Book Review: महात्मा गांधी को दैवीय आभा से परे एक मनुष्य के रूप में देखती और स्थापित करती है 'गांधी मणिष'
शरत कुमार महांति द्वारा उडिय़ा में लिखी और सुजाता शिवेन द्वारा हिंदी में अनुवादित गांधी मणिष पुस्तक में गांधी दर्शन को रेखांकित करती जीवनी है। इसमें महात्मा गांधी को दैवीय आभा से परे एक मनुष्य के रूप में दर्शाया गया है।
यह पुस्तक महात्मा गांधी के समग्र व्यक्तित्व को उनकी दैवीय आभा से परे एक मनुष्य के रूप में न केवल देखती है, बल्कि उसे स्थापित भी करती है...। इस पुस्तक के बारे में खास जानकारी दे रहे हैं विजय सिंह..।
कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं, जिनका असर भाषा और समय के पार होता है। शरत कुमार महांति द्वारा उडिय़ा में लिखी मोहनदास करमचंद गांधी की जीवनी 'गांधी मणिष' कुछ ऐसी ही है। महांति को इस पुस्तक पर अकादेमी सम्मान मिला था, जिसका हिंदी अनुवाद सुजाता शिवेन ने किया है।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह महात्मा गांधी के समग्र व्यक्तित्व को उनकी दैवीय आभा से परे एक मनुष्य के रूप में न केवल देखती है, बल्कि स्थापित भी करती है। पुस्तक यह बताती है कि वर्ष 1933 में भारत की दो महान संतान गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर और डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लंबी आलोचना के बाद इस बात पर सहमति जताई थी कि विगत 200 वर्षों में महात्मा की तरह नैतिक आभा वाले किसी व्यक्तित्व ने भारत भूमि पर जन्म नहीं लिया था।
लेखक ने उनके व्यक्तित्व के इस पहलू पर विचार किया है कि गांधी जैसा जनप्रिय नेता इतिहास में दूसरा कोई नहीं हुआ, जिसने अपने जीवनकाल में ही वह स्थान हासिल कर लिया था जो बहुत कम ही लोगों को मिलता है। उनके समर्थकों की संख्या करोड़ों में थी, और जिसे हमने 'महात्मा' कहने के साथ ही 'राष्ट्रपिता' के आसन पर प्रतिष्ठित किया, खूब भक्ति की तो निंदा-आलोचना भी की है।
कई बातों के लिए उनको दोषी भी माना है। परंतु निंदा और प्रशंसा से दूर रहकर उन्हें ज्यादा गहराई से समझें तो केवल कुछ बातें बहुत कुछ बता देती हैं। लेखक का मत है कि भारत से बाहर तिब्बत, चीन, जापान और यूरोप में बुद्ध की जीवनी और दर्शन के बारे में ज्यादा व्यापक और गहरी चर्चा हुई है।
उसी तरह गांधी और उनके दर्शन को भारत से अधिक विदेश में मान मिला। लेखक ने इस संदर्भ में रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' फिल्म की चर्चा की है और लिखा है कि ऐसी फिल्म भारत में बन सकती है, इसकी आशा नहीं है। लेखक की इस मान्यता पर बहस हो सकती है।
लेखक प्रश्न उठाते हैं कि राष्ट्रपिता, साबरमती के संत, अहिंसा के उपासक और इससे ज्यादा गांधी के बारे में जानने के लिए क्या है? इस किताब को पढ़कर पाठक गांधी जी के बारे में जानने की तृष्णा को मिटा लें यह लेखकीय उद्देश्य नहीं है, वरन लेखक मन ही मन प्रार्थना करता है कि किताब को पढ़कर पाठक को गांधी जी को जानने की तृष्णा बढ़े।
पुस्तक को पढ़ते हुए कई प्रसंगों में ऐसा लगता है कि लेखक अपनी मंशा में सफल भी हुआ है। पहले अध्याय समुद्र बांधना से लेकर, मोहनिया, पढ़ाई के बीच विवाह, पितृ वियोग, स्कूली शिक्षा, भारत वापसी, दक्षिण अफ्र ीका में, ऐतिहासिक ट्रेन यात्रा, राजनीति में प्रवेश, कस्तूरबा की गृहस्थी, भारत में पहला राजनीतिक अनुभव, दक्षिण अफ्रीका से बुलावा, फिनिक्स आश्रम, सत्याग्रह एक नूतन शक्ति, घर में सत्याग्रह, सार्जेंट मेजर, पहला सत्याग्रह, कानून अवज्ञा, टालस्टाय फार्म, दक्षिण अफ्रीका में गोखले और फिर समाधान से अवसाद के बाद भारत के संघर्षों, तीसरे दर्जे में यात्रा का अनुभव, नील किसानों की दुर्दशा, देश में पहला अनशन, चरखा एक वास्तविकता तथा प्रतीक, नया मंत्र, विप्लवी देशप्रेमी, गोलमेज बैठक, यरवदा मंदिर में एक बार फिर, हरिजनों के लिए आमरण अनशन, पुत्र संकट, भारत छोड़ो आंदोलन, पत्नी वियोग, जेल की आखिरी सजा, आखिरी वायसराय माउंटबेटन, स्वप्न की स्वाधीनता या दु:स्वप्न की, आखिरी हफ्ता, आखिरी दिन और उपसंहार के साथ 89वें अध्याय जीवन पंजिका तक लेखक एक द्रष्टा ही रहा है।
इस पुस्तक लेखन से पहले महांति ने अपने अध्ययन के पांच से अधिक वर्ष महात्मा को पढऩे में लगाया। गांधी ने सत्याग्रह को राजनीतिक अस्त्र बनाया और परंपरा से सत्य और अहिंसा को निकाल जीवन में ले आए। लेखक का दावा है कि गांधी की मौलिकता के कारण भविष्य की मानवजाति उन पर निर्भर करेगी। ठीक वैसे ही जैसे कि उन्होंने इसे समझते हुए कहा था कि उनका जीवन ही उनका संदेश है।
इस पुस्तक के लेखक ने गांधी को समझने का एक आधार दिया है, लेकिन कई जगह प्रचलित मान्यताओं को नकारने का भ्रम भी इसमें हैं।