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धन्य हो वीरांगना मां जीजाबाई ! शिवबा को यूं बनाया छत्रपति

जाणता राजा महानाट्य आयोजन समिति द्वारा चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के स्टेडियम में महानाट्य जाणता राजा के मंचन का रविवार को दूसरा दिन।

By Edited By: Published: Mon, 22 Oct 2018 01:47 AM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 10:39 AM (IST)
धन्य हो वीरांगना मां जीजाबाई ! शिवबा को यूं बनाया छत्रपति
कानपुर (जागरण संवाददाता)। छत्रपति शिवाजी, एक अतुलित शूरवीर, न्यायप्रिय और धर्म ध्वज रक्षक शासक थे। यदि वह इतने गुणवान थे तो उन गुणों की खान यानी मा जीजाबाई के व्यक्तित्व की व्याख्या तो नि:संदेह अनिवार्य सी लगती है। महानाट्य जाणता राजा के मंच पर हम शिवाजी महाराज की शौर्यगाथा देखते-सुनते हैं। वीर शिवाजी की कुलदेवी तुलजा माता का पूजन होता है। मगर, नमन को रह जाती है वह वीरांगना मां जीजाबाई, जो अपने पुत्र शिवबा को स्वतंत्रता की लोरियां सुनाकर, खिलौनों की बजाए तलवार-कटार थमाकर छत्रपति बनाती हैं।
जाणता राजा महानाट्य आयोजन समिति द्वारा चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के स्टेडियम में महानाट्य जाणता राजा के मंचन का रविवार को दूसरा दिन था। कथानक, मंच सज्जा, प्रकाश संयोजन, संवाद या कलाकार में कोई परिवर्तन नहीं, लेकिन जीवंत होती वीरगाथा से जुड़ते हैं तो छत्रपति शिवाजी के साथ ¨हदवी स्वराज की स्थापना के श्रेय की अधिकारी एक और शख्सियत शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई के रूप में ध्यान खींचती है।
महानाट्य में वीर शिवाजी के पिता शाहजी महाराज और मां जीजाबाई के बीच संवाद का पहला दृश्य समझा देता है कि मुगलों के खिलाफ उनके हौसले कितने बुलंद थे। दिल्ली और बीजापुर की फौज के आक्रमण में शाहजी महाराज दो बादशाहों को परास्त कर अपनी निजामशाही बचा लेते हैं। जीजाबाई नाखुशी जाहिर करती हैं। कहती हैं कि आपने यह पराक्रम उन मुगल शासकों के लिए दिखाया है, जो मराठा प्रजा का शोषण कर रहे हैं। आप विश्वामित्र की तरह नई दुनिया बसा सकते हैं। दो बादशाह हराए हैं तो क्या खुद महाराष्ट्र के बादशाह नहीं बन सकते।
शाहजी महाराज दलील देते हैं कि 12 पुश्तों की गुलामी हमारे खून और तलवार में समा गई है। अपने पति की हताशा से भी जीजाबाई हताश नहीं होतीं और कुलदेवी तुलजा भवानी से हथियार के रूप में पुत्र की प्रार्थना करती हैं। सन् 1630 में कृष्ण फाल्गुन तृतीया को शिवाजी का जन्म होता है और जिंदा हो जाती हैं ¨हदवी स्वराज्य की उम्मीदें। ..जब दी थी पिता, मामा और नाना जैसा न बनने की सीख पुणे पर आदिलशाही फौज के आक्रमण के बाद जीजाबाई पुत्र शिवाजी से उम्मीद जताते हुए कहती हैं कि बड़े हो जाओ, मेरी तरह सभी माताओं की उम्मीद हो तुम। तब शिवाजी कहते हैं कि मैं पिता, माता और नानाजी जैसा बनूंगा। यहां फिर वीरांगना मां का चरित्र प्रकाशमय होता है।
वह बालक शिवबा को टोकते हुए कहती हैं- क्या मुगलों की जागीरदारी करने के लिए उनके जैसा बनना है? सभी के अपमान का बदला लेने को बगावत करो। आपकी तलवार में मां तुलजा भवानी वास करेंगी। आप निश्चय करें तो कालचक्र को भी बदल सकते हैं। तभी बाल्यावस्था में ही शिवाजी ¨हदवी स्वराज्य की स्थापना का संकल्प लेते हैं। पढ़ाया नारी सम्मान और न्यायप्रियता का पाठ एक गांव का पाटिल गरीब महिला का शीलभंग कर देता है।
तब जीजाबाई शिवाजी महाराज को समझाती हैं कि आपके अधिकारी गलती करेंगे तो जनता आपको बददुआएं देगी। दुष्कर्म करने वाले का आपके राज में पाटिल पद पर रहना उचित है क्या? तब शिवाजी अपने ही पाटिल के हाथ-पैर कटवा देते हैं। इसी तरह शिवाजी के मामा शंभाजी राव मोहिते एक गरीब किसान का पैसा लूट लेते हैं। जीजाबाई न्याय करने के लिए कहती हैं तो शिवाजी वास्ता देते हैं कि शंभाजी राव मोहिते आपके भाई और मेरे मामाजी हैं। उनसे सवाल कैसे पूछ सकता हूं।
तब मां उन्हें भेदभावरहित न्याय का बड़ा सबक देती हैं। कहती हैं कि कंस भी तो कृष्ण का मामा था, लेकिन किस तरह उसका अंत हुआ। आप भी मामा को गोली मार दें या बंदी बना लें। इन अतिथियों ने की तुलजा भवानी की आरती औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना, विधि मंत्री बृजेश पाठक, महापौर प्रमिला पांडेय, जिला जज रामकृष्ण गौतम, ब्रिगेडियर नवीन सिंह, गृह सचिव अरविंद कुमार, वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अर्चना भदौरिया, उद्यमी ओमप्रकाश डालमिया, नरेंद्र शर्मा और बीएनडी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य नरेंद्र द्विवेदी।
उद्घाटन सत्र का संचालन सह-संयोजक नीतू सिंह और प्रचार प्रमुख अविनाश चतुर्वेदी ने किया। आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. उमेश पालीवाल, उपाध्यक्ष अवध बिहारी मिश्र, डॉ. अंगद सिंह, संयोजक स्वतंत्र अग्रवाल, कोषाध्यक्ष अरविंद मेहरोत्रा, सदस्य विनीत चंद्रा, अजीत अग्रवाल, भवानी भीख, डॉ. विवेक द्विवेदी, श्रीराम जी, अनिल जी भी उपस्थित थे।

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