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हो जाइए सावधान! एक ऐसा मच्छर जो आपको पहुंचा सकता कोमा में

इन मच्छरों पर लिक्विड और क्वाइल बेअसर हो रहे हैं। पहले मरीज सामान्य दवा से ठीक हो जाता था लेकिन अब सामान्य दवा भी काम नहीं करती है। लापरवाही जान पर भारी पड़ सकती है।

By AbhishekEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 03:23 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 03:23 PM (IST)
हो जाइए सावधान! एक ऐसा मच्छर जो आपको पहुंचा सकता कोमा में
हो जाइए सावधान! एक ऐसा मच्छर जो आपको पहुंचा सकता कोमा में

कानपुर (जागरण संवाददाता)। इन दिनों मौसम में आए बदलाव के चलते ज्यादातर लोग वायरल और बुखार से पीडि़त होकर डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं। जांच में बुखार का कारण मलेरिया भी निकल रहा है और मरीज कोमा में चला जा रहा है। ऐसे में थोड़ी सी भी लापरवाही जान पर भारी पड़ सकती है। एलएलआर अस्पताल (हैलट) के इमरजेंसी और ओपीडी में रोजाना ऐसे मरीज आ रहे हैं।

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मलेरिया की सामान्य दवा भी बेअसर

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. जेएस कुशवाहा का कहना है कि ओपीडी एवं इमरजेंसी में मरीज बुखार के साथ आ रहे हैं। पहले मलेरिया की सामान्य दवाओं से ठीक हो जाता था लेकिन अब रक्त जांच में मलेरिया पी-वाइवैक्स निकल रहा है। इनपर क्लोरोक्वीन काम नहीं करती है। इसके कारण मरीज की लो बीपी (ब्लड प्रेशर), पीलिया व किडनी में खराबी भी हो रही है। समय से सही इलाज न मिलने पर पीडि़त कोमा में चले जाते हैं। उनके इलाज में सतर्कता जरूरी है।

मलेरिया परजीवी में बदलाव है कारण

मलेरिया परजीवी वाइवैक्स की प्रकृति में हुआ बदलाव घातक हो गया है। इससे पीडि़तों के लक्षणों में भी बदलाव आया है। ठंड देकर आए बुखार के बाद मरीज कोमा में चला जा रहा है। उसकी किडनी तक पर असर पड़ रहा है। वाइवैक्स परजीवी से संक्रमित मरीजों को तेज बुखार आने पर दवाएं असर नहीं कर रही हैं। डॉ. कुशवाहा कहते हैं कि दवाओं का कांबिनेशन बदलने पर सुधार होता है। इसमें मरीज को 7 से 10 दिन लग जाते हैं।

दो तरह के होते मलेरिया परजीवी 

मलेरिया परजीवी वाइवैक्स एवं पैल्सीफेरम प्रमुख हैं। वाइवैक्स मलेरिया के केस अधिक आ रहे हैं जबकि चार-पांच साल पहले पी फैल्सीफेरम मलेरिया के केस अधिक आते थे। यह काफी घातक होता है, जिसे खूनी मलेरिया भी कहते हैं। 

मलेरिया के मच्छरों में विकसित हो रही प्रतिरोधक क्षमता

मादा एनोफिलीज (मच्छर) से मलेरिया फैलता है। इसका मच्छर ठहरे पानी में पनपता है, 30-35 दिन जीवित रहता है। मच्छर किसी व्यक्ति का खून चूसता है तो उसमें मलेरिया पैरासाइड आ जाते हैं। बारिश में मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। जिला महामारी वैज्ञानिक डॉ. देव सिंह का कहना है कि मच्छरों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है। इससे इन पर लिक्विड और क्वाइल बेअसर हो रहे हैं। मच्छर से बचने के लिए मच्छरदानी का इस्तेमाल करें।

बदल रहे बीमारी के लक्षण

एलएलआर अस्पताल की पैथालॉजी प्रभारी डॉ. सुमनलता वर्मा कहती हैं कि बैक्टीरिया, वायरल एवं पैरासाइड पर बेहिसाब एंटी बायोटिक का इस्तेमाल घातक है। इससे म्यूटेशन (प्रकृति बदलना) हो रहा है। इससे बीमारियों के लक्षण बदल रहे हैं। इसलिए फिजीशियन सतर्कता बरतते हुए मरीजों की स्थिति के हिसाब से इलाज करें। 


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