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इशारों की भाषा और गणित के बूते उमंगों के सुर-ताल पर झूम उठी खामोश जिंदगी

बिरजू महाराज की शिष्या कथक नृत्यांगना वंदना देबरॉय ने मूक-बधिर बच्चों को बनाया कलाकार।

By AbhishekEdited By: Published: Wed, 02 Jan 2019 12:13 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jan 2019 05:06 PM (IST)
इशारों की भाषा और गणित के बूते उमंगों के सुर-ताल पर झूम उठी खामोश जिंदगी
इशारों की भाषा और गणित के बूते उमंगों के सुर-ताल पर झूम उठी खामोश जिंदगी
जितेंद्र शर्मा, कानपुर। इशारों की भाषा, गणित और संगीत की मात्राओं के मेल के बूते मूक-बधिर बच्चों ने कथक में निपुणता पा ली। खामोश जिंदगी नई उमंगों के सुर-ताल पर झूम उठी। यह संभव हुआ कथक नृत्यांगना वंदना देबरॉय के अथक प्रयास से। उन्होंने इन बच्चों की खामोश जिंदगी में खुशियों-उम्मीदों के नवरंग भर दिए। क्या हुआ जो नताशा और शिवानी बोल-सुन नहीं सकतीं। उनके हुनर के चर्चे चारों ओर हैं।

किस्मत में मिली खामोशी को ओढ़े गुमसुम सी रहने वाली ये बच्चियां अब 'बालश्री' हैं। अपने परिवार का गुमान हैं। आत्मविश्वास से लबरेज हैं। आत्मसम्मान से भर उठी हैं। ये सब हुआ कथक नृत्यांगना वंदना देबरॉय के समर्पित प्रयास से। जच्बे की पुकार इतनी ऊंची थी कि न सुर की जरूरत पड़ी और न स्वर की। बावजूद इसके, इन बच्चों ने सुर-ताल पकड़ लिए। दरअसल, वंदना ने मूक-बधिर बच्चों को कथक सिखाने के लिए इशारों की भाषा यानी साइन लैंग्वेज, गणित और संगीत की मात्राओं को सहारा बनाया। देखते ही देखते सैकड़ों दिव्यांग बच्चे लय-ताल में रमते चले गए।
वंदना कहती हैं, यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि दिव्यांग अमूमन समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं माने जाते। मगर कला की वंदना से जुड़कर वे विशेष स्थान हासिल कर सकते हैं...। कानपुर, उत्तर प्रदेश स्थित च्योति मूक-बधिर विद्यालय के बच्चे यह कर पा रहे हैं। इस विद्यालय को वंदना ने सांस्कृतिक रूप से गोद ले रखा है। वे यहां के बच्चों को कथक सहित अन्य नृत्य विधाओं में पारंगत कर रही हैं।

वंदना देबरॉय ने शास्त्रीय संगीत और नृत्य की शिक्षा राजेश्वरी ठाकुर, पद्मविभूषण पं. बिरजू महाराज और शाश्वती सिंह से ली है। कथक में विशारद हैं। उन्होंने साइन लैंग्वेज का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया। फिर वह इन दिव्यांगों से संवाद कैसे करने लगीं? इस सवाल पर बताती हैं कि पहले ब्लैक बोर्ड पर लिख-लिखकर इन्हें सिखाते थे। वह आंखों की भाषा बहुत अच्छी तरह समझते थे। फिर इशारों-इशारों में बात करते-करते उन्हीं से साइन लैंग्वेज भी सीख गईं। वंदना मानती हैं कि इन बच्चों की इंद्रियां अधिक सक्रिय होती हैं। इनका मन नहीं भटकता और संगीत की मात्राओं को इतनी दक्षता से समझ लेते हैं कि सबसे कठिन माना जाने वाला कथक नृत्य भी सीख जाते हैं।
अब खुद भी सिखाने लगे कई दिव्यांग
वंदना देबरॉय अब तक 500 से अधिक मूक-बधिर बच्चों को कथक नृत्य सिखा चुकी हैं। अब ये बच्चे पारंगत कलाकार हैं। उनका आत्मविश्वास बढ़ गया। इनमें सुनयना सिंह, शाम्भवी अवस्थी, प्रिया पांडेय और प्रज्ञा दीक्षित सहित कई ऐसे हैं, जो अब खुद भी कोचिंग चलाकर साइन लैंग्वेज में कथक सिखाने लगे।

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