिक बैंक ने ऋण देने में तमाम गड़बड़ियां कीं। इसमें कुछ ऐसी संपत्तियों पर भी ऋण दिखा दिया गया, जिस पर पहले से ही ऋण था। बैंक प्रबंधन ने अपने रिश्तेदारों को दिए ऋण में मानकों का ध्यान नहीं दिया। प्रबंधन के लोग एक परिवार के होने की वजह से शीर्ष पदों पर बैठे थे। इसलिए भारी वेतन भी उठा रहे थे। बैंक में जब आय के मुकाबले खर्च ज्यादा बढ़ गए तो 2015 में रिजर्व बैंक के पास गड़बड़ियों की शिकायतें पहुंचीं। रिजर्व बैंक ने अपनी जांच रिपोर्ट में बैंक को अपने खर्चे घटाने के निर्देश दिए। इसके बाद बैंक ने अपनी तीन शाखाओं का विलय कर दिया। इससे रतनलाल नगर स्थित मुख्यालय में स्थित शाखा के अलावा काकादेव, यशोदा नगर, डिप्टी पड़ाव, बारा देवी, बर्रा आठ में ही छह शाखाएं बचीं। 26 जून 2018 को लाइसेंस रद होने के साथ ही ये शाखाएं भी बंद हो गईं। लिक्विडेटर की नियुक्ति के बाद जांच हुई तो पाया गया कि बैंक के जिम्मेदार अधिकारियों ने 38,99,09,153 रुपये की वित्तीय अनियमितता की। इसमें बैंक के सचिव और मुख्य कार्यपालक अधिकारी आशुतोष मिश्रा को सबसे बड़ा दोषी माना गया। नवंबर 2019 में सहकारिता विभाग के सहायक आयुक्त अंसल कुमार ने आशुतोष मिश्रा, उनकी पत्नी व डीजीएम किरण मिश्रा, बेटे व एजीएम गौरव मिश्रा के साथ ही अन्य बैंक अधिकारियों के खिलाफ गोविंद नगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई।